संक्रमण से जंग में जागरूकता की जरूरत

अधिकतर लोग एड्स के लक्षण उभरने पर भी बदनामी के डर से एचआइवी परीक्षण कराने से कतराते हैं। एचआइवी संक्रमित व्यक्ति की पहचान होने पर उसके साथ किया जाने वाला व्यवहार भी चिंतनीय और निंदनीय है।

Update: 2022-12-02 05:08 GMT

योगेश कुमार गोयल: अधिकतर लोग एड्स के लक्षण उभरने पर भी बदनामी के डर से एचआइवी परीक्षण कराने से कतराते हैं। एचआइवी संक्रमित व्यक्ति की पहचान होने पर उसके साथ किया जाने वाला व्यवहार भी चिंतनीय और निंदनीय है।

अस्सी के दशक में जब दुनिया ने पहली बार एड्स नामक बीमारी का सामना किया, तब किसी ने नहीं सोचा था कि आने वाले दशकों में यह एक जानलेवा बीमारी के रूप में उभर जाएगी। कुछ वर्षों तक इसे समलैंगिकों की बीमारी माना जाता रहा और फिर इसे असुरक्षित यौन संबंधों से पैदा होने वाला रोग माना गया। मगर बाद के वर्षों में वैज्ञानिक शोधों से पता चला कि यह जानलेवा बीमारी असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा एचआइवी (ह्यूमन इम्युनो डेफिशिएंसी वायरस) संक्रमित रक्त उत्पाद, संक्रमित सुई, संक्रमित मां से बच्चे में तथा कुछ अन्य कारणों से भी फैलती है।

हालांकि अब एड्स संबंधी भ्रांतियों को लेकर सरकारों और सामाजिक संस्थाओं द्वारा चलाए गए अभियान के चलते धीरे-धीरे इसके मरीजों की संख्या में गिरावट दर्ज की जाने लगी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2010 से अब तक एचआइवी संक्रमण की दर में छियालीस फीसद से ज्यादा की कमी आई है, जबकि इस संक्रमण की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी पच्चीस फीसद से ज्यादा कम हुआ है।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के आंकड़ों के अनुसार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एचआइवी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या पिछले दस वर्षों में काफी कम हुई है। नाको के मुताबिक 2011-12 में असुरक्षित यौन संबंधों के कारण एचआइवी संक्रमित लोगों की संख्या 2.4 लाख थी, जबकि 2020-21 में यह घट कर 85268 रह गई। फिर भी एड्स संक्रमण के मामले में तस्वीर अभी काफी चिंताजनक है।

नाको के ही आंकड़ों में बताया गया है कि 2011-2021 के बीच भारत में असुरक्षित यौन संबंधों के कारण 17 लाख 8 हजार 777 लोग एचआइवी से संक्रमित हुए। 2020 तक देश में 81,430 बच्चों सहित एचआइवी पीड़ित लोगों की कुल संख्या 23,18,737 थी। जांच संबंधी आंकड़ों के मुताबिक 2011-12 से 2020-21 के बीच रक्त और रक्त उत्पाद के जरिए 15,782 लोग एचआइवी से पीड़ित हुए, जबकि मांओं के जरिए 4,423 बच्चों में यह बीमारी फैली। देश में भले एचआइवी संक्रमितों की संख्या में लगातार कमी आ रही है, लेकिन भारत को 'पूर्णत: एड्स मुक्त' होने में अभी काफी समय लगेगा, क्योंकि अब भी देश में करीब पच्चीस लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं और यह आंकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर है।

यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 3.7 करोड़ से ज्यादा लोग एचआइवी संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें सर्वाधिक संख्या किशोरों की है और इनमें से सबसे ज्यादा किशोर दुनिया के छह देशों दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, मोजांबिक, तंजानिया तथा भारत में हैं। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुमान के अनुसार भारत में एड्स के कारण अब तक डेढ़ लाख से भी ज्यादा बच्चे अनाथ हो चुके हैं और लाखों बच्चे एचआइवी के शिकार हैं।

हालांकि एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के प्रयोग में आने के बाद एड्स से मरने वालों की संख्या में कमी आई है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब अस्सी फीसद मरीजों को ही अपने एचआइवी पाजिटिव होने की जानकारी है और उनमें से करीब साठ फीसद का इलाज ही एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी से हो रहा है। ऐसे में इस खतरनाक बीमारी के प्रसार का खतरा बरकरार है।

हालांकि एचआइवी संक्रमण का पूर्ण इलाज भले अभी उपलब्ध नहीं है, मगर इसे निष्क्रिय करने के लिए एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी का सहारा लिया जाता है, जिससे एचआइवी मरीज सामान्य जिंदगी जी सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार इसी उपचार पद्धति के कारण एड्स से मरने वालों की संख्या में निरंतर कमी आ रही है। हालांकि यह रफ्तार धीमी है और अब भी एचआइवी से संक्रमित होने वालों की संख्या प्रतिवर्ष अठारह लाख से अधिक है।

