देश दूसरे लॉकडाउन की ओर?

कोरोना संक्रमण से स्थिति जिस तरह लगातार भयावह होती जा रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है

Update: 2021-04-20 05:17 GMT

आदित्य चोपड़ा: कोरोना संक्रमण से स्थिति जिस तरह लगातार भयावह होती जा रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत पुनः दूसरे लाॅकडाऊन की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तेजी के साथ हमला किया है उसके असर से देश का लगभग प्रत्येक राज्य प्रभावित हो रहा है। विभिन्न राज्यों से कोरोना संक्रमण की वजह से मौतों की जो खबरें आ रही हैं वे दिल दहलाने वाली हैं परन्तु इस दर्दनाक स्थिति के बीच जिस प्रकार मौत पर मुनाफा कमाने की घटनाएं सामने आ रही हैं वे मानवता को शर्मसार करने वाली हैं। खास तौर पर 'रेमडेसिविर' इंजेक्शन की कालाबाजारी जिस प्रकार से कुछ लोग करते हुए पकड़े जा रहे हैं उससे मनुष्य के पतन की पराकाष्ठा का भी पता चलता है परन्तु यह समय न तो राजनैतिक अंक कमाने का है और न केन्द्र व राज्यों के बीच कोरोना से लड़ने के लिए अधिकार सीमाओं का है

यह समय समस्त देश का एक इकाई के रूप में कोरोना को परास्त करने का है। बेशक केन्द्र ने राज्यों को अपनी-अपनी परिस्थिति के अनुसार कोरोना का मुकाबला करने हेतु आवश्यक कदम उठाने के लिए अधिकृत कर दिया है परन्तु राज्य केवल अपने आर्थिक बूते पर इसका मुकाबला नहीं कर सकते। विभिन्न राज्य कहीं कर्फ्यू लगा रहे हैं तो कही अर्ध लाॅकडाऊन या आंशिक लाॅकडाऊन लगा कर कोरोना संक्रमण की शृंखला को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं परन्तु इस पर तब तक पूरी तरह नियन्त्रण नहीं पाया जा सकता जब तक कि एक समन्वित राष्ट्रीय नीति न तैयार की जाये। हालांकि कोरोना वैक्सीन भी अब लगनी शुरू हो गई है परन्तु कई राज्यों से इसकी सप्लाई में कमी आने की शिकायतें भी मिल रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि वैक्सीन ही कोरोना पर अन्यंत्र नियन्त्रणकारी कार्रवाई साबित हो सकती है परन्तु इसे लोगों को लगाने की पूरी नीति केन्द्र सरकार चला रही है और इसकी खरीदारी भी केवल वही कर सकती है। तर्क कहता है कि जब राज्यों को कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया गया है तो उन्हें ही यह अधिकार भी मिलना चाहिए कि वे अपने राज्य की परिस्थितियों और जरूरत के मुताबिक वैक्सीन लगाने की नीति भी तय करें। इस विवाद में जाने की जरूरत नहीं है कि कौन राज्य कितनी वैक्सीन की कमी बता रहा है बल्कि यह देखने की जरूरत है कि किस राज्य में कोरोना का संक्रमण कितना प्रबल है। इसके साथ ही जिस प्रकार से विभिन्न राज्यों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है उसके उपाय भी अभी से ढूंढे जाने चाहिए।
कोरोना संक्रमण और अर्थव्यवस्था एक-दूसरे के समानुपाती हैं। इसका अनुभव हमें पिछले वर्ष के संक्रमण दौर व लाॅकडाऊन से हो चुका है। पिछले 31 मार्च को भारत की अर्थव्यवस्था की नकारात्मक वृद्धि दर दस प्रतिशत रही है। इससे सबक लेने की जरूरत है और लोगों की जानमाल बचाने के साथ ही जीविका को सुरक्षित रखने की जरूरत भी है। यह हकीकत है कि पिछले लाॅकडाऊन की मार से देश की अर्थव्यवस्था अभी तक उबर नहीं पा रही है और यह दूसरा भयंकर काल शुरू हो गया है। अतः औद्योगिक जगत विशेष रूप से मध्यम व लघु क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों को उत्पादनरत रखने के लिए शहरों से मजदूरों का पलायन रोकना बहुत आवश्यक होगा और इसके लिए पहले से ऐसे 'कोरोना पैकेज' तैयारी करनी पड़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था और ज्यादा नीचे न गिरने पाये। इसमें भी दैनिक मजदूरी करने वालों से लेकर ठेके पर विभिन्न कारखानों या फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूरों से लेकर कारीगरों तक को आर्थिक मदद देने की जरूरत होगी। यह मदद उन्हें किसी भीख की तरह नहीं बल्कि उनके जायज हक के तौर पर दी जानी चाहिए और छोटी फैक्टरियों व उत्पादन इकाइयों के लिए अभी से शुल्क छूट व आर्थिक मदद के पैकेजों पर विचार करना शुरू कर दिया जाना चाहिए। मगर सबसे ज्यादा जोर इस बात पर होना चाहिए कि जल्दी से जल्दी प्रत्येक युवा से लेकर बुजुर्ग तक को वैक्सीन लगे। देश में कोरोना वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं आने देनी चाहिए और जो दो निजी कम्पनियां वैक्सीन बना रही हैं उन्हें हर प्रकार से मदद की जानी चाहिए। सवाल कोरोना पर विजय प्राप्त करने के लिए कारगर प्रबन्धन का इसलिए खड़ा हो रहा है कि जब दुनिया के दूसरे देशों विशेष रूप से यूरोपीय देशों मे कोरोना स्टेंस की दूसरी लहर के बहुत तेज होने और भयंकर होने की आशंका जताई जा रही थी तो हमने समय रहते व्यापक कारगर प्रबन्ध नहीं किये और आज कोरोना ने हमें बीच रास्ते में पकड़ लिया है। अतः जरूरी है कि हम अपने लोगों को बचाने के साथ-साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था को भी बचायें और इस तरह बचायें कि जो जहां है वह वहीं आश्वस्त होकर रहे जिससे कोरोना के पंखों को फैलने की इजाजत न मिले।


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