औरतों के सेक्सुअल हैरेसमेंट पर अपना मुंह खोलने से पहले ये कहानियां जरूर देख लीजिए
ये सिर्फ दुनिया भर की कुछ चुनिंदा फिल्म, डॉक्यूमेंट्री और सीरीज का संकलन भर नहीं है
मनीषा पांडेय। ये सिर्फ दुनिया भर की कुछ चुनिंदा फिल्म, डॉक्यूमेंट्री और सीरीज का संकलन भर नहीं है. ये इंटरनेट के उन बाकी आर्टिकल्स की तरह भी नहीं है कि 'नेटफ्लिक्स के दस बिंज वॉच थ्रिलर्स' या प्राइम की 'दस बेस्ट फिल्में.' ये किसी की दस चहेती, अवॉर्ड पाई फिल्मों की लिस्ट भी नहीं है. ये दुनिया में सबसे ज्यादा देखी, चाही, सराही गई लिस्ट भी नहीं है. ये रॉटेन टमैटोज और आईएमडीबी की सबसे ज्यादा रेटिंग वाली लिस्ट भी नहीं है. ये वो लिस्ट है जो आपने पहले कभी नहीं देखी होगी. ये वो लिस्ट है, जिसका शायद आपने कभी नाम भी न सुना हो. या शायद इनमें से कुछ का सुना हो, लेकिन ज्यादा तूल न दी हो क्योंकि इन फिल्मों को शायद ही किसी ने ऐसे देखा और दिखाया कि ये नहीं देखा तो क्या देखा.
ये वो लिस्ट है, जो हर औरत को, हर लड़की को जरूर देखनी चाहिए ताकि वो इसमें अपनी कहानी, अपना अक्स देख सके. वो देख सके कि वो दुनिया में अकेली नहीं है, जिसके साथ वो सबकुछ हुआ. उसके जैसी और भी थीं. कोई बोली, कोई नहीं बोली. लेकिन न बोलने से कहानी खत्म नहीं हो जाती.
ये वो लिस्ट है, जो हर मर्द को सेक्सुअल हैरेसमेंट के सवाल पर अपना मुंह खोेलने से पहले जरूर देख लेनी चाहिए. ये हर उस पुरुष को देखनी चाहिए, जिसे लगता है कि मर्द बेचारे और औरतें झूठी होती हैं. हर उस मर्द को देखनी चाहिए, जो सेक्सुअल हैरेसमेंट के सवाल पर आईपीसी की धारा 498 ए का हवाला देते हुए कहता है कि औरतें झूठ बोलती हैं और झूठे केस करती हैं. हर उस मर्द को देखनी चाहिए, जिसने अपने जीवन में कभी भी, कहीं भी, कम या ज्यादा किसी भी स्त्री को उसकी मर्जी के बगैर हाथ लगाया है और हर उस मर्द को भी, जिसने हाथ नहीं लगाया.
ये फिल्में, ये डॉक्यूमेंट्रीज और ये सीरीज हर किसी को इसलिए देखनी चाहिए कि इसमें से एक भी कहानी फिक्शन नहीं है. एक भी कहानी किसी ने अपने कमरे में बैठकर नहीं लिखी. एक भी कहानी ऐसी नहीं, जो सचमुच में घटी न हो. एक आंसू, एक तकलीफ, एक दुख ऐसा नहीं, जो सचमुच में हुआ नहीं.
ये सारी कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं.
