कैबिनेटः बड़े बदलाव, बड़ी उम्मीदें
तो उसका औचित्य कार्यकाल के अगले हिस्से में सरकार के बेहतर प्रदर्शन से ही सिद्ध हो सकता है।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में बुधवार को हुआ केंद्रीय मंत्रिमंडल का पहला फेरबदल किसी भी लिहाज से सामान्य या छोटा नहीं कहा जा सकता। चाहे मंत्रिमंडल के आकार का सवाल हो या इसमें शामिल होने वाले नए मंत्रियों की संख्या का या फिर मंत्रिमंडल से बाहर किए जाने वाले नामों का- कोई भी पहलू ऐसा नहीं है, जिसे नजरअंदाज किया जा सके। इसके साथ ही यह भी सही है कि इन तमाम बड़े बदलावों को अनावश्यक नहीं कहा जा सकता। देश जिन असाधारण चुनौतियों और ऐतिहासिक उथल-पुथल से गुजर रहा है, उसके मद्देनजर प्रधानमंत्री का अपनी टीम को दुरुस्त करना, उसे मजबूत बनाने की कोशिश करना स्वाभाविक ही है। इस लिहाज से सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है मंत्रिमंडल के 12 सदस्यों की छुट्टी करना। खासकर इसलिए कि इनमें स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे हर्षवर्धन ही नहीं, सोशल मीडिया कंपनियों की मनमानी पर अंकुश लगाने की मुहिम में जुटे रविशंकर प्रसाद भी शामिल हैं। हर्षवर्धन का कोरोना की दूसरी लहर के बीच देखी गई बदइंतजामी की भेंट चढ़ना स्वाभाविक माना जा सकता है, लेकिन रविशंकर प्रसाद का जाना मन में यह सवाल पैदा करता है कि क्या उन्हें ट्विटर जैसी कंपनियों की नाराजगी और अमेरिका सहित दुनिया भर में सरकार की कथित तौर पर खराब होती छवि का फल भुगतना पड़ा है? अगर ऐसा है तो क्या यह माना जाए कि अब सोशल मीडिया कंपनियों के प्रति सरकार के रुख में कोई नरमी आने वाली है? कुछ निहित स्वार्थी तत्व ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यह समझना जरूरी है कि नीतियों पर अमल की शैली को लेकर जो भी भेद-मतभेद हों, कोई सरकार अपनी इस नीति में छूट नहीं दे सकती कि देश की सीमा के अंदर हर किसी को यहां का कानून शिरोधार्य रख कर चलना पड़ेगा।