कोरोना महामारी, सूदखोर साहूकार के पंजे या सिस्टम की नाकामी, कौन है इस पूरे परिवार की मौत का जिम्मेदार
आखिर बैंकों के इतने विस्तारीकरण के बाद भी लोगों को स्थानीय रसूखदार साहूकारों से कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है.
संयम श्रीवास्तव।
देश में जब बैंक नहीं हुआ करते थे, तब लोग कर्ज लेने के लिए साहूकारों के पास जाते थे और साहूकार उन्हें ब्याज पर रुपए दिया करते थे. जब कर्जदार कर्ज नहीं चुका पाता था तो साहूकार जबरन उसकी जमीन उसका घर हड़प लेता था. लेकिन आजादी के बाद देश में लोकतंत्र स्थापित हुआ, बैंकों का निर्माण हुआ, उनका विस्तार हुआ तो समझा जाने लगा कि अब इन साहूकारों का शोषण खत्म हो जाएगा. लेकिन क्या आजादी के 75 साल बाद भी ऐसा हो पाया है. क्योंकि मध्यप्रदेश के भोपाल से जो घटना सबके सामने आई, उसने होश फाख्ता कर दिए हैं. दरअसल भोपाल के एक परिवार ने स्थानीय साहूकारों से कुछ लोन लिया था और जब वह उसे चुका नहीं सके तो इन साहूकारों ने इस परिवार को इतना प्रताड़ित किया कि पूरे परिवार को आत्महत्या करनी पड़ी.
इस परिवार में एक 47 वर्षीय व्यक्ति संजीव जोशी, उनकी मां 67 वर्षीय नंदिनी, 45 वर्षीय पत्नी अर्चना और 21 वर्षीय बेटी ग्रिशमा और 16 वर्षीय बेटी पूर्वी ने पिछले सप्ताह गुरुवार को जहर खा लिया. जिससे इन सभी की मृत्यु हो गई. सोचिए कि रसूखदार साहूकारों ने इस पूरे परिवार को कितना परेशान किया होगा कि पूरे के पूरे परिवार को आत्महत्या करनी पड़ी. ऐसा भी नहीं है कि इस परिवार ने आवेश में आकर जहर खा लिया. जहर खाने से पहले परिवार ने अपने दोनों कुत्तों को जहर दिया और पुख्ता किया कि यह जहर कितना असरदार है. उसके बाद पूरे परिवार ने जहर खाया और जान दे दी. क्या इन मौतों का जिम्मेदार सिस्टम नहीं है? आखिर बैंकों के इतने विस्तारीकरण के बाद भी लोगों को स्थानीय रसूखदार साहूकारों से कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है.
किसी से कोई मदद नहीं मिली
कोई परिवार जब इस तरह की मुसीबत से गुजर रहा होता है, तो वह चाहता है कि रिश्तेदार या फिर प्रशासन उसकी मदद करे. यह परिवार भी यही चाहता था और उसने लोगों से गुहार भी लगाई. 19 नवंबर को यह परिवार जब साहूकारों के प्रताड़ना से परेशान हो गया तो वह पिपलानी पुलिस थाने भी पहुंचा. लेकिन वहां इसकी सुनवाई नहीं हुई. अपने रिश्तेदारों से भी मदद मांगी, लेकिन वहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई. परिवार ने अपने सुसाइड नोट में भी लिखा कि उन्हें प्रशासन और रिश्तेदारों किसी से कोई मदद नहीं मिली. 13 पन्नों के इस सुसाइड नोट के आखिरी शब्द थे 'हम बुजदिल नहीं मजबूर हैं.' सोचिए कि परिवार कितना मजबूर हुआ होगा कि उसे इतना भयावह कदम उठाना पड़ा.
महामारी ने कर्ज में डुबो दिया
साल 2020 से पहले तक इस परिवार का सब कुछ ठीक चल रहा था. इस परिवार के मुखिया संजीव जोशी ऑटो पार्ट्स की दुकान चलाते थे. उनकी पत्नी अर्चना किराने की दुकान चलाती थीं. संजीव जोशी की 2 बेटियां थी एक निजी कॉलेज से बीटेक कर रही थी और दूसरी दसवीं में थी. साल 2020 में जब लॉकडाउन लगा तब इनकी परेशानी बढ़ गई और फिर खर्च के साथ-साथ होम लोन भी बढ़ रहा था. पत्नी अर्चना ने संजीव जोशी को बिना बताए एक स्थानीय महिला साहूकार बबली दुबे से 2 लाख रुपए का कर्ज लिया. इसके कुछ महीनों बाद ही जब बड़ी बेटी जो बीटेक कर रही थी, उसके कॉलेज की फीस देनी थी तो अर्चना ने फिर से डेढ़ लाख का एक और कर्ज़ लिया. परिवार ने इस पूरे कर्ज में से 80,000 रुपए चुका दिए थे. और चाह रहा था कि बाकी के पैसे चुकाने के लिए उन्हें थोड़ी सी और मोहलत मिल जाए. लेकिन साहूकारों ने उन्हें यह मोहलत नहीं दी और आए दिन उनके घर पहुंचकर उनका उत्पीड़न करते और उनके साथ दुर्व्यवहार करते. उन्हें धमकियां दी जाने लगी थीं कि उनकी दोनों लड़कियों का अपहरण कर लिया जाएगा. इस वजह से परिवार पूरी तरह से तंग आ चुका था और जब उसने इस मामले में पुलिस की मदद चाही तो वहां से भी उसे कोई मदद नहीं मिली.
