सेना : आपदा में भरोसा बनते जवान, देवघर में रोप-वे हादसे से सीखने होंगे सबक

देश के हर नागरिक के मन में यकीन और गर्व की अनुभूति भर देते हैं।

Update: 2022-04-16 01:43 GMT

प्रकृति का कहर हो, युद्ध का मोर्चा या कोई दुर्घटना। देश की सेना का तत्पर, सहयोगी और संवेदनशील व्यवहार नागरिकों की उम्मीदें ही नहीं, जीवन भी सहेजता रहा है। बीते दिनों झारखंड के देवघर जिले में स्थित पर्यटन स्थल, त्रिकूट पर्वत पर जाने के लिए बने रोप-वे हादसे के बाद वायुसेना, सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और पुलिस के जवानों ने 46 घंटे तक बचाव अभियान चलाकर 60 लोगों को सुरक्षित निकाला। दुखद है कि इस दुर्घटना में तीन लोगों की जान चली गई पर अभियान के दौरान जी-जान लगा देने वाले सेना के योद्धा देवदूत बन, हर कोशिश संभव करते रहे।

वायुसेना के एक गरुड़ कमांडो ने तो स्वेच्छा से पूरी रात डेढ़ हजार से दो हजार फुट की ऊंचाई पर फंसे बच्चों के साथ हवा में लटक रही रोप-वे की केबिन में गुजारी और उन्हें ढाढ़स बंधाया। बचाव कार्य में शामिल सभी जवानों ने एकजुट होकर सीमित समय में न केवल इस मुश्किल अभियान को पूरा किया, बल्कि जिंदगियां भी बचाईं। इस अभियान को लेकर वर्चुअल संवाद में प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि हमारे योद्धाओं ने तीन दिनों की कड़ी मशक्कत और सूझबूझ के साथ इस मुश्किल बचाव अभियान को सफल बनाया है।
हर आपदा में दिखने वाला सुरक्षा बालों का यह जज्बा वाकई गर्व करने की बात है। साथ ही देशवासियों के मन में भरोसा पैदा करने वाला धैर्य और सूझबूझ से भरा व्यवहार भी, जिसके बल पर हमेशा की तरह विपदा की इस घड़ी में भी सेना के जवानों ने देवदूत बन लोगों की जान बचाई। देश के दुर्गम स्थलों में आई प्राकृतिक आपदा में जीवन सहेजने से लेकर लेकर महानगरीय भीड़-भाड़ में हुए किसी हादसे में आमजन की जिंदगी बचाने तक देश के जवान अपनी मानवीय भूमिका निभाते आए हैं।
कोरोना महामारी से कुछ समय पहले सिक्किम के नाथूला पास में भारी बर्फबारी के चलते फंसे करीब तीन हजार पर्यटकों को सेना के जवानों ने जी-जान लगाकर बचाया था। तब वहां सुरक्षित बची एक महिला ने भारतीय सेना को धन्यवाद कहने के लिए एक वीडियो ट्विटर पर पोस्ट कर सभी 3,000 पर्यटकों की तरफ से भी सेना को शुक्रिया कहा था। वीडियो में महिला कहती दिखीं कि हम अक्सर पूछते हैं कि, सेना क्या करती है, आज मैंने देख लिया कि वह हमारे लिए क्या करती है।'
असल में देखा जाए, तो आपदा के समय सेना के जवानों की तत्परता देखकर देश के आम नागरिक को यह भरोसा मिलता है कि हमारे जवान देश की सीमा पर ही नहीं, संकट के समय भी हर मोर्चे पर डटे रहते हैं। कई बार तो ऐसी विकट स्थितियों से निपटने के लिए सेना के जवानों के पास जरूरी साधन भी नहीं होते, बावजूद इसके पीड़ादायी समय में हिम्मत और सूझबूझ का परिचय देते हुए कई बार हमारे जवानों ने नागरिकों की जान बचाई है।
केरल में आई भीषण बाढ़ के समय अपने कौशल और सही समझ से जवानों ने केले के पेड़ और दूसरे स्थानीय संसाधनों से लोगों को बचाया था। वह तस्वीर भी देशवासियों के मन पर आज तक बसी है, जब विनाशकारी जल प्रलय में बाढ़ में फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए एनडीआरएफ का जवान पानी में घुटनों के बल खड़ा होकर 'सीढ़ी' बनता है! वहां पानी अधिक होने की वजह से महिलाएं नाव में चढ़ नहीं पा रहीं थीं, तो उनकी परेशानी देख एक जवान ने ऐसा किया, ताकि महिलाएं उसकी पीठ पर पैर रखकर नाव में सवार हो सकें।
सुखद यह भी है कि हमारे देश के जवानों ने प्राकृतिक आपदा के समय कई बार दूसरे देशों के नागरिकों के लिए भी बचाव कार्य किया है। ऐसे अवसर भी आए हैं, जब वे संकट के समय भारतीय नागरिकों को दूसरे देशों से सुरक्षित निकालकर अपने देश, अपने घर लाए हैं। हमारे सुरक्षा बल अपने दायित्व निर्वहन को सर्वोपरि मानते हैं। राहत तथा बचाव कार्यों में उनका साहस और संवेदनशीलता सराहनीय होती है। ऐसे हादसे सजग रहने की सीख देते ही हैं, भारतीय सेना के जोश, जज्बे और प्रतिबद्धता से भी रूबरू करवा जाते हैं। देश के हर नागरिक के मन में यकीन और गर्व की अनुभूति भर देते हैं।

सोर्स: अमर उजाला 

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