ऑड्री एंड डेजी (डॉक्यूमेंट्री), 2016
ऑड्री एंड डेजी (डॉक्यूमेंट्री)
वर्ष 2016
कहां देखें – नेटफ्लिक्स
3 सितंबर, 2012. ये घटना है अमेरिका के सेराटोगा, कैलिफोर्निया की. एक लड़की थी 15 साल की ऑड्री पॉट. एक दिन वो स्कूल के एक दोस्त के घर पार्टी में गई. वहां उसने अपने दोस्तों के साथ ड्रिंक की. उसके स्कूल के लड़कों ने उसकी ड्रिंक में कुछ नशीला पदार्थ मिला दिया था. जब वो बेहोश गई तो लड़के उसे ऊपर एक कमरे में ले गए, उसके कपड़े उतारे, उसके पूरे शरीर पर ब्लैक मार्कर से अश्लील बातें लिखीं, जैसेकि वो स्लट है, वो प्रॉस्टीट्यूट है, वो होर है और उसी अवस्था में उसकी नग्न तस्वीरें खींची. अगले दिन लड़कों ने वो तस्वीरें पूरे स्कूल में सर्कुलेट कर दीं और सोशल मीडिया पर डाल दीं.
इस घटना के 9 दिन बाद ऑड्री ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.
उसकी शराब में नशीला पदार्थ मिलाने और उसकी नग्न तस्वीरें खींचने वाले तीन लड़कों के खिलाफ जुवेनाइल कोर्ट में मुकदमा चला. दो लड़कों को 30 दिन और एक को 45 दिन की सजा हुई.
ये डॉक्यूमेंट्री आपको सिर्फ डेजी की कहानी नहीं सुनाती. वो डेजी के साथ आपको उन लड़कों की, उनके स्कूल की, शहर की, पुलिस की, मोहल्ले की, पड़ोसियों की दुनिया में लेकर जाती है. वो लड़के जो 30 दिन जेल में बिताकर लौट आए हैं. जिनकी जिंदगियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. न उन्हें किसी सामाजिक बहिष्कार का, जजमेंट का सामना करना पड़ा. हां, थोड़ा दुख जरूर है कि उनसे गलती हो गई थी.
फिल्म में पैरलल एक दूसरी कहानी भी है ऐसी ही एक लड़की डेजी कोलमैन की. 2012 में वो 14 साल की थी, जो उसके भाई के दोस्त ने अपने और दोस्तों के साथ मिलकर उसके साथ रेप किया और बर्फीली रात में माइनस डिग्री टेंपरेचर पर उसे बेहोशी की हालत में घर के बरामदे में एक चादर में लपेटकर फेंककर चले गए. वो पूरी रात वहां बेहोश पड़ी रही.
डेजी की कहानी देखते हुए उस पुलिस वाले को देखिएगा, जो इनडायरेक्टली कहता है कि गलती लड़की की भी थी. एक रेप के चक्कर में जवान लड़कों को जेल में डालकर उनका ब्राइट फ्यूचर नहीं बर्बाद कर सकते. उन सारे लोगों को देखिएगा, जो डेजी पर ही शक करते और उसे कटघरे में खड़ा करते रहे. उन लोगों को भी, जिन्हें डेजी पर यकीन तो था, लेकिन जो कोर्ट में ये साबित नहीं कर पाए, न बलात्कारी लड़कों को सजा दिला पाए.
फिल्म खत्म उम्मीद पर होती है. आपकी सांस रुक नहीं होगी, दिल बैठ रहा होगा, लेकिन लगेगा कि डेजी ने आखिरकार उम्मीद और रौशनी की राह पकड़ ही ली. लेकिन मेरी आपसे रिक्वेस्ट है कि फिल्म खत्म होने के बाद एक बार डेजी कोलमैन का नाम गूगल कर लीजिएगा. गूगल पर एक बार ये ढूंढने की कोशिश जरूर करिएगा कि डेजी कोलमैन का फिर क्या हुआ.
आप उस रात सो नहीं पाएंगे. लेकिन यकीन मानिए, एक बर्बाद हुई जिंदगी के आगे एक बर्बाद हुई रात कुछ भी नहीं.
