2024 तक दुनिया के 96 प्रतिशत लोकतांत्रिक देशों में होने वाले आम चुनावों पर चीन की काली नजर?
कई शताब्दियों तक यूरोप ने अफ्रीका को शोषण और गुलामी के जाल में जकड़े रखा
ज्योतिर्मय रॉय.
पिछले कुछ दशकों में चीन (China) ने विश्व भू-राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने और खुद को एक आर्थिक महाशक्ति (Economic Superpower) के रूप में स्थापित करने के लिए 'विस्तारवाद नीति' अपनाई है. इसके लिए अफ्रीकी महाद्वीप (African Continent) के अधिकांश देशों में चीन ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिय संसाधनों में भागीदारी, कच्चे तेल, निवेश और व्यापार में भागीदारी के साथ-साथ सुरक्षा और सैन्य क्षेत्रों में भी अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है. लोगों का मानना है की वास्तव में चीन एक संसाधन शिकारी है जो वर्तमान में अफ्रीका को लूट रहा है.
कई शताब्दियों तक यूरोप ने अफ्रीका को शोषण और गुलामी के जाल में जकड़े रखा. इसलिए, ये देश अपने सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए पूर्व की ओर विशेष रूप से रूस और चीन की ओर आकर्षित हुए. पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा इन देशों की बुनियादी ढांचे के लिए वित्त पोषण और विशेषज्ञता के लिए किए गए दीर्घकालिक प्रयासों और सहयोग के विपरीत, चीन उन देशों की दीर्घकालिक विकास की परवाह नहीं करता और उनकी संस्कृति और परंपरा से भी छेड़छाड़ नहीं करता.
अफ्रीकी देशों के बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीन की 40 प्रतिशत भागीदारी
अफ्रीका के शहरी विकास में उछाल और बुनियादी ढांचे के लिए इसकी तत्काल आवश्यकता और उभरते महानगरों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए चीन को उद्धारकर्ता के रूप में प्रेरित किया. इन अफ्रीकी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीनी कंपनियों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जिसमें से 40 प्रतिशत तक किसी न किसी तरह से बीजिंग की भागीदारी शामिल है. अफ्रीका के इन देशों को लेकर पश्चिमी देशों और चीन की विचारधारा में बुनियादी अंतर है. अफ्रीका के साथ चीन का संबंध पश्चिमी राष्ट्रों की उत्पादन क्षमता और तुलनात्मक कीमतों तक सीमित नहीं है. बीजिंग इन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए ऋण के रूप में साझेदारी की संरचना कर रहा है, न कि पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा दिये जा रहे अनुदान के रूप में.
अफ्रीका के कई देश चीन के ऋण जाल में फंस चुके हैं, जिससे इन देशों का निकट भविष्य में निकलना आसान नहीं है. एक अनुमान के मुताबिक, अफ्रीका पर चीन का 153 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का कर्ज है. जानकारों का मानना है की, गहरी साजिश के आड़ में चीन इन निवेशों को बहुत रहस्यपूर्ण तरीकों से गुप्त रखता है और कर्ज लेने वाले देशों पर भी इन समझौतों और निवेश को गुप्त रखने का दबाव बनाता है.
पश्चिमी देशों को चीन द्वारा दशकों से चल रहे इस तरह के गुप्त निवेश की जानकारी नहीं थी. ऐसे ऋणों को गुप्त रखने से इन राष्ट्रों के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इन ऋणों को गुप्त रखा जाता है क्योंकि इन ऋणों की शर्तों में ऋण की चूक के मामले में इन देशों की राष्ट्रीय संपत्ति और संसाधनों के स्वामित्व अधिकारों को त्यागने की शर्तें शामिल हैं. पारदर्शिता की यह कमी विकास के प्रति चीन के ईमानदार दृष्टिकोण और सर्वोत्तम व्यावसायिक प्रथाओं पर संदेह करने के लिए पर्याप्त है. कुल मिलाकर, ये नीतियां इन राष्ट्रों के लोकतंत्रों को विकसित करने में मददगार नहीं रही हैं, जो कई दशकों तक गृहयुद्धों में फंसे रहे और सत्तावादी शासनों द्वारा शासित थे.
