हेट स्पीच पर लगे रोक

रामनवमी और हनुमान जयंती के दौरान देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा को लेकर सियासत शुरू हो गई है।

Update: 2022-04-19 09:21 GMT

रामनवमी और हनुमान जयंती के दौरान देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा को लेकर सियासत शुरू हो गई है। इस सिलसिले में 13 विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं। अपोजिशन पार्टियों ने आरोप लगाया है कि हेट स्पीच देने वालों को आधिकारिक स्तर पर पनाह दी जा रही है और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हो रही। बीजेपी ने इन आरोपों पर विपक्षी दलों को घेरा है। पार्टी ने कहा कि विपक्षी पार्टियां पिछले 70 साल से तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं। इसी वजह से आज हालात बिगड़ रहे हैं। बीजेपी ने यह भी कहा कि विपक्षी दल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना चाहते हैं। दोनों तरफ की बयानबाजी जहां एक ओर इस मुद्दे पर राजनीति की पुष्टि करती है तो दूसरी ओर इससे यह भी जाहिर होता है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ने और हिंसा से कोई इनकार नहीं कर रहा। अगर इस पर दोनों ही पक्ष एकमत हैं तो उनकी ओर से एक साझा अपील होनी चाहिए। इसमें कहा जाना चाहिए कि ऐसे मुद्दों को हवा ना दी जाए, जिससे समाज में दूरी बढ़े। जमीनी स्तर पर भी राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता इसे रोकने की कोशिश कर सकते हैं। इसके साथ संबंधित राज्य सरकारों को हेट स्पीच देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इससे यह संदेश जाएगा कि नफरत बढ़ाने वालों और सांप्रदायिक हिंसा करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

अक्सर कहा जाता है कि कुछ बेहद छोटे और हाशिये पर पड़े संगठन धार्मिक वैमनस्यता बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इसलिए इन संगठनों की बातों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। लेकिन सोशल मीडिया की वजह से आज हाशिये के ये संगठन नफरत को करोड़ों लोगों तक पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं। वे इसके लिए फेक न्यूज का भी सहारा ले रहे हैं। इन्हें रोकना होगा। यह भी याद रखना होगा कि ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक हिंसा से आर्थिक गतिविधियों को नुकसान पहुंचता है। विदेशी निवेश भी प्रभावित होता है। दवा कंपनी बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ ने हाल ही में इस ओर ध्यान दिलाया था। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सरकारों ने कर्नाटक में बढ़ते ध्रुवीकरण का जिक्र करके वहां की कंपनियों को अपने-अपने राज्यों में आने का न्योता दिया था। यह भले ही अलग किस्म की सियासत हो, लेकिन इसकी बुनियाद में बढ़ती सामाजिक दूरी ही है। यह भी याद रखना होगा कि प्रधानमंत्री 'सबका साथ, सबका विकास' की बात कहते आए हैं। वह पहले कई बार सांप्रदायिक वैमनस्यता बढ़ाने वालों को सख्त संदेश दे चुके हैं। बीजेपी में शीर्ष स्तर से फिर से यह संदेश दिया जाना चाहिए। इस बात का भी खयाल रखा जाना चाहिए कि ऐसी घटनाओं से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि खराब होती है।

एनबीटी डेस्क

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