बॉमशेल (फीचर फिल्म), 2019
बॉमशेल (फीचर फिल्म)
वर्ष – 2019
कहां देखें – लॉयंसगेट
फॉक्स न्यूज और रोजर एल्स का नाम किसने नहीं सुना होगा. अमेरिका का नंबर वन टेलीविजन न्यूज नेटवर्क और उसका चेयरमैन और सीईओ रोजर एल्स. वो न्यूयॉर्क के सिक्स्थ एवेन्यू की सबसे महंगी, सबसे आलीशान बिल्डिंग के सबसे आलीशान कमरे में बैठा करता था और वहां से बैठकर अमेरिकन पॉलिटिक्स को कंट्रोल करता था. उसके हाथ में अथाह शक्ति थी. मीडिया टाइकून रूपर्ट मर्डोक का उसके सिर पर हाथ था. उसकी तंख्वाह पांच करोड़ रुपए थी. उसके सामने औरतें तो क्या, आसपास के मर्द भी कीड़े-मकोड़ों जैसे नजर आते थे.
25 साल की उम्र में मीडिया इंडस्ट्री में अपना कॅरियर शुरू करने वाले रोजर एल्स ने अपने 50 साल के कॅरियर में पचासों लड़कियों का यौन शोषण किया. उसने महिला न्यूज एंकरों के ट्राउजर उतरवाकर उन्हें छोटी स्कर्ट पहनवाई और कैमरे को उनके चेहरे से ज्यादा उनकी टांगों पर फोकस करने के लिए कहा. फॉक्स न्यूज के दफ्तर के अपने कमरे में उसने लड़कियों के कपड़े उतरवाए. जब बूढ़ा हो गया और सैकड़ों बीमारियों के कारण सेक्स करने के लायक नहीं रहा तो वाइग्रा खाकर उसने दफ्तर की लड़कियों को ओरल सेक्स देने के लिए मजबूर किया.
पचास साल तक, रोजर के 75 साल के होने तक ये खेल चलता रहा, जब कि एक दिन एक साहसी महिला न्यूज एंकर ग्रेचन कार्लसन ने चुप रहने और सेक्सुअल हैरेसमेंट सहने की बजाा कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जब तक अकेली ग्रेचेन बोल रही थी, रोजर को यकीन था कि वो दुनिया के सबसे महंगे वकीलों और सबसे ताकतवर कॉरपोरेट के दम पर ग्रेचेन को मिट्टी में मिला देगा. वो यही कर भी रहा था कि तभी एक के बाद एक 38 औरतें सामने आईं और बोलीं, रोजर एल्स ने मेरा भी यौन शोषण किया है.
एक औरत की आवाज दबाई जा सकती थी. पचास औरतों की कैसे दबाते. आखिरकार रूपर्ट मर्डोक को फैसला लेना पड़ा.
आप सोच रहे होंगे कि फिर रोजर एल्स का क्या हुआ.
रोजर एल्स के साथ तीन चीजें हुईं-
1- रोजर को फॉक्स न्यूज छोड़ना पड़ा.
2- कंपनी ने उसे 40 मिलियन डॉलर का एक्जिट पैकेज देकर बाइज्जत कंपनी से विदा किया.
3- उस समय राष्ट्रपति चुनाव के लिए कैंपेनिंग कर रहे डोनाल्ड ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से रोजर एल्स का बचाव किया और कहा कि लालची और झूठी औरतें रोजर को ब्लैकमेल कर रही हैं.
4- फॉक्स न्यूज से निकलने के बाद रोजर डोनाल्ड ट्रंप का मीडिया सलाहकार बन गया.
5- कंपनी ने ग्रेचेन कार्लसन को केस खत्म करने के लिए 3 मिलियन डॉलर दिए और पब्लिकली माफी मांगी.
बाकी कहानी जानने के लिए ये फिल्म देख लीजिए.
