कृषि नीतियों पर भ्रम खत्म हो
किसान आन्दोलन जैसे-जैसे लम्बा खिंच रहा है वैसे-वैसे ही नये कृषि कानूनों को लेकर भ्रम बढ़ रहा है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। किसान आन्दोलन जैसे-जैसे लम्बा खिंच रहा है वैसे-वैसे ही नये कृषि कानूनों को लेकर भ्रम बढ़ रहा है। इसमें सबसे मुख्य विषय यह है कि कृषि उपज की खुली व्यापारिक विपणन प्रणाली से किसानों को क्या लाभ होगा ? इस मामले की पड़ताल करने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा और स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद कृषि उपज विपणन प्रणाली की समीक्षा करनी होगी। आजादी के बाद देश की कृषि उपज विशेषकर अन्न उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास इस तरह किये गये कि किसान का लागत मूल्य कम से कम रह सके और उसकी उपज का मूल्य बाजार में आम आदमी की जेब के दायरे में हो। इसकी वजह यह थी कि देश की उस समय की 80 प्रतिशत से अधिक गरीब जनता की आमदनी बहुत कम थी। इस सन्दर्भ में 1963 में लोकसभा में समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया की इतिहास प्रसिद्ध चर्चा तीन आना बनाम 15 आना को सन्दर्भ में लेते हुए यह सिद्ध किया जा सकता है कि भारत में तब तक गरीबी का आलम क्या था। डा. लोहिया ने केवल यही सिद्ध किया था कि भारत के औसत आदमी की दैनिक आमदनी तीन आना रोज की है जबकि योजना आयोग कह रहा था कि यह आमदनी 15 आने रोज की है। उस समय सार्वजनिक वितरण प्रणाली बहुत कारगर थी जिसके माध्यम से सस्ता अनाज व ईंधन (मिट्टी का तेल) आम जनता को सुलभ कराया जाता था।