सार्वजनिक अपमान ने ले ली जान
ऐसा नहीं है कि इस परिवार के पास कर्ज चुकाने के साधन नहीं थे. हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार इस परिवार के पास भोपाल में लगभग डेढ़ करोड़ की संपत्ति थी और चेन्नई में एक प्लॉट था. उन्होंने अपनी संपत्ति बेचकर भी कर्ज चुकाने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें कोई खरीददार नहीं मिला. कहा जा रहा है कि इस पूरे परिवार ने आत्महत्या सिर्फ इसलिए नहीं की कि वह कर्ज नहीं चुका पा रहे थे, बल्कि इसलिए कि क्योंकि वह सार्वजनिक रूप से हो रहे अपने अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. साहूकारों का हर दिन घर धमक आना और उन्हें भला-बुरा कहना धमकी देना इस परिवार को अंदर ही अंदर तोड़ रहा था. ऊपर से आस पड़ोस के लोगों ने इन लोगों को ऐसे देखना शुरू कर दिया था जैसे कोई अपराधी हों. उनका आए दिन मजाक उड़ाया जाता. परिवार इन सब चीजों को सहन नहीं कर पाया.
गांव से लेकर शहरों तक फैला है साहूकारों का जाल
आजादी के 75 सालों बाद भी देश इन साहूकारों से छुटकारा नहीं पा पाया है. साल 2019 में ऑल इंडिया डेप्ट एंड इन्वेस्टमेंट सर्वे के अनुसार, 10.2 फ़ीसदी ग्रामीण भारतीय परिवार और 4.9 फ़ीसदी शहरी परिवार गैर संस्थागत ऋण एजेंसियों से कर्ज लिए हुए थे. इसी सर्वेक्षण में कहा गया था कि ऋण लेने वालों की संख्या ग्रामीण भारत में लगभग 35 फ़ीसदी और शहरी भारत में 22.4 फ़ीसदी थी. इन गैर संस्थागत ऋण एजेंसियों के साथ समस्या यह है कि यह लोगों को कर्ज तो तुरंत दे देते हैं, लेकिन इनका ब्याज इतना ज्यादा होता है कि कर्ज लेने वाला मूलधन से ज्यादा ब्याज के नीचे दब जाता है. भोपाल का यह परिवार भी शायद इसी का शिकार हो गया था.
कानूनों के बाद भी क्यों नहीं रुक रहा है उत्पीड़न
ऐसा नहीं है कि मध्यप्रदेश में इससे जुड़ा कोई कानून नहीं है, साल 2020 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साहूकार अधिनियम 1934 में संशोधन की घोषणा की और कहा कि इससे जबरन वसूली और उत्पीड़न को रोकने में मदद मिलेगी. 26 सितंबर 2020 को पेश किए गए संशोधनों में राज्य सरकार ने दो धाराएं जोड़ीं. जिनमें से पहली ने साहूकारों को समय-समय पर अधिसूचित दर के अलावा अन्य ब्याज वसूलने से रोक दिया और दूसरा यह कि किसी भी साहूकार द्वारा किसी व्यक्ति को दिया गया कोई भी कर्ज जो कानून के तहत राज्य सरकार के साथ पंजीकृत नहीं है, वसूली योग्य नहीं होगा. इन्हीं संशोधनों में यह भी कहा गया है कि एक साहूकार प्रतिवर्ष 15 फ़ीसदी से ज़्यादा का ब्याज दर नहीं लगा सकता है. हालांकि अभी तक मध्य प्रदेश सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं मौजूद है जिसमें राज्य के सभी गैर संस्थागत साहूकारों की लिस्ट हो. और यही वजह है कि आज भी कस्बों में, गांव में कई ऐसे साहूकार हैं जो मनमाफिक ब्याज दर पर कर्ज देते हैं और जब कर्जदार पैसे नहीं चुका पाता तो वह उसका उत्पीड़न व शोषण करते हैं.
मामले में अब तक क्या हुआ
अब तक इस मामले में भोपाल पुलिस ने साहूकार बबली दुबे समेत चार लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और साहूकार अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. इसके साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 27 नवंबर को एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश राजौरा और डीजीपी विवेक जौहरी शामिल थे. मुख्यमंत्री का कहना है कि इस तरह की उत्पीड़न को रोकने के लिए पूरे राज्य भर में एक अभियान चलाने की आवश्यकता है और संबंधित विभागों को ऐसे मामलों में ठोस कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए हैं.
इसके साथ ही शिवराज सिंह चौहान ने अनुसूचित जाति साहूकार विनियम (संशोधन) अधिनियम, 2021 के माध्यम से आदिवासी लोगों के बीच कर्ज देने वाले कानून को और मजबूत करने की ओर इशारा किया. यानि बिना रजिस्ट्रेशन के अगर कोई आदिवासी लोगों को पैसे उधार देता है तो उसकी सजा 6 महीने से बढ़ाकर 2 साल तक कर दिया गया और वित्तीय जुर्माना एक हजार से बढ़ाकर एक लाख कर दिया गया है. पर क्या आने वाले दिनों में फिर ऐसी कहांनियां हमें सुनने को नहीं मिलेंगी?