कार बाजार का आईना
यह देश के उपभोग स्तर में एक तरफ भारी गिरावट को बताता है
By NI Editorial
यह देश के उपभोग स्तर में एक तरफ भारी गिरावट को बताता है। एंट्री लेवल के कार वो परिवार खरीदते हैं, जिनके परिवहन का जरिया उसके पहले दोपहिया वाहन थे। यही लोग सस्ती कारें खरीदते हैं। कार बाजार के मौजूदा ट्रेंड का संदेश यह है कि ऐसे लोगों की स्थिति कमजोर पड़ गई है।
भारत के कार बाजार की जो तस्वीर अब सामने आई है, वह असल में भारत की आज की अर्थव्यवस्था का आईना है। खबर यह है कि एंट्री लेवल यानी शुरुआती रेंज की कारों का बाजार तेजी से घट रहा है। 2012 में कुल कार बाजार में इस दर्जे की कारों का हिस्सा आधा था। अब एक तिहाई बचा है। 2016-17 में ऐसी कुल 31 ब्रांड की कारें बाजार में थीं। अब 19 बची हैँ। दरअसल, तीन कंपनियों मारुति, हुंदै और टाटा को छोड़ कर बाकी लगभग सभी कंपनियों ने इस सेगमेंट की अपनी कारों को या तो बाजार से समेट लिया है, या समेटने का एलान कर चुकी हैँ। दूसरी तरफ एसयूवी कारों का हिस्सा बढ़ा है। तो यह ट्रेंड किस बात का सूचक है? यह असल में देश के उपभोग स्तर में एक तरफ भारी गिरावट और दूसरी तरफ बढ़ती समृद्धि को बताता है। एंट्री लेवल के कार वो परिवार खरीदते हैं, जिनके परिवहन का जरिया उसके पहले दोपहिया वाहन थे। जब उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तो वे सस्ती कारें खरीदते हैं। कार बाजार के मौजूदा ट्रेंड का संदेश यह है कि ऐसे ग्रोथ की परिघटना कमजोर पड़ गई है। तमाम दूसरे आर्थिक संकेतक इस बात का पहले से संकेत देते रहे हैँ। क्रमिक विकास का यह क्रम वर्तमान सरकार के कुछ नीतिगत दुस्साहसों से टूटा। कार बाजार , भारत के कार बाजार , भारत की अर्थव्यवस्था ,car market, car market of india, economy of india,
नोटबंदी, उलझी हुई जीएसटी और कोरोना काल में अचानक- अनियोजित लॉकडाउन ने आम परिवारों की अर्थव्यवस्था को क्षतिग्रस्त कर दिया। उसके बाद हुई रिकवरी अंग्रेजी के अक्षर के जैसी रही है। यानी एक रेखा बिल्कुल ऊपर की तरफ है और दूसरी रेखा नीचे की तरफ। धन का संचयन ऊपर की तरफ होता गया है। अब जो महंगाई का दौर आया है, उसमें ये परिघटना और मजबूत होगी। 2021-22 में थोक भाव मुद्रास्फीति 12.96 फीसदी रही, जो 1991-92 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है। बीते मार्च में ये दर 14 प्रतिशत को भी पार कर गई। यानी ये दर काफी ऊंची है। ऐसे में खुदरा मुद्रास्फीति दर में गिरावट की कोई संभावना नहीं हो सकती। इतनी ऊंची महंगाई का मतलब लोगों की वास्तविक आय में गिरावट होता है। तो जब लोगों की सारी आय आटा-चावल खरीदने में खर्च हो जाएगी, तो फिर वे टूव्हीलर या कार खरीदने को सोच भी कहां पाएंगे?