सहकारिता और आपसी समझदारी हो सकती है सभी समस्याओं का निदान
दूसरे विश्वयुद्ध के पहले यूरोप में रेस्तरां के बाहर कॉफी और सैंडविच के दाम लिखे होते थे
जयप्रकाश चौकसे । दूसरे विश्वयुद्ध के पहले यूरोप में रेस्तरां के बाहर कॉफी और सैंडविच के दाम लिखे होते थे। साथ ही यह चेतावनी भी होती थी कि कस्टमर्स के वहां कॉफी पीते समय भी उसके दाम बढ़ सकते हैं। महंगाई का यह हाल था कि जीने से अधिक महंगा मरना हो गया था। कॉफिन के दाम आसमान छू रहे थे। 'द ग्रेट गेट्सबी' नामक फिल्म में उन साधन-संपन्न लोगों पर व्यंग किया गया है कि महंगाई के दौर में शानदार दावतों का आयोजन किया जा रहा था। इधर भारत में भी शादियां सादगी से आयोजित की जा रही हैं।
एक दौर में फिल्म के बजट में 10 फीसदी धन अनपेक्षित घटनाओं के कारण शूटिंग में संभावित रुकावटों के लिए सुरक्षित रखा जाता था। महंगाई के दौर में इस प्रावधान के लिए रकम तीन गुना बढ़ा दी गई है। गोया कि अब घर का बजट बनाना बड़ा मुश्किल काम हो गया है। कुकिंग गैस सिलेंडर के दाम आसमान छू रहे हैं। अधपका भोजन किया जा रहा है। पेट्रोल और डीजल के दाम प्रतिदिन बढ़ाए जा रहे हैं। ट्रकों पर लादकर सामान एक शहर से दूसरे शहर ले जाने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है, महंगाई जो बढ़ गई है।
फांके करना कई लोगों के लिए मजबूरी हो गई है। प्याज खरीदते समय आंसू निकल रहे हैं। महंगाई के कारण पेट पर पट्टी बांधी जा रही है और कमर के बेल्ट को कसकर बांधा जा रहा है। मनोज कुमार की फिल्म में गीत था, 'एक हमें आपकी लड़ाई मार गई, दूसरी यार की जुदाई मार गई, तीसरी हमेशा की तन्हाई मार गई, चौथी ये ख़ुदा की ख़ुदाई मार गई, बाक़ी कुछ बचा, तो महंगाई मार गई ।' फिल्म 'आह' में राज कपूर और नरगिस ने अभिनय किया था। शंकर-जयकिशन ने संगीत दिया था।
फिल्म बनाते समय क्षय रोग लाइलाज रोग माना गया था, परंतु फिल्म प्रदर्शित होने तक इसका इलाज उपलब्ध हो गया था। इस फिल्म के सारे गीत मधुर थे। एक गीत इस तरह था। 'मौत मेरी तरफ आने लगी, जान तेरी तरफ जाने लगी, हो सके तो तू हमको देख ले, तूने देखा ना होगा ये समां, कैसे जाता है दम को आकर देख ले।' बलराज साहनी अभिनीत फिल्म 'हम लोग' में नरगिस के भाई अनवर अभिनीत पात्र के पास एक सीन में नींबू खरीदने के पैसे भी नहीं हैं।
दफ्तर का चपरासी सबकी निगाह बचाकर अनवर अभिनीत पात्र को एक नींबू देता है अनवर की आंख में आंसू आ जाते हैं। गौरतलब है कि कभी महात्मा गांधी ने कहा था कि सच्चा स्वराज्य तब होगा जब किसी की आंख में आंसू नहीं होंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि कतार में खड़े आखिरी आदमी तक को भोजन मिलना चाहिए, लेकिन हालात इसके विपरीत हैं। एक दौर में घर की महिलाएं पुराने स्वेटर को उधेड़ कर उसमें नए ऊन का इस्तेमाल करके स्वेटर बुनती थीं।
कागज के फूल में कैफी आज़मी का यादगार गीत है, 'बुन रहे हैं ख्वाब दम-ब-दम, वक्त ने किया क्या हसीं सितम, हम रहे ना हम, तुम रहे ना तुम। वर्तमान में भी आम आदमी मिलजुलकर इस महंगाई से निपट सकता है। सहकारिता और आपसी समझदारी सभी समस्याओं का निदान हो सकती है। अनाज ढोने का काम करने वाले मजदूर के कपड़ों में अनाज के चंद दाने उसके घर आ जाते हैं। हजारों मन अनाज ढोने वाले का अधिकार मात्र चंद दाने पर रह गया है।
पांच सितारा होटल के कर्मचारी को छुट्टी के समय अपनी तलाशी देनी होती है। इन बड़े होटलों में लोगों द्वारा प्लेट में छोड़े गए भोजन से गरीब का पेट भर जाता है। प्लेट में भोजन छोड़ने को अपनी समृद्धि समझने वाले लोगों के बारे में हम क्या कह सकते हैं। एक बार अत्यधिक उपज के समय अमेरिका ने हजारों टन अनाज समुद्र में फेंक दिया ताकि अनाज की अधिकता के कारण उसके दाम न गिर जाएं।