दिव्यांगों की फिक्र

सड़कों पर बसों के ठहराव की जगहों पर ऐसे दृश्य आम हैं, जिनमें किसी शारीरिक बाधा का सामना कर रहा व्यक्ति वाहन में सवार होने की कोशिश कर रहा होता है और दिक्कत होने पर उसे आसपास के अन्य व्यक्तियों की मदद लेनी पड़ती है।

Update: 2021-12-11 00:53 GMT
सड़कों पर बसों के ठहराव की जगहों पर ऐसे दृश्य आम हैं, जिनमें किसी शारीरिक बाधा का सामना कर रहा व्यक्ति वाहन में सवार होने की कोशिश कर रहा होता है और दिक्कत होने पर उसे आसपास के अन्य व्यक्तियों की मदद लेनी पड़ती है। ऐसा इसलिए होता है कि बसों की सीढ़ियों की बनावट या फिर बस स्टाप की सतह की ऊंचाई ऐसे लोगों की सुविधा के अनुकूल नहीं होती है। लगभग हर जगह दिव्यांग व्यक्ति की मदद के लिए किसी अन्य का आगे आना निश्चित रूप से मानवीय भावनाओं के लिहाज से एक आदर्श स्थिति है, मगर व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि ऐसी नौबत ही न आए।
केंद्र सरकार के परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इस दिशा में एक और पहलकदमी की है। देश भर में दिव्यांग लोगों के अनुकूल बस स्टाप बनाने के मकसद से उसने एक मसविदा तैयार किया और इस संबंध में जनता से राय मांगी है। नई नीति के तहत सभी बस स्टाप इस तकनीक से तैयार किए जाने की बात कही गई है, ताकि कोई भी दिव्यांग उसका आसानी से प्रयोग कर सके।
हालांकि सरकार के स्तर पर दिव्यांग लोगों की जीवन-स्थितियों को सहज और आसान बनाने के लिए विशेष अवसरों से लेकर अन्य कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई है। लेकिन कई जगहों पर अब भी ऐसे लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सड़कों के किनारे बने बस ठहराव की बनावट ऐसी होती है कि अगर वहां बस आकर रुके तो किसी दिव्यांग के लिए उसमें सवार होना आसान नहीं होता। ताजा पहल अगर इस समस्या को व्यापक स्तर पर सुलझा पाती है तो इसे व्यवस्था को सरकार के एक महत्त्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा जाएगा।
यों दिल्ली और अन्य महानगरों में मेट्रो स्टेशनों पर हर स्तर पर दिव्यांगों के अनुकूल व्यवस्था की गई है। सड़कों पर सार्वजनिक वाहनों में इस तरह की समस्या से निपटने के लिए कई शहरों में ऐसी बनावट वाली लो फ्लोर यानी नीची सतह वाली बसें चलाई गई हैं, जिसमें दिव्यांग लोगों को सवार होने में आसानी होती है। लेकिन बस स्टाप की सतह की बनावट कई बार इसमें भी एक बाधक तत्त्व का काम करती है। अगर वहां सतह की ऊंचाई और उसका ढांचा बसों के दरवाजे के मुताबिक तैयार किया जाए, तो यह दिव्यांगों के लिए एक अनुकूल व्यवस्था होगी।
इस लिहाज से केंद्र सरकार की ओर से दिव्यांगों के अनुकूल बस स्टाप तैयार करने को लेकर की गई पहल निश्चित रूप से ऐसे तबके की फिक्र में है, जो जन्म से या फिर किसी हादसे की वजह से शरीरिक रूप से अपंग है, लेकिन अपने साहस और संघर्ष से अपनी सीमा में कुछ करने की कोशिश करता है। किसी अंग से लाचार होने के बावजूद कोई व्यक्ति अन्य तरह से समर्थ और काबिल हो सकता है।
ऐसे व्यक्ति को सिर्फ अवसर और सहयोग की जरूरत होती है। हमारे समाज में दिव्यांगों को लेकर एक स्तर पर सहानुभूति या दया का भाव तो दिख जाता है, मगर उनकी क्षमताओं का स्वीकार कम देखा जाता है। बल्कि कई स्तरों पर ऐसे लोगों को लेकर अपेक्षित संवेदनशीलता नहीं देखी जाती है। इसे सामाजिक स्तर सशक्तिकरण की प्रक्रिया में जरूरी पहलू छूट जाने के तौर पर देखा जा सकता है। लेकिन अगर यही भाव या आग्रह सार्वजनिक सेवाओं के स्तर पर दिखता है, तो स्वाभाविक रूप से सवाल उठते हैं।

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