चीन कभी उदारवाद का अनुयायी नहीं रहा
चीन ने कभी भी खुद को उदारवाद का अनुयायी नहीं बताया और न ही यह उसका कोई मानवीय मिशन है. चीन की सॉफ्ट पावर और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ने हमेशा क्षेत्रीय संस्कृति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र से अधिक व्यापार को प्राथमिकता दी है. हालांकि, चीन का मानना है कि लोकतंत्र एक ऐसी चीज है जो महत्वहीन है. इसे किसी भी प्रकार से मुद्रीकृत नहीं किया जा सकता है और इसे पश्चिमी उदारवादी दृष्टि से देखना अदूरदर्शी है. चीन ने अब अफ्रीका में अपनी भागीदारी को धीरे-धीरे कम करने और बुनियादी ढांचे और ऋणों में अपने निवेश को कम करने का फैसला किया है. जबकि कुछ जानकारों का मानना है कि चीन महामारी के कारण वैश्विक आर्थिक मंदी को देखते हुए यह कदम उठा रहा है. कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि अफ्रीका के देशों में चीन के ऋण जाल के नकारात्मक परिणाम के बारे में बढ़ती जागरूकता और अफ्रीका देशों की प्रति पश्चिमी देशों की बदलती नीति को देखते हुए, चीन अब अपने संसाधनों को वहां कम करने की कोशिश कर रहा है. चीन अब अफ्रीका से धीरे-धीरे बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है.
मध्य पूर्व पर अब चीन की निगाह
अफ्रीका से चीन के पलायन का मतलब है कि वह अब नए ठिकानों की तलाश करेगा, शायद चीन अपने अगले कार्यस्थल को मध्य पूर्व में स्थानांतरित कर रहा है. सीरिया के कथित पुनर्निर्माण के नाम पर चीन अपनी भविष्य की योजनाओं की शुरुआत कर रहा है. अक्सर देखा जाता है कि चीन के हस्तक्षेप और दोस्ती ने स्थानीय सामाजिक और राजनीतिक अराजकता की ताकतों को ही मजबूत किया है. चीन की आक्रामक विस्तारवाद नीति के खिलाफ पश्चिमी देश अमेरिका के नेतृत्व में संगठित हो रहे हैं.
चीन की आक्रामक विस्तारवाद नीति ने विश्व भू-राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी है. अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश चीन की इस विस्तारवाद नीति के खिलाफ संगठित हो रहे हैं. चीन के वर्चस्व को रोकने के लिए पश्चिमी देशों द्वारा चीन के खिलाफ अघोषित आर्थिक प्रतिबंध अभियान चलाया जा रहा है, जो चीन की प्रगति के लिए फायदेमंद नहीं है.
2024 के अंत तक विश्व के 96 प्रतिशत लोकतांत्रिक राष्ट्रों में आम चुनाव, भारत और अमेरिका जैसे राष्ट्रों के आम चुनावों मे भी चीन का हस्तक्षेप देखने को मिलेगा. 2022 से 2024 के अंत तक, दुनिया के 96 प्रतिशत लोकतांत्रिक देशों में आम चुनाव होंगे. दुनिया की दो महाशक्तियां अमेरिका और चीन दुनिया की भू-राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इन चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश करेंगी. चीन को डर है कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र का इस्तेमाल चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए करेगा. इसलिए चीन संयुक्त राष्ट्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इन चुनावों के माध्यम से छोटे देशों में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है और वहां कठपुतली सरकार लाना चाहता है.
आम चुनावों में विदेशी प्रभाव देखने को मिलेगा
जानकारों का कहना है कि इसी वजह से इन देशों के आने वाले आम चुनावों में विदेशी प्रभाव देखने को मिलेगा. भारत और अमेरिका जैसे देश के आम चुनाव में भी चीन की प्रभाव देखने को मिलेगा. विशेषज्ञों का मानना है की यह एक रणनीति के तहत इन चुनावी देशों में छोटे-छोटे आंदोलनों के जरिए मौजूदा सरकार के खिलाफ अराजकता का माहौल बनाया जाएगा. चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान इन विभिन्न देशों में हिंसा बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
निस्संदेह चीन महाशक्ति बनना चाहता है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. लेकिन ये आकांक्षाएं कमजोर या हताश राष्ट्रों की कीमत पर नहीं होनी चाहिए. विश्व की समस्त विवादों का समाधान बातचीत के माध्यम से ही संभव है. इसलिए, गोष्टी की राजनीति को छोड़कर चीन को मानवतावादी बनने की जरूरत है, तभी दुनिया की नजरों में चीन महान बनेगा.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)