मोदी को सम्पूर्ण क्लीन चिट
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को 2002 में हुए गोधरा कांड से पूरी तरह बरी करते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा है कि उनके गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री काल में वह सांप्रदायिक दंगों में उनकी और उनकी सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।
आदित्य चोपड़ा: सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को 2002 में हुए गोधरा कांड से पूरी तरह बरी करते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा है कि उनके गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री काल में वह सांप्रदायिक दंगों में उनकी और उनकी सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद पिछले 20 वर्षों से श्री मोदी की छवि को खराब करने के जो प्रयास एक विशेष वर्ग के कथित धर्मनिरपेक्षतावादी या उदारवादी संगठन कर रहे हैं उस पर अब विराम लग जाना चाहिए। वास्तविकता यह है की जब 27 फरवरी को गोधरा में अयोध्या से आ रही राम सेवकों से भरी जो ट्रेन की बोगियों में आग लगी थी और उसमें राम भक्त जलकर राख हो गए थे तो उसकी प्रतिक्रिया में पूरे गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे जिसमें भारी जनधन की हानि हुई थी। इन दंगों को लेकर उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे श्री नरेंद्र मोदी पर एक विशेष समुदाय के लोगों ने आरोप लगाने शुरू किए थे कि उनके समुदाय के खिलाफ हिंसा करने के लिए दूसरे समुदाय के लोगों को भड़काने का काम किया जा रहा है। गुजरात में उस समय हुए दंगों में भारी हिंसा हुई थी और निश्चित रूप से एक समुदाय के लोगों को दूसरे समुदाय के लोगों ने निशाना बनाया था। परंतु इन सांप्रदायिक दंगों को लेकर जिस प्रकार कथित धर्मनिरपेक्षतावादी और उदारवादी कहे जाने वाले लोगों ने गुजरात सरकार के ही कुछ अफसरों के साथ मिलकर जिस प्रकार का विमर्श खड़ा करने का प्रयास किया उसे लेकर गुजरात शासन के प्रति संदेह का वातावरण बन गया था। दंगों में मारे गए लोगों की ओर से न्यायालय में गुहार भी लगाई गई और स्थानीय मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट अदालत में मुकदमा भी दायर हुए। गुजरात दंगों को लेकर विभिन्न मुकदमे दायर किए गए परंतु एक मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की किसी में भी संलिप्तता साबित नहीं हो पाई। यह मामला इतना बड़ा हो गया था कि स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों की जांच कराने के लिए सीबीआई के तत्कालीन निदेशक श्री राघवन के नेतृत्व में विशेष जांच दल का गठन किया। इस दल ने पूरे मामले की काफी खोजबीन की और हर सबूत और गवाह की गहन जांच की और खुद मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से घंटों-घंटों लंबी पूछताछ की। मगर विशेष जांच दल को भी श्री मोदी के खिलाफ कोई ऐसा सबूत या प्रमाण नहीं मिल पाया जिससे यह साबित हो सके कि गोधरा ट्रेन अग्नि कांड के बाद गुजरात में उपजे सांप्रदायिक दंगों के पीछे कोई साजिश रची गई थी। विशेष जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में श्री मोदी को पूरी तरह दोषमुक्त करार दिया और अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंप दी। परंतु 2017 में गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस के एक सांसद श्री जाफरी की पत्नी श्रीमती जाकिया जाफरी ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष जांच दल की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए याचिका दायर की कि गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोदी की भूमिका की जांच में विशेष जांच दल ने खामियां छोड़ी हैं। इस मामले की पुनः जांच की जानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने जाकिया जाफरी की इस याचिका को पूर्ण निरस्त करते हुए कहां है की विशेष जांच दल की इस रिपोर्ट में कि गुजरात दंगों के पीछे कोई बड़ी साजिश नहीं थी पूरी तरह सही है। न्यायालय के तीन न्यायमूर्तियों की पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले को पिछले 16 साल से लगातार सुनाए रखने की कोशिशें किसी ना किसी रूप में की जा रही हैं। यह उचित नहीं है। विशेष जांच दल की रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे शक की उंगली तत्कालीन गुजरात की मोदी सरकार की तरफ उठ सके। श्रीमती जाकिया की याचिका में जो दलीलें दी गई हैं वह तथ्यों पर खरी नहीं उतरती हैं। कुछ लोगों के व्यक्तिगत विचारों या कुछ विशिष्ट घटनाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है गुजरात दंगों के पीछे कोई बड़ी साजिश की गई थी। यह कहना गलत होगा। बल्कि इसके विपरीत कुछ तत्व इस मामले को संकाय रखना चाहते हैं और इसके लिए ऐसे सबूत ढूंढते हैं जिनमें कोई तथ्य नहीं होता। अतः विशेष जांच दल की रिपोर्ट पर शक जाहिर करना वास्तव में इसकी विश्वसनीयता को घेरे में लेने की तरह है और इसका मतलब सर्वोच्च न्यायालय के विवेक पर भी सवाल उठाना है। इसलिए हम भारतवासियों को अब स्पष्ट हो जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को जो लोग किसी ना किसी बहाने आलोचना के घेरे में खड़ा करने की फिराक में रहते हैं उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने ताकीद की है कि वे लोकतंत्र के स्तंभों के साथ छेड़छाड़ ना करें।