द लाउडेस्ट वॉइस (सीरीज), 2019
द लाउडेस्ट वॉइस (सीरीज)
वर्ष – 2019
कहां देखें – डिजनी हॉटस्टार
7 एपीसोड की ये सीरीज भी फॉक्स न्यूज और रोजर एल्स की उसी कहानी पर आधारित है, जिस पर फिल्म बॉमशेल है. कहानी का जिक्र मैं पहले ही कर चुकी हूं. बाकी अगर आप मर्दों के उसी समूह से ताल्लुक रखते हैं, जिन्हें समझ में नहीं आता कि ताकत क्या चीज होती है, पैसा और पावर कैसे बोलता है, ताकतवर और कमजोर का समीकरण कैसे काम करता है, कमजोर होना, वलनरेबल होना, कमतर होना और औरत होना क्या होता है तो आपको ये फिल्म देख लेनी चाहिए.
अगर आप किसी ताकतवर मर्द के आगे अपने कपड़े उतारकर कभी खड़े नहीं हुए क्योंकि आप कमजोर, वलनरेबल और डरे हुए हैं, क्योंकि आपकी नौकरी और कॅरियर दांव पर है, क्योंकि अगर आप बोलेंगे तो कोई आप पर यकीन नहीं करेगा, आपका साथ नहीं देगा और अगर आपको कतई अंदाजा नहीं है कि ये सब कुछ होना और महसूस करना क्या होता है तो आप ये वो फिल्म और ये सीरीज जरूर देख लीजिए.
आप डर, शर्मिंदगी, अपमान और अकेलेपन और कुल मिलाकर कहूं तो औरत होना क्या होता है, इस बात को समझना चाहते हैं तो इसे देख लीजिए.
बस थोड़ी सी ईमानदारी की दरकार है, और कुछ नहीं.
एलन वर्सेज फैरो (डॉक्यू ड्रामा), 2021
एलन वर्सेज फैरो (डॉक्यू ड्रामा)
वर्ष – 2021
कहां देखें – डिजनी हॉटस्टार
कला, सिनेमा, इंटेलेक्ट और लेफ्ट लिबरल पॉलिटिक्स के पक्ष में मेनस्ट्रीम प्रपोगंडा कैसे काम करता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण वुडी ऐलन और मिया फैरो की कहानी है. जिसने भी ये फिल्म नहीं देखी और पिछले कई दशकों ने इस विषय पर न्यूयॉर्क टाइॅम्स में छपे संपादकीय और आर्टिकल पढ़े हैं, उनसे पूछिए कि वुडी एलन के चाइल्स सेक्सुअल अब्यूज केस के बारे में आपकी क्या राय है तो वो आपसे कहेगा, "सब प्रपोगंडा है, झूठ है. मिया फैरो ने वुडी ऐलन से बदला लेने के लिए ये सब प्रपंच रचा." और वो ये इसलिए बोलेगा क्योंकि यही प्रपोगंडा पिछले दो दशकों से मीडिया द्वारा उसे लगातार यही फीड किया गया है.
और ये फीड किए जाने की भी एक वजह थी. सात साल की बच्ची के साथ किए सेक्सुअल अब्यूज से ज्यादा बड़ा था बतौर फिल्ममेकर, राइटर और इंटेलेक्चुअल वुडी ऐलन का कद. उसका नाम, शोहरत और पैसा.
इस फिल्म से पहले मैं भी वुडी ऐलन को बेनिफिट ऑफ डाउट देती रही. उसे डिफेंड करती रही, उसकी फिल्मों के मोह में डूबी रही. लेकिन इस फिल्म को देखते हुए लगा कि मानो किसी ने जलते हुए अंगार मेरे गले में ठूंस दिए हैं.
बात सिर्फ इतनी सी नहीं है कि वुडी ऐलन ने अपनी सात साल की गोद ली हुई बेटी का यौन शोषण किया, बात उस ताकत, पैसा, पावर, नेटवर्क और पूरे सिस्टम की है, जिसने अपनी सारी ताकत झोंक दी वुडी ऐलन को बचाने के लिए. बच्ची पूरी जिंदगी ट्रॉमा में जीती रही और 2017 से पहले वुडी की शोहरत पर आंच भी नहीं आई.
