कोरोना के खिलाफ एक और हथियार
देश में कोरोना के नए केस लगातार घट रहे हैं और उपचाराधीन लोगों के स्वस्थ होने की दर भी बढ़ रही है। नए केस जितने आ रहे हैं, उससे कहीं अधिक लोग ठीक हो रहे हैं
आदित्य नारायण चोपड़ा: देश में कोरोना के नए केस लगातार घट रहे हैं और उपचाराधीन लोगों के स्वस्थ होने की दर भी बढ़ रही है। नए केस जितने आ रहे हैं, उससे कहीं अधिक लोग ठीक हो रहे हैं लेकिन चिंता की बात यह है कि मौतों की संख्या में कमी नहीं आ रही। यद्यपि केरल और कुछ अन्य राज्य अभी भी डरा रहे हैं। पिछले महीने तीन जनवरी से देश में 15 से 18 वर्ष के 65 प्रतिशत बच्चों काे अब तक टीके की पहली खुराक दी जा चुकी है। उधर कई राज्यों में स्कूल खोले जा चुके हैं और कुछ में खोलने की तैयारी की जा रही है। भारत के औषधि महानियंत्रण ने पिछले वर्ष 24 दिसम्बर को कुछ शर्तों के साथ 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए स्वदेशी एप से विकसित भारत बायोटेक के कोविड-19 रोधी कोवैक्सीन टीके के आपात स्थिति के उपयोग की स्वीकृति दे दी थी। बच्चों के टीकाकरण ने रफ्तार पकड़ी है।अब कोरोना महामारी के खिलाफ नया हथियार आ गया है। दवा निर्माता कम्पनी जायडस कैडिला ने केन्द्र सरकार को टीके जायकोव-डी की सप्लाई शुरू कर दी है। यह एक प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन है। इसके अलावा कम्पनी अपने कोविड रोधी टीके को निजी बाजार में बेचने की भी योजना बना रही है। जायकोव-डी की तीन खुराक लगाई जाती हैं। कम्पनी ने अहमदाबाद में जायकोव बायोटेक पार्क बनाए हैं और अत्याधुनिक जायडस वैक्सीन टैक्नोलोजी सेंटर से इसकी आपूर्ति शुरू की है। स्वदेश में विकसित दुनिया का पहला डीएनए आधारित सुई मुक्त कोविड-19 टीका जायकोव-डी को 12 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के किशोरों को दिया जाएगा। जायडस कैडिला का दावा है कि इस वैक्सीन का प्रभाव 66.60 फीसदी है। तीन डोज वाली यह वैक्सीन चार-चार हफ्तों के अंतराल पर दी जा सकती है। इस वैक्सीन का इस्तेमाल शुरू में बिहार , झारखंड, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में किया जाएगा। बाद में इसे देशभर के लोगों के लिए उपलब्ध करा दिया जाएगा। इस वैक्सीन की खासियत यह है कि इसे 2 से 8 डिग्री तापमान पर स्टोर किया जा सकता है। नीडल फ्री वैक्सीन होने के चलते इसे जैट इंजैक्टर के चलते दिया जाएगा। कम्पनी की योजना 10 से 12 करोड़ डोज सालाना तैयार करने की है। इस वैक्सीन की कीमत को लेकर भी काफी मोलभाव होता रहा है और सरकार से लगातार बातचीत के बाद कम्पनी 265 रुपए प्रति डोज देने पर सहमत हो गई है। अब जबकि 15 से 18 वर्ष के बच्चों का टीकाकरण किया जा रहा है। इससे अभिभावकों का आत्मविश्वास बढ़ा है और वह बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर पहले से अधिक निश्चित हुए हैं। सरकार पहले ही कोवैक्सीन और कोविशील्ड को निजी बाजार में उतारने की मंजूरी दे चुकी है। जो बच्चे नीडल वाले इंजैक्शन से बहुत डरते हैं उन्हें भी इससे कोई डर नहीं लगेगा। बिना सुई वाले इंजैक्शन में दवा भरकर फिर उसे बांह पर लगाया जाता है और बटन को क्लिक करते ही टीके की दवा शरीर के भीतर पहुंच जाती है। इसलिए इसके साइड इफैक्ट भी नहीं हैं। जायकोव-डी के तीसरे चरण के ट्रायल में 28000 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था और यह भारत में किसी वैक्सीन का सबसे बड़ा ट्रायल था, जिसके नतीजे संतोषजनक पाए गए। मैडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि इस वैक्सीन के साथ यह झंझट भी नहीं हैि कि इसे स्टोर करने के लिए बेहद कम तापमान चाहिए। इसका अर्थ यही है कि वैक्सीन को रखने के लिए हमें कोल्ड चेन स्टोरेज की कोई चिंता नहीं रहेगी। इससे वैक्सीन की बर्बादी भी कम होगी। संपादकीय :विधानसभा चुनावों का रुखअमेरिकी दबाव में नहीं झुका भारतचुनाव काल और बजटपाकिस्तान की इंटरनैशनल बेइज्जतीसीतारमण का 'देश मूलक' बजटमियां-बीवी राजी तो....स्कूलों की संवेदनाओं और अविभाविकों की जिज्ञासाओं के मुखातिब कई राज्य सरकारों ने शिक्षा के विराम के दरवाजे खोलने शुरू कर दिए हैं। उम्मीद है कि छुट्टियों के बाद स्कूल फिर से सामान्य स्थिति में लौट आएंगे। जैसे-जैसे बच्चों का टीकाकरण तेज होगा। त्यों-त्यों महामारी का जोखिम भी कम होता जाएगा। राजधानी दिल्ली में भी स्थिति सामान्य होती नजर आ रही है तथा उम्मीद है कि स्कूल खोलने और नाइट कर्फ्यूू हटाने का फैसला ले लिया जाएगा। सबसे अधिक हलचल तो शिक्षा क्षेत्र में हो रही है। जाहिर है कि बड़े छात्रों की बेचैनी मात्र शिक्षा नहीं बल्कि वह शिक्षा के तौर-तरीकों और करियर बनाने के लिए खुले वातावरण की इच्छा रखते हैं। कोरोना महामारी ने सरकारी, निजी शिक्षण संस्थानों के लिए बहुत बड़ी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि कोरोना काल की घेराबंदी के बीच हमें ऐसी परिपाटी विकसित करनी है जहां जीवन की रफ्तार अपने-अपने अंकुश के साथ जारी रहे। बंद स्कूलों के फिर से दरवाजे खुलें। पठन-पाठन का वातावरण कायम हो। करियर की तलाश में अपनी महत्वकांक्षा को युवा फिर से कालेजों, पुस्तकालयों या अकादमी के भीतर स्थापित करें। वैसे भारत कोरोना काल की हर परीक्षा में मजबूत बनकर उभरा है। स्कूली बच्चे और अभिभावक एक बार फिर से स्कूलों की तरफ आकर्षित हैं। सभी कोरोना काल की छटपटाहट से मुक्ति चाहते हैं लेकिन जोखिम मुक्त वातावरण बनाने के लिए न केवल स्कूलों काे बल्कि हम सबको मेहनत करनी होगी ताकि बच्चे सुरक्षित रहें। इसके साथ ही बाजारों, कार्यालयों, सार्वजनिक स्थानों पर कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करते हुए हमें अनुशासन कायम करना होगा। बार-बार की बंदिशों ने व्यापार और आर्थिकी को बहुत नुक्सान पहुंचाया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि स्थितियां सामान्य होंगी तो ही सभी उद्योग धंधे सामान्य गतिविधियां कर पाएंगे।