मनीष मिश्रा। कहते हैं कि यदि आपने जरूरत के वक्त निस्वार्थ भाव से किसी की मदद की है, तो वह एक न एक दिन लौट कर जरूर आती है। कोविड की दूसरी लहर के भयावह आघात से जूझ रहे भारत के लिए सुकून की बात है कि हमारे विदेश मंत्री की एक अपील पर दुनिया भर के देश भारत की मदद के लिए खड़े हो गए हैं। मदद के लिए आगे आने वाले देशों की लंबी कतार में आज हमारे छोटे से पड़ोसी देश भूटान से लेकर चीन, सिंगापुर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपीय कमीशन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका जैसे देश खड़े हो गए हैं।
हमने अमेरिका का नाम अंत में लिया, जबकि वह हमारे सबसे बड़े व्यापार साझीदारों में एक है और हम यह मानते रहे हैं कि अमेरिका हमारा सबसे बड़ा सहयोगी देश है। पिछली सदी के अंतिम दशक से अब तक भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते निरंतर प्रगाढ़तर हुए हैं।
दोनों देशों में सरकारें चाहे जिस भी पार्टी की हों, द्विपक्षीय मामलों में उन्होंने लगातार आगे की ओर ही देखा है। वास्तव में यह विश्व के दो सबसे बड़े और परिपक्व लोकतंत्रों की सहज स्वाभाविक मैत्री-यात्रा थी, लेकिन गत जनवरी में अमेरिका में आई नई सरकार ने इस यात्रा में कुछ ब्रेक जैसा लगा दिया।
पिछले वर्ष जब कोविड ने दुनिया के तमाम देशों को झुलसाना शुरू किया और उसकी लपेट में सबसे ज्यादा अमेरिका आया, तब भारत ने सच्चे मित्र धर्म का पालन करते हुए उसे हाइड्रोक्लोरोक्विन जैसी दवा की आपूर्ति की थी। तब के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का आभार प्रकट किया था और सार्वजनिक रूप से उस दवा की तारीफ की थी। उस दवा का सेवन सिर्फ ट्रंप ने नहीं, अमेरिकी जनता ने भी किया था। इसलिए इस बार भारत को उम्मीद थी कि जब संकट हमारे ऊपर आया है, तो अमेरिका बिना कहे आगे आएगा और मदद करेगा।
पहले उसने 'अमेरिका फस्र्ट' की नीति पर चलने का तर्क दिया और बाद में हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर की वैश्विक अपील पर भी गोलमोल-सा जवाब ही दिया, लेकिन जब रविवार की रात हमारे सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से वार्ता की, तब अमेरिका की आंखें खुलीं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को कहना पड़ा, 'जिस तरह महामारी की शुरुआत में भारत ने अमेरिका की मदद की थी, उसी तरह जरूरत की इस घड़ी में हम भारत की मदद करने को लेकर दृढ़-संकल्प हैं।'यह हृदय-परिवर्तन इसलिए हुआ कि भारत की एक अपील पर दुनिया भर के देश हमारी मदद के लिए आगे आ गए और अमेरिका की खिंचाई होने लग गई। वह अलग-थलग पड़ने लगा। यही भारत की ताकत है। 135 करोड़ भारतीयों की ताकत।
आज अमेरिका भारत को कोविशील्ड वैक्सीन के उत्पादन हेतु कच्चा माल देने को तत्पर है। अनेक चिकित्सकीय साजो-सामान देने के साथ ही ऑक्सीजन निर्माण में भी सहयोग करेगा। साथ ही, विशेषज्ञों की एक टीम का भी गठन किया जा रहा है, जो जरूरी मदद करेगी। कई देश मदद को आगे आए हैं। यहां तक कि पाकिस्तान में भी भारत की मदद की जोरदार अपीलें हो रही हैं। एक-दो दिन में ही सहायता देश में पहुंच जाएगी और लगता है, तब तक हम स्वयं भी संभल जाएंगे। वैश्वीकरण के इस दौर में हम इसी तरह मिल-जुल कर इन भीमकाय चुनौतियों से दो-चार हो सकते हैं।