सतर्क मौद्रिक नीति
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति ने अपनी द्वि-मासिक बैठक में देश की आर्थिक स्थिति और कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव न करने का फैसला किया है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति ने अपनी द्वि-मासिक बैठक में देश की आर्थिक स्थिति और कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव न करने का फैसला किया है। समिति ने अर्थव्यवस्था में नकदी की उपलब्धता के लिए अनुकूल रुख बनाए रखने का भी तय किया है। यह फैसला अपेक्षित था, क्योंकि ऐसी कोई बड़ी वजह नहीं है कि रिजर्व बैंक अपनी नीतियों में परिवर्तन करे। गौरतलब यह है कि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट पिछले साल अक्तूबर से यही बने हुए हैं।
रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति में परिवर्तन दो वजहों से कर सकता है। एक, विकास दर को बढ़ाना है, जिसके लिए अमूमन रेपो रेट घटाई जाती है, क्योंकि इससे बैंकों को सस्ती नकदी मिलती है और वे भी अपनी ब्याज-दरें घटाकर सस्ते कर्ज दे सकते हैं। अर्थशास्त्र के सिद्धांत के मुताबिक, जब बाजार में वस्तुओं की पूर्ति के मुकाबले नकदी ज्यादा हो, तो महंगाई बढ़ती है, इसलिए इसे घटाने के लिए बाजार से नकदी कम करने की कोशिश की जाती है। इसके लिए रेपो रेट बढ़ाकर कर्ज महंगे करना एक उपाय है। फिलहाल कोरोना के चलते रिजर्व बैंक की कोशिश यही है कि नकदी की उपलब्धता ज्यादा हो। इसके लिए वह कई तरीके अपना रहा है, हालांकि विकास की गति बार-बार रुक जाती है। पहली लहर के बाद जब अर्थव्यवस्था कुछ गति पकड़ रही थी, तभी दूसरी लहर आ गई और मामला फिर वहीं आ गया। इसकी वजह से रिजर्व बैंक ने इस वित्त-वर्ष में विकास दर के अपने अनुमान को 10.5 प्रतिशत से घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया है, हालांकि मौजूदा अस्थिर परिस्थितियों में यह अनुमान भी कितना टिकेगा, बताना मुश्किल है। महंगाई का रिजर्व बैंक का अनुमान 5.1 प्रतिशत है, जो अपेक्षा के अनुकूल है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से महंगाई जैसे बढ़ रही है, उस पर रिजर्व बैंक को विचार करना होगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में खनिज तेल व उपभोक्ता वस्तुओं के दाम तेज हो रहे हैं और घरेलू महंगाई भी बढ़ रही है, जबकि देश में मांग का कोई दबाव नहीं है। रिजर्व बैंक को देर-सवेर एक और समस्या पर गौर करना होगा। अर्थव्यवस्था में कोई तेजी नहीं है, लेकिन स्टॉक मार्केट तेजी से ऊपर चढ़ रहा है। वास्तविक अर्थव्यवस्था और स्टॉक मार्केट के बीच यह दूरी सारी दुनिया में है। यह विरोधाभास काफी दिनों से चला आ रहा है और किसी न किसी दिन स्टॉक मार्केट को यथार्थ का सामना करना पडे़गा। इसकी एक वजह यह भी है कि कोरोना के चलते बाजार में केंद्रीय बैंक ने जो आसान नकदी डाली है, वह वास्तविक अर्थव्यवस्था की जगह स्टॉक मार्केट में जा रही है, क्योंकि बाजार में मांग न होने की वजह से कोई निवेश नहीं करना चाहता।
रिजर्व बैंक की अर्थव्यवस्था के लिए उम्मीद कृषि क्षेत्र की मजबूती, अच्छे मानसून और दुनिया में आर्थिक गतिविधियों के तेज होने पर टिकी है। कृषि क्षेत्र तो पिछले साल भी डूबती हुई अर्थव्यवस्था में एक उम्मीद की किरण बना हुआ था और अब भी उम्मीद बड़ी हद तक इस पर है, तो हमें सरकार से किसानों के लिए कुछ ज्यादा करने की अपेक्षा करनी चाहिए। रिजर्व बैंक ने कहा कि बहुत कुछ वैक्सीनेशन पर निर्भर है। अगर युद्ध स्तर पर तेजी से वैक्सीन लगती है, तो कोरोना पर काबू किया जा सकेगा, और तभी अर्थव्यवस्था में भी आत्मविश्वास जगेगा।