फिलहाल बाजी पलट गई है
मौजूदा किसान आंदोलन का हश्र चाहे जो हो, आधुनिक समय में इसके ऐसे कई योगदान हैं, जिनका दीर्घकालिक असर होगा।
मौजूदा किसान आंदोलन का हश्र चाहे जो हो, आधुनिक समय में इसके ऐसे कई योगदान हैं, जिनका दीर्घकालिक असर होगा। मौजूदा किसान आंदोलन का हश्र चाहे जो हो, आधुनिक समय में इसके ऐसे कई योगदान हैं, जिनका दीर्घकालिक असर होगा।सबसे पहले उसने मौजूदा सरकार के तहत क्रोनी कैपिटलिज्म के सामने आए बदनुमा चेहरे को बेनकाब किया था। फिर न्यायपालिका की के नए रूप को जनता के सामने दो-टूक लहजे में रखा। यह कहते हुए जिन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन चल रहा है, उनके संदर्भ में न्यायपालिका की कोई भूमिका नहीं है। यानी उसने न्यायिक हल पर विश्वास करने से इनकार कर दिया।
अब इस आंदोलन ने यह संकेत दिया है कि राजनीतिक कथानक पर मौजूदा शासनतंत्र का जो कंट्रोल था, उसमें सेंध लग गई है। वरना, राकेश टिकैत के आंसू इतनी जल्दी इतना प्रभाव पैदा नहीं करते कि 26 जनवरी की घटनाओं से मनोबल को लगी चोट से आंदोलन उबर जाता। यानी आंदोलन के समर्थन क्षेत्र में लोग अपने मीडिया और अपने स्रोतों सूचनाएं और तस्वीर हासिल कर रहे हैँ। इसी का नतीजा है कि किसान आंदोलन गणतंत्र दिवस की घटनाओं के झटके से उबर कर अधिक ताकत के साथ खड़ा हो गया है।