इन 100 सालों में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने चीन को एक मजबूत देश बना कर दुनिया के सामने पेश किया है. जिसका लोहा अमेरिका जैसा सुपर पावर देश भी मानता है. आज दुनिया की सबसे बड़ी 500 कंपनियों में से 124 चाइनीज कंपनियां हैं. पिछले साल ही टॉप 500 बड़ी कंपनियों की लिस्ट निकाली गई थी, जिसमें चीन अमेरिका से कहीं ऊपर था. चीन की ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उसी के शहर वुहान से निकले कोरोना वायरस ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया में तबाही मचाई. लेकिन किसी भी देश और संस्था की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वह चीन पर खुले तौर पर कार्रवाई कर सके.
सुपर पावर बनना चाहता है चीन?
चीन को लगता है कि यह सदी एशिया की है और उसकी अगुवाई चीन करेगा. यही वजह है कि वह अब सुपर पावर बनना चाहता है. यानि अमेरिका से उसका तमगा छीनना चाहता है. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर यह सुपर पावर का तमगा होता क्या है? और चीन कैसे अमेरिका से इसे छीन लेगा? दरअसल सुपर पावर बनने की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है. हां जानकार जरूर कहते हैं कि जिस देश की सबसे शक्तिशाली सेना होगी, पूरी दुनिया में आर्थिक, कूटनीतिक और सांस्कृतिक रूप से प्रभाव होगा वही सुपर पावर कहलाएगा. लेकिन आज अगर इस मामले में देखें तो अमेरिका चीन से कहीं आगे है. चीन ने जरूर पिछले 100 सालों में बहुत तरक्की की है. लेकिन आज भी वह अमेरिका से पीछे हैं. सैन्य ताकत पर अमेरिका सालाना 649 बिलियन डॉलर खर्च करता है. वहीं चीन 250 बिलियन डॉलर खर्च करता है. हालांकि चीन पिछले 24 सालों से यह खर्च बढ़ाता रहा है. अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी भी पूरी दुनिया में चीन से बेहतर है. टेक्नोलॉजी के मामले में भी अमेरिका फिलहाल चीन से कहीं ऊपर है. इसलिए चीन को सुपर पावर बनने के लिए अभी और मेहनत और इंतजार करना होगा.
व्यापार की दृष्टि से चीन कहीं आगे है
चीन ने पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व बनाया तो इसके पीछे जो एक सबसे बड़ी ताकत थी वह थी उसकी व्यापारिक रणनीति और खुद को मैन्युफैक्चरिंग हब बना लेना. आज पूरी दुनिया का सबसे ज्यादा सामान चीन में ही मैन्युफैक्चर होता है. टेक्नोलॉजी के मामले में भी चीन तेजी से ऊपर आ रहा है. 2019 में मोबाइल एप्स के जरिए चीन में कुल खर्च 54 लाख करोड़ डालर का था, यह खर्च अमेरिका के मुकाबले 551 गुना ज्यादा बढ़ा था. वहीं चीन की ओपन सोर्स ऑटोनॉमस व्हीकल प्लेटफॉर्म के 130 पार्टनर हैं. चीन की डीजेआई कंपनी दुनिया की ड्रोन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है. चीन टेक्नोलॉजी में इतनी तेजी से आगे बढ़ना चाहता है कि वह 5G के साथ-साथ अब 6G की भी टेस्टिंग करना चाहता है. इसके लिए उसने 2020 में एक टेस्ट सेटेलाइट भी अंतरिक्ष में भेजा है.
चीन अपनी कंपनियों को तेजी से प्रमोट कर रहा है जिसकी वजह से वह दुनिया में नए नए मुकाम हासिल कर रही हैं. चीन की 145 ऐसी कंपनियां हैं जिनकी वैल्यू 1 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है. इनमें से 89 कंपनियां तो मात्र 4 सालों में खड़ी की गई हैं.
खुद को गरीबी के दलदल से तेजी से निकाल रहा है चीन
चीन जितनी तेजी से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है, उतनी ही तेजी से वह अपने लोगों को गरीबी के दलदल से भी निकाल रहा है. बीते 30 सालों में चीन ने लगभग 74 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल से बाहर निकाल दिया है. प्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा मिडिल क्लास चीन में है. साल 1918 में चीन की आबादी में मिडिल क्लास का हिस्सा 3.1 फ़ीसदी था जो साल 2020 में बढ़कर 50.8 फ़ीसदी हो गया.
वहीं अमेरिका की बात करें तो वहां लोग आज भी गरीबी से जूझ रहे हैं. अमेरिकी जनगणना ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक आज भी 8 में से एक अमेरिकी आधिकारिक रूप से गरीब है. जबकि इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिका में आज भी 397 लाख लोग गरीब हैं. इस गति से देखें तो अमेरिका को फिलहाल अपनी गरीबी दूर करने में लगभग 40 साल और लगेंगे.
