कांग्रेस को एक और आघात: राहुल की युवा मंडली का चेहरा जितिन प्रसाद का पार्टी से हुआ मोह भंग, भाजपा में हुए शामिल

राहुल और प्रियंका गांधी के करीबी समझे जाने वाले जितिन प्रसाद का भाजपा में शामिल होना कांग्रेस के लिए एक और बड़ा आघात है।

Update: 2021-06-11 03:33 GMT

भूपेंद्र सिंह | राहुल और प्रियंका गांधी के करीबी समझे जाने वाले जितिन प्रसाद का भाजपा में शामिल होना कांग्रेस के लिए एक और बड़ा आघात है। यह आघात ऐसे समय लगा है, जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव निकट ही हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जितिन प्रसाद कांग्रेस के दूसरे ऐसे नेता हैं, जो राहुल गांधी की युवा मंडली का चेहरा माने जाते थे। इस मंडली के अन्य सदस्य हैं मिलिंद देवरा और सचिन पायलट। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सचिन पायलट भी अंसतुष्ट चल रहे हैं। उनकी शिकायत है कि उनसे जो वादे किए गए थे, वे अभी तक पूरे नहीं किए गए। पता नहीं उनकी नाराजगी कितनी गंभीर है और कांग्रेस नेतृत्व उसे दूर कर पाने में सफल होगा या नहीं, लेकिन यह एक तथ्य है कि कांग्रेस में ऐसे नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जिनका पार्टी से मोहभंग हो रहा है। हर चार-छह माह बाद कांग्रेस का कोई न कोई नेता पार्टी से बाहर निकल जा रहा है। इस स्थिति के लिए कांग्रेस नेतृत्व अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकता। आखिर कुछ तो ऐसा है, जिसके चलते कांग्रेसी नेता पार्टी में अपना भविष्य नहीं देख रहे हैं।

इस पर कांग्रेस नेतृत्व और खासकर गांधी परिवार को चिंतन-मनन करना होगा कि वे कौन से कारण हैं कि उनके नेता पार्टी में अपने को सहज नहीं पा रहे हैं? लगता नहीं कि कांग्रेस इस सवाल पर विचार करने के लिए तैयार है, क्योंकि जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़कर जाने के बाद यह कहा जा रहा है कि वह पिछले कुछ समय से चुनाव हार रहे थे। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेठी से तो खुद राहुल गांधी भी चुनाव हार गए थे। नि:संदेह कांग्रेस के लिए सवाल यह नहीं है कि जितिन प्रसाद को अपने साथ लेने से भाजपा को क्या मिलने जा रहा है? सवाल यह है कि क्या उनके जाने से वह खुद अपने नुकसान की थाह ले पा रही है? यदि कांग्रेस अपने युवा नेताओं के पलायन पर उन्हें ही दोष देकर कर्तव्य की इतिश्री करती रहेगी तो फिर उसके नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला कभी थमने वाला नहीं। पहले ज्योतिरादित्य और अब जितिन प्रसाद के जाने से यही रेखांकित हो रहा है कि युवा नेता कांग्रेस में अपने लिए बेहतर संभावनाएं नहीं देख रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब राहुल गांधी पर्दे के पीछे से पार्टी चला रहे हैं और प्रियंका महासचिव के रूप में सक्रिय हैं। कांग्रेस के लिए यह दोहरे संकट से कम नहीं कि एक ओर एक के बाद एक नेता पार्टी छोड़ रहे हैं और दूसरी ओर वह लगातार कमजोर होती जा रही है।


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