हत्यारे का हौसला
लगता है, अब अपराधियों में कानून-व्यवस्था का भय बिल्कुल समाप्त हो गया है।
लगता है, अब अपराधियों में कानून-व्यवस्था का भय बिल्कुल समाप्त हो गया है। अभी तक वे आरोप लगाने वालों और गवाहों आदि को रास्ते से हटा कर अपने खिलाफ चल रहे मुकदमों की दिशा मोड़ने का प्रयास करते देखे जाते थे। अपराध रोकने की मंशा से कड़ाई करने वाले पुलिस अधिकारियों पर भी गुंडों के हमले के कई उदाहरण हैं। पर अब वे सीधे मुकदमों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों, दंडाधिकारियों पर ही हमले करने लगे हैं।
झारखंड के धनबाद में न्यायाधीश की हत्या इसका ताजा उदाहरण है। वे सुबह टहलने के लिए निकले थे, तभी पीछे से आकर एक टैंपो ने उन्हें टक्कर मारी और भाग निकला। शुरू में तो इसे गफलत में हुआ हादसा माना गया, मगर जब सड़क पर लगे कैमरे में दर्ज तस्वीरें खंगाली गईं तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। तस्वीरें इरादतन की गई हत्या का संकेत दे रही थीं। स्वाभाविक रूप से इस घटना को लेकर प्रशासन सतर्क हुआ, टैंपो मालिक और उसके चालक को गिरफ्तार कर लिया गया। टैंपो को एक रात पहले चुराया गया था। झारखंड उच्च न्यायालय ने फौरन इस मामले का संज्ञान लिया और जांच के आदेश दे दिए। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने भी इस मामले पर लगातार नजर बनाए रखने का भरोसा दिलाया है।
इसी बीच उत्तर प्रदेश में फतेहपुर के एक अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की गाड़ी को पीछे से एक गाड़ी ने टक्कर मारी। बताया जा रहा है कि टक्कर मारने वालों ने न्यायाधीश से लूटपाट का भी प्रयास किया। हालांकि अभी इस मामले के पीछे की असल वजह साफ नहीं हो पाई है, मगर झारखंड के न्यायाधीश की हत्या के पीछे का कारण साफ होने लगा है। सर्वोच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि मृत न्यायाधीश धनबाद के किसी कुख्यात अपराधी के किसी मामले की सुनवाई कर रहे थे और उन्होंने उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। उसी की खुन्नस निकालने और न्यायाधीश को सबक सिखाने के लिए सोची-समझी साजिश के तहत उनकी हत्या कर दी गई।
धनबाद को कोयलांचल के नाम से भी जाना जाता है। वहां कोयले की खदानें हैं और कोयले की कालाबाजारी करने वालों का वहां बहुत पुराना संजाल पसरा हुआ है। ये कालाबाजारी करने वाले इतने ताकतवर हैं कि अपने रास्ते में रोड़ा अटकाने वालों की हत्या तक कर देने में तनिक हिचक नहीं दिखाते। कई अधिकारी और राजनेता इनके शिकार बन चुके हैं। सरकारें भी उनके आगे झुकी नजर आती रही हैं। उसी आपराधिक मदांधता की भेंट न्यायाधीश भी चढ़ गए।
स्वाभाविक ही, धनबाद की इस घटना के बाद कई लोग सर्वोच्च न्यायालय के जज लोया की हत्या को याद करने लगे हैं। सवाल उठने लगे हैं कि अगर इसी तरह न्यायाधीशों को सबक सिखाने या उन्हें अपने रास्ते से हटाने का प्रयास दबंग करते रहे, तो फिर न्याय व्यवस्था कैसे निष्पक्ष तरीके से अपना काम कर पाएगी। हालांकि न्यायाधीशों को भय और लालच के जरिए प्रभावित करने के प्रयास हमेशा होते रहते हैं, मगर वे कानून को सर्वोपरि मानते हुए, न्याय प्रणाली की साख बनाए रखने का प्रयास करते रहे हैं, साहस के साथ निर्णय देते हैं।
अगर उन्हें साहस की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़े, तो इससे पूरी कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। छिपी बात नहीं है कि हत्यारों और अपराधियों को मिलने वाला राजनीतिक संरक्षण उनका मनोबल बढ़ाता है। उन्हें कानून की कोई परवाह नहीं रह जाती। क्या झारखंड और उत्तर प्रदेश सरकार इन आरोपों से बच सकती हैं?