कांग्रेस का 'संवैधानिक राष्ट्रवाद'
कांग्रेस की पिछले शनिवार को हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति की महत्त्वपूर्ण बैठक में राहुल गांधी ने तीन खास बातें कहीं
राहुल गांधी ने कहा कि दिल्ली के टीवी चैनल और अखबार कांग्रेस की विचारधारा तय नही कर सकते। इसके बाद उन्होंने कहा कि कांग्रेस की विचारधारा 'संवैधानिक राष्ट्रवाद' है। जाहिर है, अब पार्टी हलकों में इस बात पर चर्चा चलेगी कि आखिर ये 'संवैधानिक राष्ट्रवाद' है क्या।
कांग्रेस की पिछले शनिवार को हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति की महत्त्वपूर्ण बैठक में राहुल गांधी ने तीन खास बातें कहीं। पहली बात तो यह कि वे दोबारा पार्टी का अध्यक्ष तभी बनें, इसके पहले यह जरूरी है कि पार्टी अपनी विचारधारा के बारे में स्पष्टता बनाए। इसी से जुड़ी बात उन्होंने यह कही कि दिल्ली के टीवी चैनल और अखबार कांग्रेस की विचारधारा तय नही कर सकते। इसके बाद उन्होंने कहा कि कांग्रेस की विचारधारा 'संवैधानिक राष्ट्रवाद' है। जाहिर है, अब पार्टी हलकों में इस बात पर चर्चा चलेगी कि आखिर ये 'संवैधानिक राष्ट्रवाद' है क्या। हाल में कुछ बुद्धिजीवियों ने इस शब्द की चर्चा छेड़ी है। लेकिन अगर तह में जाएं, तो उसमें वैसा कोई नयापन नहीं है। दरअसल, स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में ही राष्ट्रवाद की तीन अलग-अलग धाराएं उभरी थीं। उनमें दो धर्म आधारित विचार थेः हिंदू राष्ट्रवाद और मुस्लिम राष्ट्रवाद। मुस्लिम राष्ट्रवाद को मानने वाली ताकतें 1947 में अपना अलग देश बनवाने में सफल रहीं। इसलिए आजादी के बाद भारत में मुख्य वैचारिक संघर्ष लंबे स्वतंत्रता आंदोलन से उभरी भारतीय राष्ट्रवाद की धारणा और हिंदू राष्ट्रवाद के विचार के बीच रहा।
आजादी के बाद पहले चार दशक तक भारतीय राष्ट्रवाद मुख्यधारा रहा। तीन दशक यह कमजोर होने लगा और अब हिंदू राष्ट्रवाद का दौर है। भारतीय राष्ट्रवाद के तहत सोच की कम से कम पांच अंतर्धाराएं तलाशी जा सकती हैः साझा आर्थिक हितों की पहचान, दिमागी खुलेपन पर आधारित सांस्कृतिक मेलजोल, व्यापक जन भागीदारी, प्रगति और आर्थिक विकास की खास समझ, और सामाजिक न्याय। अगर गौर से देखें, तो भारतीय संविधान इन्हीं वैचारिक धाराओं का एक मूर्त दस्तावेज है। कभी इतिहासकारों ने राष्ट्रवाद संबंधी कांग्रेस के विचारों को आर्थिक राष्ट्रवाद कहा था। लेकिन मुमकिन है कि संवैधानिक राष्ट्रवाद शब्द के तहत वो तमाम धाराएं संभवतः बेहतर ढंग से समाहित दिखें। बहरहाल, राहुल गांधी का वैचारिक स्पष्टता पर जोर देना और उस स्पष्टता की दिशा बताना महत्त्वपूर्ण है। इसलिए कांग्रेस के पतन का एक प्रमुख विचारों से उसका हटना रहा है। इस वजह से धीरे-धीरे यह समझना कठिन हो गया कि आखिर कांग्रेस किस सोच के लिए खड़ी है और किसका प्रतिनिधित्व करती है? अगर ये भ्रम सचमुच दूर हुआ या ऐसा होने की शुरुआत हुई, तो कांग्रेस के पुनर्जीवन की आशाएं भी जग सकती हैँ। लेकिन क्या ऐसा होगा, यह लाख टके का सवाल है।
नया इण्डिया