शांति से संवाद

यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे विध्वंसक युद्ध को समाप्त करने के संदर्भ में खुला पत्र। प्रिय राष्ट्रपति पुतिन, राष्ट्रपति जेलेंस्की और दुनिया के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष महोदय! महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी की जन्म स्थली भारत से मैं आप सबका अभिवादन करता हूं!

Update: 2022-03-18 05:57 GMT

Written by जनसत्ता: यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे विध्वंसक युद्ध को समाप्त करने के संदर्भ में खुला पत्र। प्रिय राष्ट्रपति पुतिन, राष्ट्रपति जेलेंस्की और दुनिया के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष महोदय! महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी की जन्म स्थली भारत से मैं आप सबका अभिवादन करता हूं! आप सबको यह पत्र शांति से संवाद के लिए लिख रहा हूं। मानव जब-जब युद्ध करता है, हानि मानवता की होती है। युद्ध कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं रहा है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जिस तरह से रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, उससे मैं बहुत व्यथित हूं, क्योंकि इक्कीसवीं सदी का मानव कहने को तो खुद को बहुत बुद्धिमान समझता है, लेकिन आज भी 'युद्ध' जैसे अमानवीय शब्द को अपनी जीवन-पद्धति के शब्दकोश से बाहर नहीं निकाल पाया है।

मैं भारत का नागरिक हूं। हमारा देश 'वसुधैव कुटुंबकम्' यानी समस्त विश्व अपना परिवार के मूल जीवन-सूत्र को मानता है। इस नाते यूक्रेन में मारे जा रहे निर्दोष लोग भी हमारे भाई है। इस घटना ने मुझे बहुत विचलित कर दिया है। मुझे नहीं मालूम है कि रूस-यूक्रेन के बीच में किन मूल बातों को लेकर यह युद्ध हो रहा है, लेकिन यह जरूर मालूम है कि इस युद्ध और इस तरह के तमाम युद्ध मानवता पर एक गहरा प्रश्न-चिह्न खड़ा करते रहे हैं। भारत महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर से लेकर महात्मा गांधी के बताए शांति, सद्भाव, सदाचार, सौहार्द और सादगी के मार्ग पर चलने वाला राष्ट्र है। इन तमाम मानवीय भावों को हम भारतीय पूरी तरह आत्मसात किए हुए हैं। यहीं कारण है कि हमारा दिल दुनिया के किसी भी कोने में हो रही हिंसा से तड़प उठता है।

दुनिया के तमाम नेताओं से मेरा प्रश्न है कि इस तरह के युद्धों से आपको क्या प्राप्त हो जाएगा? क्या युद्ध से शांति संभव है? क्या हिंसा से सद्भाव बनाए जा सकते हैं? निश्चित रूप से आप भी जानते हैं कि इसका उत्तर न ही है। फिर भी आप सभी अपनी-अपनी शक्तियों के प्रदर्शन से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। जो शक्ति निर्दोर्षों को मार रही हो, क्या उसे सही मायने में शक्तिशाली कहा जा सकता है? शायद नहीं! हमें याद रखना होगा कि प्रकृति के आगे कोई भी शक्ति सिवा एक भ्रम के कुछ और नहीं है। मनुष्य की महत्त्वाकांक्षाओं का हद से बढ़ जाना युद्ध जैसी स्थिति पैदा करता है, जो मानवीय जीवन को नारकीय बना देती है।

मैं रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की सहित दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्षों से आग्रह करता हूं कि वैश्विक-शांति के लिए सभी लोग युद्ध-नीति को छोड़कर संवाद-नीति के माध्यम से शांति-सद्भाव-सौहार्द का माहौल बनाने के लिए आगे आएं। 'शांति से संवाद' के रास्ते चलकर ही हम मानवता की रक्षा कर पाएंगे। युद्ध और संवाद में हमेशा से जीत संवाद की हुई है। वैसे भी युद्ध अपने आप में एक हारा हुआ शब्द है। जब-जब युद्ध होता है, कुछ लोगों की महत्त्वाकांक्षाएं बेशक जीतती हों, लेकिन हार मानवता की होती है।

उत्तराखंड के पर्वतीय गांवों के बंजर होते खेतों में अगर राज्य सरकार फिर लहलहाती हुई फसलें देखना चाहती है तो मेरा एक सुझाव है। राज्य सरकार इसके लिए 'उत्तराखंड भूमि उद्धार सेना' का गठन करे। इस सेना का प्रमुख कार्य राज्य के गांवों में बंजर पड़े खेतों में खेती करना हो। मनरेगा के तहत इन खेतों में लोगों से कार्य कराया जाए। अभी तक मनरेगा के तहत गांवों में गैर उत्पादक कार्य होते आए हैं। ग्राम सेवक इस सेना के सदस्य हों। इसमें स्थायी कर्मियों की संख्या सीमित हो। गांव के लोगों को भी इस कार्य से जोड़ा जाए।

सीमांत राज्य होने के कारण उत्तराखंड के गांवों को हमें वीरान होने से रोकना होगा। इस विचार को अमली जामा कैसे पहनाया जाए, इस पर सभी प्रबुद्ध लोगों को विचार करना होगा। यह सेना बाद में मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन और दुग्ध उत्पादन जैसे कार्यों में भी उपयोगी भूमिका निभा सकती है।


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