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दुमका में पैट्रोल से जलाकर मारी गई अंकिता का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब इसी जिले में नाबालिग की हत्या का दूसरा केस सामने आ गया।

Update: 2022-09-05 03:54 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: दुमका में पैट्रोल से जलाकर मारी गई अंकिता का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब इसी जिले में नाबालिग की हत्या का दूसरा केस सामने आ गया। आदिवासी समुदाय की गर्भवती लड़की का शव पेड़ से लटका मिला है। इस संबंध में भी मुस्लिम युवक अरमान को गिरफ्तार कर लिया गया। अरमान ने उसे प्रेम जाल में फंसा कर उसका यौन शोषण किया। जब युवती ने शादी का दबाव बनाया तो उसे साजिश के तहत पेड़ से लटका कर मार दिया गया। दूसरी खौफनाक खबर उत्तर प्रदेश के बरेली से आई है। कहते हैं प्रेम कोई जाति-धर्म नहीं देखता, लेकिन जब प्रेम अलग-अलग जाति में हो जाए तो उसका अंजाम बहुत खौफनाक होता है। बरेली में एक लड़के को दूसरे समुदाय की लड़की से प्रेम करना भारी पड़ गया और उसे अपनी जान गंवानी पड़ी। मरदसे में पढ़ाने वाली लड़की के पिता ने अपने रिश्तेदारों के साथ मिलकर लड़के को पीटा और उसके मुंह में कपड़ा ठूंस, हाथ-पांव बांधे और गले में फंदा डालकर उसे पेड़ से लटका दिया। आरोपी लड़के को जब प्रताड़ित किया जा रहा था तो उसने अपने गांव के व्हाट्सएप ग्रुप पर वॉयस मैसेज भेजे, जिसमें वह जान की भीख मांग रहा है, लेकिन ग्रामीणों ने कोई ध्यान नहीं दिया। वह जान की गुहार लगाता रहा। सुबह ही ग्रामीणों को उसकी हत्या की जानकारी मिली। अल्मोड़ा में भी अन्तर्जातिय विवाद में जगदीश चन्द्र नामक युवक की हत्या ​किए जाने का मामला तूल पकड़ रहा है। अखबारों के पन्ने सुबह सवेरे ही ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं। सारा देश स्तब्ध है कि आखिर हमारा समाज किस तरफ बढ़ रहा है। उधर कर्नाटक के प्रभावशाली लिंगायत मठ के संत शिवमूर्ति कहलाए जाने वाले मूरूघा शारणारू को मठ के स्कूल में पढ़ने वाली दो नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। संगायत कर्नाटक का एक बड़ा समुदाय है। जिसकी आबादी 17 प्रतिशत है। इस समुदाय के राज्य में 500 बड़े और 1000 छोटे मठ है। इनमें सबसे ज्यादा मठ ​लिंगायंतों के हैं। यद्यपि दुमका में हुई आदिवासी युवतियों की हत्या पर जमकर सियासत हो रही है। लेकिन देशभर में हो रही ऐसी घटनाओं से हर कोई मर्माहत है। कोई इसे लव जिहाद कह रहा है तो कोई इसे इसे प्यार का अंजाम। सभ्य समाज में ऐसे अपराधोें को स्वीकार नहीं ​िकया जा सकता। लेकिन इन घटनाओं को लेकर अनर्गल बयानबाजी कर देश को बांटने का काम किया जा रहा है। जिस तरह से देशभर में एक माहौल बन रहा है उससे तो ऐसे लगता है कि हर शहर में हैवान भरे पड़े हैं और इन हैवानों की नजरें गली के नुक्कड़ पर चौराहों पर और सार्वजनिक स्थलों पर अपने शिकार को ढूंढती रहती हैं। समाज में असुरक्षा का वातावरण बन रहा है और बेटियों के अभिभावक जब तक बेटियां घर नहीं लौट आतीं उन्हें सुख की सांस नहीं आती। समाज की मानसिकता पूरी तरह से कलुषित होती जा रही है और लगभग सभी अपराध साम्प्रदायिक रंग लेते जा रहे हैं। झारखंड में दुमका में अंकिता सिंह की हत्या के मामले में अब उत्तर प्रदेश के अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने एक विवादित बयान दिया है। राजू दास ने अंकिता सिंह की हत्या के आरोपी शाहरुख को पैट्रोल डालकर जलाकर मारने वाले को 11 लाख नकद देने का ऐलान कर दिया है। महंत राजू दास अपने बयान के समर्थक में यह तर्क देते हैं कि सामान्य परिवार की अंकिता ने मरते वक्त कहा था कि जैसे मैं तड़प-तड़प कर मर रही हूं, वैसे ही उसको भी सजा मिले। इसीलिए मैंने दोषी युवक को आग लगाकर मारने वाले को 11 लाख का इनाम देने की घोषणा की है। भावनाओं के आवेश में कई लोग ऐसी बयानबाजी कर देते हैं लेकिन जरा सोचिये-क्या संत का भगवा वस्त्र पहनकर ऐसा बयान देना उचित है-क्या यह बयान मध्य युगीन बर्बरता की याद नहीं दिलाता। संपादकीय :शेख हसीना का स्वागतबेटियों पर बढ़ते अत्याचार...इसका हलविकास रथ पर सवार भारतरूबी खान के 'गणपति बप्पा'आईएमएफ श्रीलंका और भारतविपक्षी एकता की 'कुर्सी दौड़'-क्या लोकतंत्र में खून का बदला, खून जैसे फरमान सहन किए जा सकते हैं। -अगर संत का आवरण ओड़ कर महंत ऐसे ही बयानबाजी करते रहे तो यह एक समुदाय विशेष को कानून व्यवस्था अपने हाथ में लेने के लिए उकसाने जैसा नहीं है।-अगर ऐसा ही वातावरण सृजन किया जाता रहा तो फिर न्यायपालिका पर देशवासियों का भरोसा ही उठ जाएगा और सड़कों पर अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी।देश में अपराधों का निपटारा न्यायपालिका ही करती है और इंसाफ के लिए न्यायपालिका की साख अभी पूरी तरह से कायम है। निर्भया बलात्कार कांड के बाद देश में बलात्कार कानूनों को कड़ा किया गया। बलात्कार रोकने के लिए कानूनों को कड़ा करने के लिए एक बड़ा जनांदोलन भी हुआ। निर्भया को इंसाफ ​दिलाने के लिए आक्रोशित युवा राष्ट्रपति भवन के द्वार पर पहुंच गए थे, लेकिन लगता है कड़े कानूनों के बावजूद अपराधियों को कानून का कोई खौफ नहीं है। जहां तक पुलिस का सवाल है उस पर हमेशा लापरवाही बरतने और जाति विशेष के लोगों को बचाने के आरोप लगते रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि समाज की मानसिकता को कैसे बदला जाए। जब तक अपराधों को साम्प्रदायिकता के नजरिये से और सियासत के नजरिये से देखा जाएगा तब तक कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। लड़कियों से दुष्कर्म घिनौना अपराध है। जब तक इन अपराधों के लिए दोषियों को कड़ी सजा नहीं मिलती तब तक कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सबसे बड़ा सवाल यह है कि बेटियों के लिए समाज की मानसिकता बदले तो कैसे बदले। बेटियां न घर में सुरक्षित हैं और न किसी मठ के स्कूल में।

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