भारत में एड्स के प्रसार में आज भी स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता और जिम्मेदारी का अभाव, अशिक्षा, निर्धनता, अज्ञानता और बेरोजगारी प्रमुख कारण हैं। अधिकतर लोग एड्स के लक्षण उभरने पर भी बदनामी के डर से एचआइवी परीक्षण कराने से कतराते हैं। एचआइवी संक्रमित व्यक्ति की पहचान होने पर उसके साथ किया जाने वाला व्यवहार भी चिंतनीय और निंदनीय है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में ऐसा ही झकझोर देने वाला मामला सामने आया, जिसमें एचआइवी संक्रमित एक बीस वर्षीया महिला की फिरोजाबाद मेडिकल कालेज में डाक्टर ने प्रसव कराने से इनकार कर दिया, जिससे नवजात की जान चली गई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एड्स मरीज की पहचान छिपाने के आदेश हैं, लेकिन इसके बावजूद हाल ही में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिला अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा एक एड्स पीड़ित मरीज की पहचान को उजागार करने का मामला भी सामने आया। मरीज के बिस्तर पर एचआईवी पीड़ित की पर्ची लगा कर उसकी पहचान उजागर कर दी।

इस वर्ष यूएन एड्स द्वारा विश्व एड्स दिवस की विषय-वस्तु 'इक्यूलाइज' रखी गई है, जिसके माध्यम से उन अनुचित परिस्थितियों और असमानताओं को दूर करने का आग्रह किया जा रहा है, जो एड्स को समाप्त करने में प्रगति को रोक रही हैं। यूएन एड्स के मुताबिक एचआइवी उपचार, परीक्षण और रोकथाम सेवाएं सभी के लिए अधिक उपलब्ध, बेहतर और सही हों, यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है और एड्स को खत्म तथा असमानता कम करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाने की जरूरत है। दरअसल, यह हैरानी की बात है कि तमाम प्रचार-प्रसार के बावजूद न केवल आम लोग, बल्कि अस्पतालकर्मी और डाक्टर भी एचआइवी संक्रमितों को तिरस्कार भरी नजरों से देखते और उनके साथ अछूतों-सा व्यवहार करते हैं।

एचआइवी एक ऐसा विषाणु है, जो शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रहार करते हुए शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को कम या नष्ट कर देता है। यही एड्स का कारण बनता है और रोगी मौत की ओर खिंचा चला जाता है। यह वायरस शरीर की श्वेत कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिनमें उच्च आनुवंशिक परिवर्तनशीलता का गुण है। असुरक्षित यौन संबंध के अलावा यह संक्रमित व्यक्ति के रक्त के संपर्क में आने से भी हो सकता है। एचआइवी से संक्रमित होने के चंद सप्ताह के अंदर ही प्रभावित व्यक्ति को बुखार, गला खराब होना, कमजोरी होना आदि लक्षण हो सकते हैं। इसके बाद बीमारी के तब तक कोई लक्षण नहीं उभरते, जब तक कि यह एड्स न बन जाए। एड्स के लक्षणों में वजन घटना, बुखार या रात में पसीना आना, कमजोरी और बार-बार संक्रमण होना शामिल हैं।

हालांकि माना जाता रहा है कि एड्स पूरी तरह लाइलाज बीमारी है और इसके हो जाने का सीधा अर्थ है मरीज का धीरे-धीरे मौत की ओर खिंचते चले जाना, मगर अब इस बीमारी के उपचार की दिशा में क्रांतिकारी काम हो रहे हैं। फिलहाल एचआइवी संक्रमित को जीवन भर दवाएं लेनी पड़ती हैं और इस विषाणु को निष्क्रिय करने के लिए एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी का सहारा लिया जाता है, लेकिन इस उपचार पद्धति में परेशानी यह है कि इस थेरेपी के बंद होने के बाद एचआइवी फिर सक्रिय हो जाता और पहले के मुकाबले तेजी से बढ़ता है।

इसलिए एंटीरेट्रोवायरल थैरेपी के अलावा कुछ और ऐसे उपचार खोजने में शोधकर्ता जुटे हैं, जिनसे इस बीमारी को जड़ से खत्म करने में मदद मिले। हालांकि एड्स के उपचार की दिशा में कुछ शोधों के संतोषजनक परिणाम भी सामने आ रहे हैं, ऐसे में निकट भविष्य में एड्स का ऐसा सफल इलाज खोजे जाने की संभावना बढ़ गई है, जिससे इस बीमारी का आने वाले वर्षों में जड़ से खात्मा किया जा सके।

 

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