उपभोक्ता का हक

रियल एस्टेट कंपनी किसी खरीदार को मकान बेचती है तो तैयार अवस्था में उसे सौंपने में आखिर जरूरत से ज्यादा देरी क्यों

Update: 2020-11-04 10:03 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शहरों-महानगरों में निर्माणाधीन आवासीय इमारतों में घर की खरीदारी से लेकर उसे हासिल करने की प्रक्रिया में बहुत सारे लोगों को संबंधित कंपनी की ओर से किस तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है, यह छिपा नहीं है। अगर कोई रियल एस्टेट कंपनी किसी खरीदार को मकान बेचती है तो तैयार अवस्था में उसे सौंपने में आखिर जरूरत से ज्यादा देरी क्यों होती है? आमतौर पर इमारत के निर्माण में जितना समय लगना चाहिए, उसका हवाला देकर कंपनियां ग्राहक को आश्वस्त तो कर देती हैं, लेकिन यह एक एक रिवायत-सी बन गई है कि पैसा चुकाने के बाद लोग घर के तैयार होने का इंतजार करते रहते हैं और कंपनियों के पास हर थोड़े वक्त के बाद टालने का नया बहाना आ जाता है।

इसी वजह से निराश और परेशान होकर बहुत सारे लोगों ने घर मिलने की उम्मीद छोड़ कर कंपनियों से अपना पैसा वापस करने की मांग शुरू कर दी है।मगर निर्माण कंपनियां पहले तो कई स्तरों पर टालमटोल करती ही थीं, अब वे कानून का हवाला देकर उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों से मनमाने समय तक वंचित रखना चाहती हैं।

दरअसल, रियल एस्टेट कंपनियां यह कहती रही हैं कि मकान की खरीदारी और उसे सौंपने में देरी से संबंधित किसी भी विवाद का निपटारा सिर्फ 'रेरा' यानी रीयल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम के तहत ही किया जा सकता है। लेकिन इससे जुड़ी जटिलताओं के मद्देनजर कई खरीदारों ने क्षतिपूर्ति के लिए उपभोक्ता अदालत का रुख करना शुरू कर दिया है।

जबकि आवासीय इमारतें बना कर बेचने वाली एक कंपनी का कहना था कि राष्ट्रीय उपभोक्ता निपटान आयोग को इससे जुड़ी उपभोक्ताओं की शिकायतों पर विचार नहीं करना चाहिए। लेकिन अब सोमवार को इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति स्पष्ट कर दी है और मकान खरीदारों के पक्ष में एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया।

अदालत ने कहा कि रीयल एस्टेट कंपनियों से जुड़े मामलों को देखने के लिए सन 2016 में बना विशेष कानून रेरा के बावजूद मकान खरीदार घरों को सौंपने में देरी को लेकर संबंधित कंपनी के खिलाफ पैसा वापसी और क्षतिपूर्ति के दावे जैसे मामलों को लेकर उपभोक्ता अदालत में जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे में संबंधित कंपनी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि रेरा के अमल में आने के बाद निर्माण और परियोजना के पूरा होने से जुड़े सभी मामलों का निपटारा इसी कानून के दायरे में होना है।

सवाल है कि अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी से निर्धारित अवधि में कब्जा मिल जाने के आश्वासन पर घर खरीदता है और वह अवधि जरूरत से ज्यादा लंबी खिंचती है तो किस कानून के तहत उपभोक्ता को उसके अधिकारों से वंचित किया जा सकता है! सौदा होने के बाद दो ही स्थिति बनती है कि या तो ग्राहक को समय पर घर की सुपुर्दगी हो या फिर बहुत देरी होने पर अगर वह अपना चुकाया गया पैसा और उसकी क्षतिपूर्ति चाहता है तो उस पर उसका अधिकार हो।

करीब एक महीने पहले बंबई हाइकोर्ट ने एक रियल एस्टेट कंपनी को अपने एक ग्राहक को 5.04 करोड़ रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसने अस्सी महीने बाद भी शिकायकर्ता को संपत्ति सुपुर्द नहीं की थी। गौरतलब है कि रेरा घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने के लिए और अचल संपत्ति उद्योग में अच्छे निवेश को बढ़ावा देने के लिए बना है। लेकिन ऐसे मामले आम हैं, जिनमें घर के लिए भारी रकम वसूल लेने के बाद कंपनियां अलग-अलग वजह बता कर लोगों को अधर में लटकाए रखती हैं। ऐसी स्थिति में लोग किस भरोसे पर अचल संपत्ति उद्योग में निवेश की हिम्मत कर पाएंगे?

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