मीटू मूवमेंट ने पितृसत्ता की दीवार एक झटके में तोड़ दी. सेक्सुअल अब्यूज की पुरानी कहानियों को भी कब्र से खोदकर निकाल लाया. जिंदगी में पहली बार वुडी ऐलन को अपने किए की कुछ कीमत चुकानी पड़ी.
ऐलन वर्सेज फैरो उसी की कहानी है, जिसे आप देखकर कभी भूल नहीं पाएंगे.
अलबिलीवेबल (सीरीज), 2019
अलबिलीवेबल (सीरीज)
वर्ष – 2019
कहां देखें – नेटफ्लिक्स
जब कोई लड़की कहती है कि उसके साथ रेप हुआ, यौन शोषण हुआ, उसे किसी आदमी ने तंग किया तो समाज, परिवार, पुलिस, न्याय व्यवस्था का पहला रिएक्शन होता है कि वो झूठ बोल रही है. कहानी की शुरुआत ही लड़की पर शक करने, उसे ही दोषी ठहराने, उसे ही कटघरे में खड़ा करके उससे ही पहला सवाल-जवाब करने से होती है.
सच्ची घटना पर आधारित ये सीरीज इसलिए देखनी चाहिए ताकि आप उसमें अपना भी अक्स देख सकें. अपना झूठ, अपना सच.
मैं बार-बार ये बात इस उम्मीद में दोहरा रही हूं कि क्या पता, इन सच्ची कहानियों से गुजरकर मर्दों को औरत होने का थोड़ा सा मतलब समझ में आ जाए.
नॉर्थ कंट्री (फिल्म), 2005
नॉर्थ कंट्री (फिल्म)
वर्ष – 2005
कहां देखें – नेटफ्लिक्स
अमेरिकन राइटर माइकल सिट्जमेन ने 2002 में एक किताब लिखी थी- Class Action: The Story of Lois Jenson and the Landmark Case That Changed Sexual Harassment Law. अमेरिका में वर्कप्लेस सेक्सुअल हैरेसमेंट पर बने पहले लैंडमार्क जजमेंट और कानून की कहानी. इसी कहानी पर बनी है ये फिल्म नॉर्थ कंट्री. मिनिसोटा की एक माइनिंग कंपनी की कहानी, जहां काम करने वाले ढेरों मर्द अपने साथ की औरतों को न सिर्फ सेक्सुअली एक्सप्लॉइट करते थे, बल्कि उन्हें बुरी तरह हैरेस भी करते थे. मैं उसकी डीटेल यहां चाहे कैसे भी लिख दूं, आप वो तकलीफ, वो पीड़ा महसूस नहीं कर पाएंगे जो फिल्म देखते हुए महसूस होती है. जोसी की कहानी धारदार चाकू की तरह पूरी देह को लहूलुहान करती जाती है. ये फिल्म एक सिटिंग में नहीं देखी जा सकती क्योंकि सांस रुकने लगती है, आंखें इतनी भरी होती हैं कि स्क्रीन पर कुछ दिखाई नहीं देता.
वर्कप्लेस सेक्सुअल हैरेसमेंट और उससे जुड़े कानून के बारे में आपके जो भी विचार हों, उसे बोलने से पहले ये फिल्म एक बार जरूर देख लीजिए. क्या पता, कुछ बदल जाए.
