पुनर्विचार का मौका

नगालैंड में शनिवार को हुई सुरक्षा बलों की कार्रवाई और उसके बाद भड़की हिंसा से उपजे सवाल 14 नागरिकों की मौत तक सीमित नहीं हैं। सभी मानते हैं कि इस मामले में सुरक्षा बलों से चूक हुई है।

Update: 2021-12-08 02:03 GMT

नगालैंड में शनिवार को हुई सुरक्षा बलों की कार्रवाई और उसके बाद भड़की हिंसा से उपजे सवाल 14 नागरिकों की मौत तक सीमित नहीं हैं। सभी मानते हैं कि इस मामले में सुरक्षा बलों से चूक हुई है। खुद गृहमंत्री ने घटना पर अफसोस जताया है और जांच की भी घोषणा की है। लेकिन ऐसी घटनाओं पर सरकार क्या स्पष्टीकरण देती है, इससे बड़ा सवाल यह बनता है कि सरकारी स्पष्टीकरण को उस क्षेत्र के लोग किस तरह देखते हैं। खासकर नॉर्थ-ईस्ट के संदर्भ में देखा जाए तो ऐसे तमाम मामलों में जांच की घोषणाएं होती रही हैं, लेकिन उनका कोई खास नतीजा निकलता नहीं देखा गया।

इसकी जड़ में है आफ्सपा यानी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट, जो सुरक्षा बलों को असाधारण अधिकार देता है। इस बार भी सरकार की तरफ से यह प्रतिबद्धता दर्शाई गई है कि जांच में जो भी दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कानून के मुताबिक उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी। पर क्या आफ्सपा के रहते दोषियों के खिलाफ कानूनन किसी तरह की कार्रवाई संभव हो पाएगी? आज भी यह कानून नगालैंड, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और जम्मू-कश्मीर में लागू है। इसके तहत सुरक्षा बलों के जवान और अधिकारी संदेह के आधार पर किसी को गोली मार सकते हैं, बिना किसी वॉरंट के घर की तलाशी ले सकते हैं और कानूनी कार्रवाई से भी बचे रह सकते हैं।
पिछले बीस वर्षों के दौरान जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से आर्मी के खिलाफ कार्रवाई की जितनी भी सिफारिशें आईं, केंद्र ने आफ्सपा के तहत उन सभी मामलों में मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया। स्वाभाविक ही आफ्सपा झेल रहे तमाम इलाकों में इसे काले कानून के रूप में देखा जाता है। इस बार भी घटना के बाद से आफ्सपा हटाने की मांग तेज हो गई है। बीजेपी के सहयोगी दलों से जुड़े दो मुख्यमंत्री- नगालैंड के नेफ्यू रियो और मेघालय के कॉनराड के संगमा भी ऐसी मांग करने वालों में शामिल हो चुके हैं।
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आतंकवाद या उग्रवाद से निपटना काफी मुश्किल काम है और सुरक्षा बलों को भी अपनी जान जोखिम में डाले रहते हुए ड्यूटी करनी पड़ती है। इसके बावजूद सुरक्षा बलों या आम लोगों के बीच इस तरह का अहसास जमने देना ठीक नहीं है कि सुरक्षा बलों के जवान कुछ भी करें उनके खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। कई चर्चित मामलों में भी सुरक्षा बलों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई न होने से ऐसा भाव बनने लगा है और यह भी एक वजह है कि कई विशेषज्ञ भी आफ्सपा हटाने की जरूरत बताते रहे हैं। खासकर चीन के साथ सीमा विवाद से गरमाए माहौल और म्यांमार में सैन्य सत्ता की वापसी के चलते सीमावर्ती राज्यों में बने हालात को ध्यान में रखें तो आफ्सपा पर पुनर्विचार की यह जरूरत और बढ़ जाती है।

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