Child Trafficking: तस्करों के शिकंजे में मासूम, बंगाल में चौंकाने वाले आंकड़े
पर तस्करी उन्मूलन अभी कोसों दूर है।
vतस्करों के चंगुल से बचाकर लाई गई एक बच्ची को, जो पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले की निवासी है, 17 जुलाई, 2021 को गांव का ही एक परिचित कोलकाता में नौकरी व शादी का झांसा देकर ले गया और 11 दिन उसे ईंट-भट्ठे में रखा। बाद में किसी तरह चाइल्ड नाम की संस्था ने उसे छुड़ाया। इसी ब्लॉक की एक अन्य बच्ची 13 साल की उम्र में गांव के ही एक तस्कर के चंगुल में फंसी। तस्कर ने उसके पिता से शादी की बात की, पर वह राजी नहीं हुए। बाद में उसका अपहरण कर वह उसे बर्दवान ले गया। वह खुशकिस्मत रही कि दो दिन बाद ही बर्दवान व शांतिपुर पुलिस की तत्परता से वह छुड़ा ली गई।
पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (क्राई) की एक रिपोर्ट आई, जिसमें देश, खासकर पश्चिम बंगाल में बच्चों की तस्करी के चौकाने वाले आंकड़े थे। क्राई के मुताबिक 2021 में पश्चिम बंगाल में हर दिन बच्चों के खिलाफ अपराध के कुल 9,523 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 98.6 फीसदी लड़कियां थीं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के बाद बच्चों के खिलाफ कुल अपराधों में पश्चिम बंगाल चौथे स्थान पर रहा। भारत में जितनी नाबालिग लड़कियों की तस्करी होती है, उनमें से करीब 42 फीसदी पश्चिम बंगाल की होती हैं। बाकी तीन राज्यों-असम, बिहार और ओडिशा से होती हैं। भारत के इन राज्यों में बालिकाओं की तस्करी का 97 प्रतिशत हिस्सा है।
पश्चिम बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना व नदिया जिले और उत्तर बंगाल के डुअर्स का इलाका लड़कियों की तस्करी के लिए कुख्यात है। फोटो जर्नलिस्ट स्मिता शर्मा ने भी पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में मानव तस्करी पर काफी काम किया है। वे बताती हैं कि इन सीमावर्ती इलाकों में व्याप्त गरीबी, लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा हीन और बोझ समझने जैसे कई कारण हैं, जिससे इन इलाकों में मानव तस्करी कुटीर उद्योग बन गया है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के एक अध्ययन के अनुसार, दक्षिण 24 परगना में 37 फीसदी से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, जिससे कम उम्र में विवाह और तस्करी को बढ़ावा मिलता है। तस्करी के कम से कम 60 फीसदी मामलों में तस्कर पीड़ितों के परिचित होते हैं। नतीजतन, कानून लागू करने वाली एजेंसियां पूरी तरह कामयाब नहीं हो पातीं। बीएसएफ के अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है कि बांग्लादेश से पिछले एक दशक में 12 से 30 साल की उम्र के पांच लाख से अधिक लोग अवैध तरीके से भारत आए। करीब 50 हजार बांग्लादेशी लड़कियां मानव तस्करी का शिकार होकर हर साल भारत पहुंचती हैं। वहीं नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पाया कि अकेले 2018-19 में, 35,000 नेपाली नागरिकों की तस्करी की गई थी।
यूनिसेफ के प. बंगाल प्रमुख मोहम्मद मोहिउद्दीन के मुताबिक, बच्चों और महिलाओं को बांग्लादेश से लाया जाता है और भारत के मुख्य शहरों, जैसे चेन्नई, बंगलुरु, मुंबई और दिल्ली, यहां तक कि देश के बाहर भी तस्करी की जा रही है। सीमा के दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के बनगांव सब-डिवीजन और बांग्लादेश के जैसोर जिले में तस्करी की पट्टी है। उत्तर बंगाल के डुअर्स इलाके के आदिवासियों को अंग्रेज चाय बागानों में काम करने के लिए ले गए थे। यहां की आदिवासी लड़कियों को आमतौर पर दिल्ली व अन्य शहरों में घरेलू कामकाज में लगाया जाता है। तस्कर आकर्षक लड़कियों को देह व्यापार में धकेल देते हैं और कुछ को राजस्थान, हरियाणा व पंजाब जैसे राज्यों में दुल्हन बनाकर बेच देते हैं।
उत्तर 24 परगना की केयाखाली एंपावरमेंट ऐंड यूथ एसोसिएशन की सचिव शकीला खातून ने बताया कि उनकी संस्था तस्करी की शिकार महिलाओं के पुनर्वास का यथासंभव प्रयास कर रही है। कुछ को वह अपनी संस्था में स्वयंसेवक बना लेती हैं। यूनिसेफ जैसी संस्थाएं भी जमीनी स्तर पर जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार, पंचायतों, बाल संरक्षण समूहों और स्वयं सहायता समूहों व गैर सरकारी संगठनों के साथ काम कर रही हैं, पर तस्करी उन्मूलन अभी कोसों दूर है।
सोर्स: अमर उजाला