हादसों की उड़ान
दुर्घटना की वजह खराब मौसम और घना कोहरा बताई जा रही है। इस दुर्घटना से एक बार फिर पहाड़ी इलाकों में चलाई जा रही हेलिकाप्टर सेवाओं की सुरक्षा व्यवस्था रेखांकित हुई है।
Written by जनसत्ता; दुर्घटना की वजह खराब मौसम और घना कोहरा बताई जा रही है। इस दुर्घटना से एक बार फिर पहाड़ी इलाकों में चलाई जा रही हेलिकाप्टर सेवाओं की सुरक्षा व्यवस्था रेखांकित हुई है। कई धार्मिक स्थलों पर दुर्गम रास्तों और ऊंची चढ़ाई की वजह से हेलिकाप्टर सेवाएं चलाई जाती हैं, ताकि बुजुर्ग और शारीरिक रूप से अक्षम लोग सुगमता से यात्रा कर सकें। ये सेवाएं ज्यादातर निजी कंपनियां चलाती हैं।
जाहिर है, इसमें उनका व्यावसायिक हित जुड़ा होता है। हालांकि कोई भी कंपनी अपनी संपत्ति, साख और अपने यात्रियों की सुरक्षा की कीमत पर कमाई करने का दुस्साहस नहीं करती, पर ऐसे मामलों में उनकी बुनियादी तकनीकी पहलुओं की अनदेखी जरूर रेखांकित होती है। यह ठीक है कि पहाड़ी इलाकों में कई बार मौसम अचानक खराब हो जाता है और हवाई उड़ानों के लिए मुश्किलें पैदा हो जाती हैं, मगर हवाई सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों के पास मौसम के पूर्वानुमान का तंत्र भी होता है। जब मौसम के पूर्वानुमानों के आकलन में लापरवाही या गड़बड़ी होती है, तभी इस तरह के हादसे होते हैं।
केदारनाथ में जिस जगह ताजा हादसा हुआ, वहां पहले भी हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। पिछले नौ सालों में उस इलाके में पांच हेलिकाप्टर दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। उनमें चार मौसम की खराबी की वजह से हुर्इं। फिर जिस हेलिकाप्टर ने यात्रियों को लेकर उड़ान भरी, उसने इस जोखिम को गंभीरता से क्यों नहीं लिया, हैरानी की बात है। बताया जा रहा है कि घने कोहरे की वजह से रास्ता साफ नहीं दिखा और उड़ान भरने के पंद्रह मिनट बाद हेलिकाप्टर जमीन से टकरा कर ध्वस्त हो गया।
ऐसा नहीं माना जा सकता कि घने कोहरे का अनुमान उस पायलट को नहीं रहा होगा या उसे मौसम संबंधी जानकारियां उपलब्ध नहीं कराई गई होंगी। उड़ान भरने से पहले हर पायलट को सबसे पहले मौसम संबंधी सूचनाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, ताकि वह उड़ान भरने से पहले और बाद में अपनी रणनीति तैयार कर सके। अगर वातावरण में दृृश्यता कम है, तो आमतौर पर चालक उड़ान नहीं भरते।
पहाड़ी इलाकों में वैसे भी दृश्यता कम होना जोखिम भरा होता है, क्योंकि वहां पहाड़ों की ऊंचे-नीचे होने का अंदाजा न होने से दुर्घटना की संभावना अधिक होती है। हालांकि हेलिकाप्टर और विमानों में कंप्यूटरीकृत प्रणाली से पता चलता रहता है कि वह कितनी ऊंचाई पर उड़ रहा है, मगर पहाड़ों पर वह प्रणाली आगे के रास्ते का अनुमान नहीं दे सकती।
इसलिए पहाड़ी स्थानों पर चलाई जा रही ऐसी निजी हेलिकाप्टर सेवाओं को अधिक भरोसेमंद बनाने की जरूरत रेखांकित की जाती रही है। ऐसी जगहों पर अधिक दक्ष चालकों की जरूरत होती है। कई बार कुछ चालक अधिक आत्मविश्वास की वजह से भी मौसम की परवाह नहीं करते और उड़ान भर लेते हैं। कई बार कंपनियां लगातार सेवाएं देने और अधिक कमाई करने के दबाव में हेलीकाप्टरों के रखरखाव पर उचित ध्यान नहीं दे पातीं।
ऐसी प्रवृत्तियां अंतत: लोगों की जान के साथ खिलवाड़ साबित होती हैं। अब घटना की असली वजहों की जांच हो रही है, पर इस बात की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि हेलिकाप्टर सेवाओं के संचालन संबंधी नियमों में सुरक्षा मानकों पर नए सिरे से विचार की जरूरत है। अगर इस तरह के हादसे बार-बार हो रहे हैं, तो उनकी खामियों की पहचान और उनका समाधान निकाला ही जाना चाहिए।