इसके उन्मूलन के लिए एक सशक्त लोकपाल की संस्तुति की गई है। पुस्तक में जहां विविध समस्याओं के अनेक पहलुओं पर चिंतन हुआ है, वहीं समाधान के लिए विकल्प भी सुझाए गए हैं। 'वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारियों की भूमिका' जैसा आलेख भी पाठकों का ध्यान आकर्षित करता है। युवाओं में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी चोट की गई है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित अनुत्तरित प्रश्न पर भी गहन चिंतन हुआ है। पुस्तक हिमाचल में आर्य समाज की भूमिका को भी दर्शाती है। साहित्यिक विषयों में कामरेड यशपाल, शरद जोशी तथा श्रीलाल शुक्ल के सृजनात्मक संसार पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ है। शिक्षा की अनिवार्यता और शिक्षा में अवमूल्यन जैसे विषयों पर भी लेखक ने तर्कसंगत विचार रखे हैं। पुस्तक महात्मा गांधी का धार्मिक चिंतन भी सामने लेकर आती है। हिमाचल के जननायकों डा. यशवंत सिंह परमार तथा लालचंद प्रार्थी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर भी लेखक ने कलम चलाई है। 192 पृष्ठों की इस पुस्तक में सात खंड हैं जिनमें 33 आलेख संकलित किए गए हैं। पाठकों को यह पुस्तक जरूर पसंद आएगी।
-फीचर डेस्क
नशे के कारोबार पर प्रहार करता उपन्यास
सामाजिक विषय पर लिखा गया देवकन्या ठाकुर का उपन्यास 'मलाणा क्रीम' नशे की दुनिया का चित्रांकन करने के साथ-साथ इसके कारोबार पर जबरदस्त प्रहार भी करता है। इस उपन्यास के जरिए जहां नशामुक्त देवभूमि (हिमाचल) की परिकल्पना की गई है, वहीं व्यावहारिक समाधान भी किताब खोज लेती है। पूरे देश में कई दशकों से मलाणा क्रीम की तकरीर है। मलाणा क्रीम के बारे में जानने की उत्सुकता कई देशी और विदेशी युवाओं को हिमाचल की पहाडि़यों में पार्वती घाटी में बसे कसोल और मलाणा गांव ले आती है। मलाणा क्रीम विश्व की सर्वश्रेष्ठ चरस मानी जाती है। रेव पार्टियों में मलाणा क्रीम को बेस्ट चरस की ट्राफी भी दी जाती है। ये रेव पार्टियां देश-विदेश में आयोजित होती हैं। कुल्लू घाटी में व्याप्त मलाणा क्रीम की तस्करी ने यहां की कई पीढि़यों को तबाह कर दिया है।
हिमाचल की जेलें चरस तस्करी में पकड़े गए कई युवाओं से भरी पड़ी हैं। ये वे लड़के हैं जो भटक कर नशे की लत में पड़ गए या फिर जल्दी पैसा कमाने की चाह में सलाखों के पीछे पहुंच गए। ये सलाखें नशामुक्ति केंद्रों की हों या फिर जेलों की, उनके पीछे का जीवन भयावह ही है। यह पुस्तक ऐसे ही युवा की कहानी है। ऐसे ही अन्य युवाओं के परिजनों की पीड़ा भी इस उपन्यास में उभर आई है। उपन्यास जिस वातावरण का सृजन करता है, उसमें यह महसूस होता है जैसे पाठक नशे की काली दुनिया की सैर कर रहा हो। कुल दस अध्यायों में विभाजित उपन्यास की कथावस्तु में निरंतरता बनी रहती है। नशे की अजब-गजब दुनिया पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। उपन्यास के पात्र विविध चारित्रिक विशेषताएं रखते हैं। पात्रानुकूल संवाद उपन्यास की विशेषता है। सरल भाषा में लिखे गए इस उपन्यास को 152 पृष्ठों में समेटा गया है। प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली से प्रकाशित इस उपन्यास की कीमत 300 रुपए है। लेखिका की अनुभूति पर आधारित यह उपन्यास पाठकों को जरूर पसंद आएगा। अनुभूतिजन्य उपन्यास होने के कारण कथावस्तु में स्वाभाविकता है, कहीं भी कृत्रिमता दृष्टिगोचर नहीं होती है। लेखिका से उम्मीद है कि वह भविष्य में भी विविध विषयों पर ऐसे ही उपन्यासों का सृजन कर सामाजिक समस्याओं को उजागर करेंगी।
-राजेंद्र ठाकुर