इस मामले में ब्रिटिश काल में गांधी जी द्वारा चलाया गया नमक सत्याग्रह आन्दोलन आजादी के आंदोलन में आम आदमी की शिरकत का मील का पत्थर है। इस बारे में प्रधानमन्त्री ने आज ट्वीट भी किया है। नमक बनाने का अधिकार प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपिता ने जो आंदोलन चलाया था वह भारत के जनमानस को इस तरह झकझोर गया कि आजादी हर गरीब भारतीय का ईमान बनता चला गया। नमक कहने को तो बहुत सस्ता होता है मगर इसकी तासीर देश प्रेम व इसकी मिट्टी की अस्मिता से सर्वदा बांधे रखने की होती है। अतः श्री मोदी ने इसके मर्म को समझ कर अमृत महोत्सव के समानान्तर गांधी के नमक सत्याग्रह की दांढी यात्रा का महोत्सव मनाने का भी निर्णय किया और साबरमती आश्रण से दांढी तक पैदल मार्च की आज शुरूआत की जिसकी 91वीं सालगिरह है। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से 103 दांडी यात्रियों के जत्थे को नवसारी जिले के दांढी तक के 356 कि.मी. मार्ग पर पैदल मार्च करने के लिए हरी झंडी दिखा कर जब बिदा किया जा रहा था तो यह तय था कि भारत में श्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सर्वप्रथम वरीयता पर देश के आम आदमी को रखने और उसे सशक्त बनाने का संकल्प लेती है। यह यात्रा सांकेतिक नहीं हो सकती क्योंकि इसका सम्बन्ध नमक से है।
इस दांडी मार्च का नेतृत्व संस्कृति राज्यमन्त्री प्रहलाद पटेल करेंगे जो 75 कि.मी. पैदल चलेंगे। यह भी इस बात का प्रतीक है कि देश का संस्कृति मन्त्री इसके नमक की कीमत हर 'कीमत' पर अदा करेगा क्योंकि यह देश मूल रूप से वतन पर मर मिटने वालों का देश है। उन्हीं की याद के चिन्ह पूरे भारत में आज जहां-तहां बिखरे पड़े हैं। मगर आजादी के अमृत महोत्सव का अर्थ यह भी है कि गांधी के सपने के अनुसार हर भारतीय नागरिक के पास सर छिपाने के लिए छत भी हो और आजीविका का साधन भी हो। प्रधानमन्त्री मोदी पहले ही यह घोषणा कर चुके हैं कि 2022 तक हर गरीब आदमी के सिर पर एक पक्की छत होगी। आजादी को 75 साल भी अगले वर्ष 2022 तक ही पूरे होंगे। कुछ लोग इसे श्री मोदी की दूरदर्शिता भी बता सकते हैं, खास कर उनकी पार्टी के, कि उन्होंने 2018 में ही यह लक्ष्य निर्धारित कर लिया था कि जब भारत आजादी की 75 साल पूरे कर रहा होगा तो कोई भी भारतीय परिवार बिना पक्के मकान के नहीं रहेगा। यदि इसे पूरा कर लिया जाता है तो निश्चित रूप से यह अमृत महोत्सव होगा।
यह भी सच है कि भारत गांधी का देश ही युगों-युगों तक रहेगा और किसी भी अन्य विचारधारा को भारत में उतरते ही इनके मानवतावादी मानकों पर खरा उतरना होगा। गांधी ने जब अपनी प्रार्थना सभा में यह भजन गाया कि 'ईश्वर-अल्लाह तेरे नाम-सबको सन्मति दे भगवान' तो स्पष्ट था कि 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' ही नये भारत में इससे प्रस्फुटित पंखुरी हो सकता है। अतः श्री मोदी का यह नारा गांधीवाद का ही एक पाठ है जिसे उन्होंने जन-जन तक फैलाया है। सन्मति से ही विश्वास उपजता है और ईश्वर-अल्लाह ही 'सबके साथ' का अभिप्राय होता है। अतः समझा यह जाना चाहिए कि गांधी के विचारों की कोई हद कायम नहीं की जा सकती। अतः अमृत महोत्सव हमें पुनः भारत से जुड़े रहने और मानवता सेवा में अपना तन-मन न्यौछावर करने की प्रेरणा इस प्रकार देगा कि नये भारत में हम नव ऊर्जा से आवेशित होकर सबके 'विकास' में जुट जायें।