चीन का 'मेड इन चाइना 2025' प्लान
चीन उद्योग और तकनीक के क्षेत्र में अमेरिका से भी ज्यादा ताकतवर बनना चाहता है. इसलिए उसने एक लक्ष्य रखा है मेड इन चाइना 2025. उसने साल 2015 में यह लक्ष्य रखा था. चीन की सरकार ने 10 साल का एक विजन रखा था जिसके चलते वह साइबरपावर बनना चाहता है. चीन इस योजना के लिए काफी पैसा लगा रहा है. इसके साथ ही चीन ने अपने देश में नए व्यापारिक नियम बनाए हैं, जिससे किसी विदेशी कंपनी को अगर चीन के बाजार में आना है तो उसे किसी लोकल कंपनी से गठजोड़ करना ही होगा. इसके साथ ही चीन अब विदेशों की बड़ी कंपनियों को भी खरीदता जा रहा है. अभी कुछ वक्त पहले ही चीन की कंपनी गिली ने जर्मनी की मर्सिडीज बेंज कार बनाने वाली जर्मन कंपनी डेमलर में सबसे ज्यादा शेयर खरीद लिया. और उस कंपनी की सबसे बड़ी शेयरहोल्डर बन गई. दुनिया में अपने आईफोन के लिए लोकप्रिय कंपनी एप्पल भी चीन के स्थानीय कंपनी के साथ गठजोड़ करके अपना काम चला रही है. इसके साथ ही अब वह चीन में पहला डाटा स्टोरेज सेंटर खोलने जा रही है, जिससे चीनी सरकार को इस कंपनी से जुड़ी सारी अहम जानकारियां मिल जाएंगी.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से अमेरिका को पीछे छोड़ देगा चीन
किसी भी देश को ताकतवर उसकी सेना बनाती है. अमेरिका आज सुपर पावर इसलिए है क्योंकि उसकी सैन्य ताकत दुनिया में सबसे बड़ी और शक्तिशाली है. लेकिन अब चीन अमेरिका को पीछे छोड़ने के लिए अपनी सेना में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बढ़ा रहा है. इसके जरिए वह हथियारों के इस्तेमाल से दूर बैठे ही युद्ध को कंट्रोल कर सकता है. चीन अपने यहां कई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मिसाइलों को विकसित कर रहा है जो बिना किसी मानवीय मदद के टारगेट का पता लगाकर उसे ध्वस्त कर देंगे. चीन का एक शहर है शेन्ज़ेन, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर काम करने वाली कंपनियों का एक मेला लगा है. यह कंपनियां हर सेक्टर के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करती हैं. बीबीसी हिंदी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन 2007 से ही एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित करने की कोशिश कर रहा है जो युद्ध के मैदान में तेज गति से और बेहद सटीक तरीके से फैसले लेने में निपुण होगा.
ड्रोन पॉलिसी के जरिए अमेरिका पर हमला
जब ड्रोन दुनिया में आए तो अमेरिका ने अपनी तकनीक किसी भी देश को देने से साफ इनकार कर दिया. क्योंकि उसे मालूम था कि ड्रोन उसकी सेना की सबसे बड़ी शक्ति हैं. लेकिन चीन ने जैसे ही इस ड्रोन तकनीक का पता लगाया उसने पूरी दुनिया में ऐलान कर दिया कि वह अपनी ड्रोन तकनीक दूसरे देशों को भी निर्यात करेगा. चीनी उन देशों को यह ड्रोन तकनीक निर्यात कर रहा है जो या तो अमेरिका के करीब नहीं है या फिर अमेरिका से खफा रहते हैं. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के मुताबिक चीन ने अब तक मिश्र, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब और बर्मा को ड्रोन बेचे हैं.
चीन तेजी से बना रहा है न्यूक्लियर प्लांट
द इकोनॉमिस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने पिछले 20 सालों में किसी भी देश से ज्यादा तेजी से न्यूक्लियर प्लांट बनाएं हैं. अभी तक अमेरिका न्यूक्लियर पावर में सबसे ऊपर है, लेकिन चीन उसे पीछे छोड़ने की होड़ में इतना आगे निकल चुका है कि उसने अपने देश में न्यूक्लियर प्लांट तेजी से बनाने शुरू कर दिए हैं. चीन में अब तक 400 वाट कैपेसिटी के न्यूक्लियर प्लांट हैं. जिससे वह सिर्फ अमेरिका और फ्रांस से पीछे है. लेकिन अगर इतनी ही तेजी से चीन न्यूक्लियर प्लांट बनाता गया तो वह दिन दूर नहीं जब वह अमेरिका और फ्रांस को भी पीछे छोड़ देगा.