कांग्रेस की कवायद
राजस्थान के उदयपुर में हुए कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर को इस मायने में जरूर सफल कहा जा सकता है कि इस दौरान पार्टी नेतृत्व न केवल कुछ कड़वी सचाइयों से अवगत हुआ बल्कि इसने उन्हें सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया।
नवभारत टाइम्स: राजस्थान के उदयपुर में हुए कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर को इस मायने में जरूर सफल कहा जा सकता है कि इस दौरान पार्टी नेतृत्व न केवल कुछ कड़वी सचाइयों से अवगत हुआ बल्कि इसने उन्हें सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया। शिविर के समापन सत्र को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने साफ तौर पर माना कि पार्टी का आम लोगों से जुड़ाव टूट गया है और उसे फिर से स्थापित करने के लिए पार्टी जनों को लोगों के बीच जाना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी को संवाद के अपने तरीके में बदलाव करने की जरूरत है।
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इसी संदर्भ में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक की भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने की घोषणा की जिसमें पार्टी के युवा तथा वरिष्ठ सभी नेता शिरकत करेंगे। एक परिवार के एक से ज्यादा लोगों को टिकट न देने को लेकर हालांकि पांच साल काम करने का अपवाद भी लगा दिया गया है लेकिन फिर भी यह व्यवस्था महत्वपूर्ण है। एक व्यक्ति के एक पद पर लगातार पांच साल से ज्यादा न रहने और 50 फीसदी से ज्यादा टिकट 50 साल से कम उम्र के लोगों को देने जैसे नियम भी पार्टी ने पहली बार बनाए हैं। इनका मकसद यह संदेश देने की कोशिश है कि पार्टी खुद को नए दौर की जरूरतों के मुताबिक ढाल सकती है।
अच्छी बात यह भी है कि पार्टी नेतृत्व इस तथ्य को समझता है कि जितनी बुरी स्थिति उसकी हो चुकी है उसमें आगे बढ़ने का कोई शॉर्टकट उसे उपलब्ध नहीं है। लंबी, कठिन जद्दोजहद से गुजरने के अलावा कोई चारा उसके पास नहीं है। जितने भी संकल्प उसने किए हैं, जो भी प्रस्ताव लाए हैं सबकी सार्थकता इसी में है कि उन पर अमल कितनी अच्छी तरह हो पाता है। यह हो पाएगा या नहीं इसका जवाब समय के गर्भ में छिपा है, इसलिए उस बारे में फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन जहां तक आर्थिक नीतियों की दिशा पर कांग्रेस के रुख की बात है तो चिंतन शिविर से मिला संकेत कुछ सवाल खड़े करता है।
चिंतन शिविर ने इस बात पर जोर दिया है कि देश में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू किए जाने के 30 वर्षों के बाद अब 'पॉलिसी रीसेट' पर विचार करने की जरूरत है। यह देखने में आया है कि तमाम राजनीतिक दल नब्बे के दशक में शुरू हुए सुधारों और उसके फायदों का श्रेय तो लेना चाहते हैं लेकिन सुधारों का दूसरा राउंड शुरू करने की जरूरत को अनदेखा करते हैं। सुधारों की शुरुआत करने वाली पार्टी के रूप में कांग्रेस इस मामले में मिसाल पेश कर सकती थी, लेकिन चिंतन शिविर से निकला संकेत अगर सही है तो लगता नहीं है कि पार्टी इस सवाल पर अभी पॉप्युलिज्म से ऊपर उठने के मूड में है।