निरीक्षण की कमी से बाल सुधार गृहों में रह रहे बच्चे असुरक्षित
बाल आश्रय या सुधार गृहों में रह रहे बच्चों के साथ शारीरिक शोषण का यह कोई पहला मामला नहीं है।
बाल आश्रय या सुधार गृहों में रह रहे बच्चों के साथ शारीरिक शोषण का यह कोई पहला मामला नहीं है। इस तरह के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक तौर पर भी ये बच्चे शोषण का शिकार होते हैं। यदि बच्चों को बाल गृह में पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलती हैं तो वह भी एक प्रकार से उनका शोषण ही है। ये हर बच्चे का हक है कि बाल गृह में उसे सभी आवश्यक सुविधाएं दी जाएं। वर्ष 2017 में जहांगीरपुरी स्थित एक बाल गृह से कुछ बच्चे भाग गए थे।
आयोग ने जब बाल गृह का निरीक्षण किया तो वहां पर चौंकाने वाली स्थिति थी। रसोईघर में चूहों की भरमार थी। शौचालय की स्थिति भी बेहद खराब थी। शौचालय में दरवाजा भी नहीं था। बच्चों के लिए साबुन की व्यवस्था तक नहीं थी। बच्चों की शिकायत थी कि उनके साथ शारीरिक शोषण हुआ है।
यह सब कुछ कमेटियों द्वारा उचित निगरानी के अभाव की वजह से हुआ था। इस मामले के बाद दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) ने त्वरित कार्रवाई भी की थी। ऐसी घटनाएं न हों और बच्चे इन बाल गृहों में खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें इसके लिए समय-समय पर निरीक्षण करना आवश्यक है। कहीं न कहीं इसमें कमी है।
एक ही कमेटी पर पूरा दारोमदार
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग दो तरह से बच्चों की निगरानी करता है। इसमें पहले वे बच्चे होते हैं जो कुछ समय के लिए बाल गृहों में रहते हैं। दूसरे वे जो लंबे समय के लिए रहते हैं। छोटी अवधि वाले बच्चे अक्सर बाल मजदूरी, भिक्षावृत्ति के होते हैं, जबकि लंबी अवधि वाले वे बच्चे होते हैं, जिनके अभिभावकों का कुछ पता नहीं होता है। यदि किसी बच्चे को बाल गृह में मानसिक या शारीरिक तौर पर कोई कष्ट होता है तो
अधीक्षक की जिम्मेदारी होती है कि वह उसका समाधान करे।
दो साल पहले तक डीसीपीसीआर ने जिला स्तरीय कमेटियां बनाई थीं जो बाल गृहों में जाकर निरीक्षण करती थीं, अब शायद उस कमेटी को भंग कर दिया गया है। अब एक ही कमेटी है जिसकी अध्यक्षता महिला एवं बाल विकास विभाग करता है। ये कमेटी ही सभी बाल गृहों में निरीक्षण करती है। जेजे एक्ट की धारा 75 के तहत संरक्षक कमेटी के पास इतने अधिकार हैं कि यदि बाल गृहों में किसी भी चीज की कमी हो तो सीधे संरक्षक को आरोपी बनाया जा सकता है।
जरूरी है मानक संचालन प्रक्रिया का पालन
बाल गृहों में बच्चों को कैसे रखना है, इसके लिए सरकार द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया बनी हुई है। लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता। कई जगहों पर ये प्रक्रिया तक लोगों को नहीं पता। बाल गृहों को जो एनजीओ संचालित करते हैं, उनकी फाइल सरकार तक जाती है। सरकार द्वारा उनके बाल गृहों का निरीक्षण होता है फिर उनको अनुमोदन मिलता है, लेकिन इस कार्य में पारदर्शिता जरूरी है।
एनजीओ द्वारा संचालित बाल गृहों का तो खास तौर पर समयस मय पर निरीक्षण होना चाहिए। बाल गृहों में जनता को भी सीधा-सीधा स्वयंसेवक के तौर पर जोड़ने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों के छात्र और विभिन्न सरकारी संगठनों के सदस्यों को भी इसमें शामिल कर सकते हैं। ये स्वयंसेवक समय-समय पर बाल गृहों का निरीक्षण करने के साथ ही बच्चों को परामर्श भी दे सकते हैं।
कर्मचारी बदलते रहने से बच्चों का उनसे नहीं हो पाता जुड़ाव
दिल्ली में मौजूदा समय में दस बाल कल्याण समितियां हैं, जो बेहद कम हैं। दिल्ली की जनसंख्या के हिसाब से हर एसडीएम के क्षेत्र में एक बाल कल्याण समिति होनी चाहिए। ऐसे में कुल 23 और जिला कल्याण समितियां बनाई जानी चाहिए। समितियों की संख्या बढ़ेगी तो निरीक्षण भी अपने आप बढ़ेगा। सरकारी बाल गृहों में संरक्षक की जिम्मेदारी अधिक होती है, इसलिए वहां ज्यादा समस्याएं नहीं आती हैं, लेकिन कुछ बाल गृह जो गैरसरकारी संगठनों (एनजीओ) के माध्यम से चल रहे हैं, वहां अक्सर कमी देखने को मिलती है।
इसका मुख्य कारण है वहां पर अनुबंध के आधार पर काम करने वाले कर्मचारी। समय समय पर कर्मचारी बदलते रहने कई तरह की समस्याएं आती हैं, क्योंकि हर एक कर्मचारी का व्यवहार अलग होता है। इनके प्रशिक्षण स्तर में भी कमी रहती है। हर बार कर्मचारी बदलने से बच्चों को उसके साथ मानसिक तौर पर जुड़ने में भी दिक्कत होती है।
दोषियों पर उचित कार्रवाई
नहीं होने की वजह से बाल एवं सुधार गृहों में बच्चों के साथ शोषण की घटनाएं होती रहती हैं। दुव्र्यवहार के ज्यादातर मामलों में वहां के अधिकारी और कर्मचारी ही संलिप्त पाए जाते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए समस्या की जड़ तक पहुंचना जरूरी है।
किशोर न्याय अधिनियम-2015 के मुताबिक बच्चों का उनके जुर्म, आयु, लिंग के आधार पर वर्गीकरण कर उन्हेंं अलग-अलग रखा जाना चाहिए, लेकिन इसका पालन बमुश्किल ही होता है। निरीक्षण समिति का गठन कर