जब तक सरकारी कामकाज पारदर्शी नहीं बनेगा तब तक सीबीआइ की छापेमारी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना मुमकिन नहीं
जिसका इस्तेमाल कर सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों को बदला जा सकता है।
भ्रष्टाचार के संदेह में देश के करीब सौ ठिकानों में केंद्रीय जांच ब्यूरो की छापेमारी से ऐसा कुछ संकेत भले ही मिले कि भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई की गई, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि इस तरह की छापेमारी पहले भी की जा चुकी है और नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। यदि सरकार अथवा सीबीआइ की ओर से यह सोचा जा रहा है कि रह-रहकर होने वाली छापेमारी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में सफलता मिलेगी तो ऐसा कुछ होने वाला नहीं है, क्योंकि अभी तक का अनुभव यही कहता है कि ऐसी कार्रवाई न तो कोई नजीर पेश करने में सक्षम है और न ही भ्रष्ट तत्वों के मन में भय का संचार करने में। इसी कारण बार-बार छापेमारी करने की नौबत आती है। नि:संदेह सीबीआइ की छापेमारी के दौरान सरकारी अधिकारियों की घूसखोरी अथवा आय से अधिक संपत्ति के जो मामले मिलते हैं, उन पर आगे कार्रवाई भी होती है, लेकिन यह मुश्किल से ही पता चलता है कि किसे कितनी सजा मिली? किसी को यह बताना चाहिए कि सीबीआइ की छापेमारी का अंतिम नतीजा क्या रहता है?