अनटचेबल (सीरीज), 2019
अनटचेबल (सीरीज)
वर्ष – 2019
कहां देखें – नेटफ्लिक्स
हार्वी वाइंस्टाइन के केस पर बनी ये एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म है. हार्वी ने अपने पचास साल लंबे कॅरियर में जिन कमजोर, निरीह, जरूरतमंद औरतों का शोषण किया, उन सबकी कहानी. मर्दों के सेक्सुअल हैरेसमेंट के सैकड़ों साल लंबे इतिहास में हार्वी वाइंस्टाइन वो पहला शख्स है, जिसे अपने किए की कीमत चुकानी पड़ी. वरना खुर्दबीन लेकर ढूंढने पर भी ऐसा केस नहीं मिलता, जहां मर्द को उसके अपराध की सजा मिली हो. ऐसी कहानियां हजारों हैं, जहां पूरा समाज और सिस्टम मिलकर अपराधी और बलात्कारी का बचाव करता रहा.
ये फिल्म जल्दबाजी में बनी है. बाकी डॉक्यूमेंट्रीज की तरह इसके पीछे वर्षों का श्रम और कमिटमेंट नहीं दिखता. लेकिन फिर भी इसे एक बार देख जरूर लेना चाहिए ताकि सनद रहे.
कॉस्बी: द वुमेन स्पीक (टेलीविजन फिल्म), 2015
कॉस्बी: द वुमेन स्पीक (टेलीविजन फिल्म)
वर्ष – 2015
aetv.com
हॉलीवुड एक्टर और कॉमेडियन बिल कॉस्बी पर 2018 में ढेर सारी महिलाओं ने रेप, मॉलिस्टेशन, ड्रग्स अब्यूज का आरोप लगाया. हॉस्बी की शोहरत और हैसियत को देखते हुए मामला काफी उछला भी. जैसाकि होता है हमेशा, कॉस्बी आखिरी सांस तक अपना बचाव करता रहा, लेकिन 2018 में कोर्ट ने उसे दोषी पाया और दस साल कैद की सजा दी. ये टेलिविजन फिल्म बिल कॉस्बी की कहानी है. इसे देखते हुए नेटफ्लिक्स पर मौजूद एक और डॉक्यूमेंट्री देखी जानी चाहिए, सीइंग ऑलरेड. ये अमेरिकन लॉयर और जेंडर राइट्स एक्टिविस्ट ग्लोरिया ऑलरेड पर बनी डॉक्यूमेंट्री है, जिसका एक बड़ा हिस्सा बिल कॉस्बी केस से जुड़ा हुआ है क्योंकि न्यायालय में उन औरतों का केस ग्लोरिया ऑलरेड ने लड़ा था.
द अनविजिबल वॉर (डॉक्यूमेंट्री), 2012
द अनविजिबल वॉर (डॉक्यूमेंट्री)
वर्ष – 2012
कहां देखें – pbs.org
ये डॉक्यूमेंट्री अमेरिकन आर्मी में महिलाओं के साथ होने वाले सेक्सुअल अब्यूज, रेप और उसके ट्रॉमा की कहानी है. 2010 में एक लाख आठ हजार 121 महिलाओं की स्क्रीनिंग में पाया गया कि वो सब सेना के द्वारा किए गए रेप और सेक्सुअल अब्यूज के ट्रॉमा से गुजर रही हैं. इनमें से कम से कम 68,000 महिलाएं ऐसी थीं, जिन्होंने यौन शोषण से जुड़ी हेल्थ कंडीशन के साथ हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन के पास मदद मांगने गई थीं. जब डिफेंस डिपार्टमेंट को इस बात का इलहाम हुआ और जांच तेज हुई तो पता चला कि उसी साल 2010 में सेक्सुअल एसॉल्ट के 3198 नए मामले आए थे. 3198 औरतें बोली थीं, लेकिन डिपार्टमेंट को शक था कि असल केस तो 19000 से ज्यादा हैं.
2012 में उन तमाम केसेज और आर्मी में होने वाले सेक्सुअल एसॉल्ट पर ये ये डॉक्यूमेंट्री बनी, जिसके बाद सेना में औरतों के सेक्सुअल अब्यूज पर कठोर कानून बना.