जिम्मेदारी से दूर

Update: 2023-02-15 05:20 GMT

Written by जनसत्ता: इससे उपजी सामाजिक-मनोवैज्ञानिक स्थितियों के कारण आज की युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है। क्या यह बात आज विशेष रूप से जानने योग्य नहीं है कि हमारा देश विश्व में सर्वाधिक युवाओं वाला देश है, तब उसकी दिशा और दशा को सही दिशा में ले जाने की जिम्मेदारी किसकी है? लगता है कि हमारे टीवी चैनल यह नहीं कर रहे हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि नई बनाई जा रही फिल्मों से लेकर अन्य कार्यक्रमों में अश्लीलता, हिंसा को बढ़ावा देने के माध्यम के रूप में वे अग्रणी क्यों बन रहे हैं।

टीवी चैनलों पर व्यक्तियों के शव, घायल व्यक्तियों के खून में डूबे हुए दृश्य, अश्लीलता को बढ़ाने देने वाले दृश्य, महिलाओं से छेड़छाड़ वाले दृश्य, पुरुषों और बच्चों के ऐसे दृश्य जिनमें बेरहमी से पिटाई की जाती है जैसे अनेक दृश्य आम हो चुके हैं। सवाल है कि क्या आपराधिक घटनाओं को उसके मूल स्वरूप में प्रदर्शित करना पूरी तरह जरूरी है? इसका कोमल मन-मस्तिष्क वाले बच्चों पर कैसा असर पड़ता होगा?

मगर इस तरह के प्रसारण से टीवी चैनल अपनी रेटिंग बढ़ाने का प्रयास करते हैं और उन्हें सिर्फ अपनी कमाई की फिक्र होती है। जबकि कोशिश यह होनी चाहिए कि टीवी चैनल दर्शकों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का भी पालन करें। आजकल सोशल मीडिया पर भी कुछ वीडियो ऐसे दिख जाते हैं, जिनमें प्रस्तुत हिंसक गतिविधियों में कोई काट-छांट नहीं की जाती है। इसका महिलाओं और बच्चों पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसी खबरें बच्चों पर प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रही है। इसलिए प्रसारण मंत्रालय का इस क्षेत्र में और भी अधिक सख्ती दिखाना जरूरी है।

इस मामले में हम दूरदर्शन को एक सही दिशा में चलता नेटवर्क कह सकते हैं, जहां आपत्तिजनक दृश्यों पर हमेशा ध्यान रखा जाता है। चाहे आज हम दूरदर्शन को पुरातनपंथी लीक पर चलने वाला चैनल कह दें, पर वही आज देश का सही ढंग से प्रतिनिधित्व करता दिखाई देता है। देश की संस्कृति और कला साहित्य को दिखाने में दूरदर्शन की जितनी भूमिका है, वहां जितनी जिम्मेदारी और गंभीरता दिखाई देती है, वह अन्य निजी चैनलों में शायद ही कभी दिखता है।

देश में हर ओर नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। हर गली-मोहल्ले और चौराहे पर मिलने वाले आसानी से उपलब्ध नशे के सामान अन्य लोगों के साथ साथ युवाओं को भी नशे की लत लगा खोखला और कमजोर कर रहे हैं। देखने में यही आ रहा है कि ये नशे की आदतें ही आपराधिक प्रवृत्ति में भी कई बार वृद्धि का कारण बन रही हैं।

नशे की आदतें धीरे-धीरे नशाखोरों को महंगी नशीली चीजों की ओर धकेलती हैं, जिन्हें पाने के लिए नशे के लत में डूबे लोग चोरी-झपटमारी, घरेलू चीजों को चोरी-छिपे बेचना और अन्य अपराधों को अंजाम देते हैं। घर-परिवार के लोग सचेत रहते हुए नशाखोरी की आदत को शुरुआती दौर में ही दूर करने के प्रयास करें तो किसी भी सदस्य को नशे की लत से मुक्त रखा जा सकता है। समाज में जागरूकता लानी जरूरी हो जाती है।

हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति वैसे भी काफी अच्छी नहीं रही है। हर क्षेत्र में उन्हें पुरुषों से ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, फिर चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या खेल का। ऐसे में आए दिन महिलाओं के यौन शोषण की घटनाएं बाकी महिलाओं पर कैसा असर डालती होंगी, ये हम समझ सकते हैं। हाल ही में दिल्ली में एक महिला कबड्डी खिलाड़ी ने अपने प्रशिक्षक पर बलात्कार का आरोप लगाया।

पीड़ित महिला एशियाई खेलों में देश के लिए रजत पदक जीतने वाली टीम की सदस्य रही है। अगर देश का अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करने वाली खिलाड़ी की यह दशा है तो बाकी को किस तरह की बाधाओं से गुजरना पड़ता होगा, यह अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में जो माता-पिता अपनी बेटी को खेलों में जाने के लिए समर्थन करते होंगे, उन पर ऐसी घटनाओं का क्या असर पड़ता होगा? हमें महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें एक सुरक्षित माहौल प्रदान करना होगा, ताकि वे अपने बिना किसी अड़चन या बाधा के खेल पर ध्यान केंद्रित कर सकें।

आखिर एकीकृत और महानता का दंभ भरने वाले समाज में जाति को लेकर इतना भेदभाव क्यों दिखता है? प्रकृति ने सभी इंसानों को एक समान बनाया है। न किसी के माथे पर लिखा कि वह हिंदू या मुसलमान है, न कोई उच्च या निम्न। यह भेदभाव हम इंसान ही कर रहे हैं। सवाल यह है कि जब हम एक दूसरे को साथ नहीं रख सकते तो हम आपस में मतभेद पैदा करने वाली बातों का समर्थन कैसे कर सकते हैं।

इस समय सभी मुख्य जगहों पर बस धर्म और जाति को लेकर चर्चा छिड़ी दिखती है। 'पठान' फिल्म जो खूब विवाद का विषय इसलिए बनी कि इसमें भगवा रंग पहनी नायिका एक गीत पर नृत्य करती है। इन्हीं सब चक्कर में राजनीतिक दल इसका फायदा उठाते हैं। क्या एक रंग से किसी का अपमान हुआ जा रहा है? हमने खुद की संकीर्ण विचारधारा बना ली है।

विडंबना यह है कि लोगों को पता भी नहीं चला और विवाद और बहिष्कार की घोषणाओं के बाद भी फिल्म ने अच्छी-खासी कमाई कर ली। लोगों को यह समझना होगा कि ऐसे विवाद और हंगामा पैदा करने वाले लोगों का कुछ नहीं बिगड़ता, कारोबारी अपना मुनाफा कमा लेते हैं, लेकिन समाज में कई स्तर पर दिक्कत पैदा होती है, जिसे ठीक करने में कई बार लंबा वक्त लग जाता है।




क्रेडिट : jansatta.com

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