जमानत बनाम सियासत

लखीमपुर खीरी मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से मिली जमानत को लेकर स्वाभाविक ही एतराज जताए जा रहे हैं। अब उस फैसले को पीड़ित परिवारों की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।

Update: 2022-02-23 04:03 GMT

Written by जनसत्ता: लखीमपुर खीरी मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से मिली जमानत को लेकर स्वाभाविक ही एतराज जताए जा रहे हैं। अब उस फैसले को पीड़ित परिवारों की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। इस तरह एक बार फिर उत्तर प्रदेश प्रशासन के पक्षपातपूर्ण रवैए पर अंगुलियां उठने लगी हैं। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष की गई अपील में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील करने में विफल रही है, इसलिए मजबूरन पीड़ित परिवारों को यह कदम उठाना पड़ा है।

अपील में यह भी कहा गया है कि पुलिस ने मामले से संबंधित सभी सबूत ठीक से पेश नहीं किए। गवाहों और सबूतों के साथ छेड़छाड़ को लेकर भी उसमें आशंका जताई गई है। अपील में यह भी कहा गया है कि बड़े सबूतों पर उच्च न्यायालय में विचार नहीं किया जा सका। लखीमपुर खीरी मामला किसी से छिपा नहीं है, जिसमें आंदोलन कर रहे किसानों को गाड़ी से कुचल दिया गया था। लगातार विरोध प्रदर्शनों के बाद घटना के करीब हफ्ते भर बाद आशीष मिश्रा को गिरफ्तार किया जा सका। उसके बाद भी उत्तर प्रदेश पुलिस मामले की जांच में लगातार कोताही बरत रही थी। तब सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष जांच दल को दिशा-निर्देश देकर जांच में तेजी लाने को कहा था। उस समिति ने करीब पांच हजार पन्नों की रिपोर्ट पेश की थी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ताजा फैसले पर इसलिए भी लोगों को हैरानी हो रही है कि जब विशेष जांच दल ने रिपोर्ट पेश की थी, तो उसके साथ उत्तर प्रदेश पुलिस को कुछ सख्त हिदायतें भी दी थीं, जिनमें उसने प्रथम सूचना रिपोर्ट में बदलाव करके आशीष मिश्रा के खिलाफ कत्ल का मामला दर्ज करने को कहा था। प्रत्यक्षदर्शियों और घायलों के बयान और मौके पर मिले सबूतों के आधार पर ऐसा करने को कहा गया था। इससे लोगों को मामले में निष्पक्ष न्याय मिलने की कुछ उम्मीद जगी थी।

मगर आशीष मिश्रा को चार महीने के भीतर जमानत मिल गई। आशीष मिश्रा के पिता केंद्र में गृह राज्यमंत्री हैं। देश भर की पुलिस उनके मातहत काम करती है। इसलिए पुलिस उनके प्रभाव में नहीं आएगी, इसका भरोसा शुरू से किसी को नहीं है। इसीलिए किसान नेता मांग करते आ रहे हैं कि उन्हें मंत्री पद से हटाया जाना चाहिए, नहीं तो जांच और अदालत में पेश किए जाने वाले सबूतों में निष्पक्षता नहीं आ सकती। मगर वे आज तक अपने पद पर बने हुए हैं।

विशेष जांच दल ने आशीष मिश्रा को साजिशन किसानों पर गाड़ी चढ़ाने का दोषी माना था। इसलिए भी किसान नेता और दूसरे लोग उसमें गृह राज्यमंत्री की संलिप्तता भी बता रहे हैं, क्योंकि घटना से कुछ दिन पहले उन्होंने सार्वजनिक रूप से आंदोलनकारी किसानों को धमकी दी थी। बेशक गृह राज्यमंत्री की उसमें संलिप्तता न हो, पर उनका बेटा जब मुख्य आरोपी करार दिया गया है, तो उनका नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे जांच को निष्पक्ष बनाने के लिए अपने पद से खुद त्यागपत्र दे देते।

हर चीज को अदालत के फैसले पर नहीं छोड़ा जा सकता। लोकतंत्र में मंत्री जैसे पद की जिम्मेदारी निभा रहे व्यक्ति के लिए नैतिकता बहुत मायने रखती है। अदालत में तो तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करके फैसले अपने पक्ष में लाए जा सकते हैं। रसूखदार लोगों के मामले में ऐसे फैसले प्राय: देखे जाते हैं। इस तरह न्याय प्रक्रिया भी प्रश्नांकित होती है।


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