कांग्रेस की खींचतान: नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा से सियासी अस्थिरता और प्रशासनिक कामकाज भी होता है प्रभावित
पंजाब में कांग्रेस की आपसी खींचतान खत्म होने के पहले जिस तरह छत्तीसगढ़ कांग्रेस में भी उठापटक शुरू हो गई है
पंजाब में कांग्रेस की आपसी खींचतान खत्म होने के पहले जिस तरह छत्तीसगढ़ कांग्रेस में भी उठापटक शुरू हो गई है, उससे तो यही लगता है कि इस दल में जो संकट शीर्ष स्तर पर व्याप्त है, वही राज्यों में भी पैर पसार चुका है। बात केवल पंजाब और छत्तीसगढ़ कांग्रेस में ही जारी कलह की नहीं है, क्योंकि राजस्थान में भी सब कुछ ठीक नहीं है। इस राज्य में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच उपजा विवाद जिस तरह कांग्रेस नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद भी सुलझा नहीं, उससे यही जान पड़ता है कि या तो उसकी दिलचस्पी इन दोनों नेताओं की आपसी खींचतान को समाप्त करने में नहीं या फिर उसने यहां के मामले को उसके हाल पर छोड़ दिया है। यह समस्या को बढ़ाने वाला रवैया है। कांग्रेस नेतृत्व के इसी रवैये के कारण छत्तीसगढ़ कांग्रेस में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की समस्याएं बढ़ रही हैं। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव न केवल यह मानकर चल रहे हैं कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन निकट है, बल्कि यह भी आभास करा रहे हैं कि पार्टी नेतृत्व उनकी दलीलों से सहमत है। पता नहीं सच क्या है, लेकिन किसी भी राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा को लगातार हवा मिलने से वहां न केवल राजनीतिक अस्थिरता का माहौल तैयार होता है, बल्कि प्रशासनिक कामकाज भी प्रभावित होता है। जब ऐसा होता है तो आम लोगों को भी उसके बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं। इसका सटीक उदाहरण है पंजाब।