अनुराग का सियासी निवेश-1

आशीर्वाद तक पहुंचा सांसद अनुराग ठाकुर का सफर दरअसल हिमाचल में भाजपा की राजनीति को फिर से पढ़ने का नजरिया हो

Update: 2021-08-24 05:41 GMT

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आशीर्वाद तक पहुंचा सांसद अनुराग ठाकुर का सफर दरअसल हिमाचल में भाजपा की राजनीति को फिर से पढ़ने का नजरिया हो सकता है और यह सत्ता के साधुवाद को बांटने का विमर्श भी पैदा करता है। पांच दिन की यात्रा में माहौल, मेहरबानियां, मकसद और मंजिलें दिखाई दीं, तो प्रदेश के चौराहों में कानाफूसी भी हुई। दरअसल देश भी अब राजनीति को चौराहों पर ही तो पढ़ रहा है, जहां पहले कभी संघर्ष व आंदोलन होते थे। हिमाचल में राजनीति का अर्द्धसत्य संघर्ष में रहा है, लेकिन अब आंदोलन सत्ता की जुबान में पालतू हो गया है। ऐसे में अनुराग की यात्रा के तमाम संदर्भ हाथी-घोड़ों पर सवार रहते हुए भी यह तय नहीं कर पा रहे कि यह काफिला सत्ता का है या विचारधारा का। जाहिर है भाजपा अब सत्ता की मशीनरी है, इसलिए जिसके थैले में ज्यादा होगा, जनता उतने ही जोश से हाथ फैलाएगी। इसका सबसे बड़ा आश्चर्य पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने जिस तरह बयानों के कालीन अनुराग के लिए बिछाए, समझा जा सकता है। शांता कुमार अपनी पार्टी के मार्गदर्शक (?) हैं, लेकिन भाजपा की धारा में उनकी विचारधारा की बात का वजन दिखाई नहीं देता। वह भी भाजपा की कतारों में रेखाओं की लंबाई का अनुसरण कर रहे हैं। इस तरह हिमाचल की आशीर्वाद यात्रा के पदचिन्ह, गोपनीय जिरह की पैमाइश में किसकी रेखा लंबी कर दें, अभी तय नहीं हुआ।

देखना यह भी होगा कि अनुराग ठाकुर की यात्रा का लाभ उनके अलावा किस-किस को मिलता है। जाहिर है अनुराग की उपलब्धियों पर मोहर लगाती जनता उनके भीतर की सियासी संभावनाओं को तोल रही है, तो उत्साही भीड़ के पलक-पांवडे़ केंद्रीय मंत्री को अपनी फील्ड का मुआयना करने का अवसर देते हैं। अनुराग ठाकुर के आगमन ने भाजपा के मंतव्य में नया क्या जोड़ा या पार्टी किस तरह लाभ की स्थिति में दिखाई देगी, यह एक गूढ़ सवाल है जो भविष्य की प्रतिक्रियाओं में दिखाई देगा। फिलहाल इतना जरूर है कि हमीरपुर के सांसद के पांव शिमला, मंडी और कांगड़ा संसदीय क्षेत्रों की परिक्रमा कर गए। शिमला तथा मंडी संसदीय क्षेत्रों में हिमाचल की वर्तमान सत्ता का सीधा तिलक दिखाई देता रहा है, लेकिन कांगड़ा अपने सियासी अतीत के कारण इस बार हमीरपुर के समीप खड़ा है। अतीत के शांता, वर्तमान के पुजारी हैं तो वर्तमान के सांसद किशन कपूर इस बार अनुराग के अनुयायी प्रतीत हो रहे हैं। सांसद किशन कपूर का वजूद खुद से ही नाराज है, तो कांगड़ा की राजनीति आगामी विधानसभा चुनावों का इंतजार कर रही है। कांगड़ा आज की स्थिति में न नया खोज पा रहा है और न ही हासिल कर पा रहा है। पहले ही संसदीय विभाजन में देहरा पर धूमल परिवार की गिरफ्त और अब केंद्रीय विश्वविद्यालय के अस्तित्व की पछाड़ में अनुराग आगे दिखाई दे रहे हैं। कांगड़ा अपने लिए नेतृत्व की हर संभावना से दूर कभी मुख्यमंत्री, तो कभी अनुराग को भी इसलिए देख रहा है, क्योंकि सांसद किशन कपूर की प्राथमिकता तो अपने बेटे शाश्वत कपूर का राजनीतिक पोस्टर ही चमकाना है।


पंद्रह अगस्त व अनुराग आगमन के नाम पर कांगड़ा के सांसद ने दो तरह के होर्डिंग्स पर यही संदेश अंकित किया है कि वह अपने परिवार के लिए जनता के सामने शाश्वत कपूर का चेहरा और स्पष्टता से रखना चाहते हैं। कुछ इसी तरह हिमाचल मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह के बागीचे में आशीर्वाद यात्रा के लिए फूल नहीं खिले, तो एकमात्र महिला मंत्री सरवीण चौधरी का अनुराग यात्रा के दौरान फोटोशूट का अधिकतम उपयोग भी दिखाई दिया। ऐसे में आशीर्वाद यात्रा राजनीतिक निवेश का अखाड़ा भी बनी और वर्तमान सरकार से रूठे दिलों का आसरा भी रही। यह पहला अवसर है कि पोस्टर अपने कद को होर्डिंग्स पर टांग कर भाजपा के कई चेहरों को शरण देते दिखाई दिए। जाहिर तौर पर हिमाचल सरकार इन जलसों में शरीक रही और ये पांच दिन प्रदेश की सत्ता का साथ दिखाती रही, वरना जब शांता कुमार बतौर केंद्रीय मंत्री प्रदेश में आते थे, तो उनके स्वागत में खड़ी गाडि़यों के इंजन कई बार बंद हो गए या तब कांगड़ा के तोरणद्वार भी मुंह मोड़ के खड़े रहते थे। अनुराग आगमन के तीसरे संदर्भ में हिमाचल की सरकार, सत्ता और प्रदेश को क्या कोई लाभ मिला या आइंदा मिलेगा, इसका विश्लेषण आगे करेंगे।


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