परमात्मा के प्रति भरोसा बढ़ाने से आसपास जो प्रिय-अप्रिय घट-बढ़ रहा है, उसका संतुलन हो जाएगा
ओपिनियन
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
खतरे जैसी कोई बात नहीं, क्योंकि आप खतरे में ही हैं। यह है इस समय का दृश्य। महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असुरक्षा लोगों के ऐसे गहने बन गए हैं कि इनसे किया हुआ शृंगार बहुत भयानक लगता है। घर के भीतर की आरजू और बाहर की तमन्नाएं मानो दम तोड़ने लगी हैं।
पहले घरों में एक पिछला दरवाजा होता था जिससे कुछ विशेष परिस्थितियों में प्रवेश या निर्गम किया जाता था, लेकिन अब तो मुसीबतें न सिर्फ दरवाजे से आती हैं, बल्कि खिड़की से, और तो और छप्पर फाड़कर आ रही हैं। हालात ने दिल झुलसा दिए और मौसम ने देह जला दी।
घर से बाहर निकलो तो लगता है वह घटा कहां से लाऊं, जो बरसे बहार बनकर...। तो अब इन सब चुनौतियों का सामना करने के लिए पूजा-प्रार्थना से जीवन में सजगता उतारी जाए। इस समय हमारे गहने सजगता और समझ होने चाहिए। सजगता से निर्णय सफल होंगे, समझ से शांति का जन्म होगा। परमात्मा के प्रति भरोसा बढ़ाते जाइए, आसपास जो प्रिय-अप्रिय घट-बढ़ रहा है, उसका संतुलन हो जाएगा।