अमित शाह की कश्मीर यात्रा: कहीं पे निगाहें, कहीं पर निशाना
अमित शाह की यह यात्रा आंतरिक सुरक्षा की तैयारी तक ही सीमित रही. इस यात्रा के दौरान अमित शाह ने विपक्षी दलों के किसी भी राजनेता से मुलाकात नहीं की.
ज्योतिर्मय रॉय अफगानिस्तान (Afghanistan) की सत्ता पलट के बाद अचानक जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ गई हैं, श्रीनगर में उग्रवाद से संबंधित घटनाओं में वृद्धि हुई है. पाकिस्तान में प्रशिक्षित सशस्त्र इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा अल्पसंख्यकों सहित प्रवासी श्रमिकों को निशाना बनाया जा रहा है. ऐसी पृष्ठभूमि में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की तीन दिवसीय (23-25, अक्टूबर, 2021) जम्मू-कश्मीर यात्रा का उद्देश्य राजनीतिक महत्व के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक संदेश देना भी है.
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के बाद अमित शाह की यह पहली यात्रा है. अमित शाह की इस यात्रा की पृष्ठभूमि को समझने के लिए आवश्यक है यह समझना की, क्या कारण है कि लंबे समय से शांत पड़े कश्मीर में फिर से अल्पसंख्यकों की हत्या की जा रही है? क्या कारण है कि, पाकिस्तान फिर से प्रशिक्षित आतंकवादियों को कश्मीर में धकेल रहा है? क्या अफगानिस्तान का सत्तापलट और तालिबान के कब्जा से कोई संबंध है? क्या पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक स्थिति से कोई संबंध है?
जम्मू-कश्मीर के विकास और अमनचैन से परेशान पाकिस्तान
अमित शाह की यह यात्रा उस वक्त हुई, जब पाकिस्तान कि इशारों पर इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा घाटी पर अल्पसंख्यकों का खून बहाया जा रहा है, घाटी का अल्पसंख्यक वर्ग अपनी सुरक्षा और भविष्य को लेकर चिंतित है.
इस साल अक्टूबर के महीने में जम्मू-कश्मीर में लगभग 50 लोगों की हत्या हुई है. जम्मू के पीर पांचाल घाटी में पुंछ और राजौरी जिलों के जंगलों में उच्च प्रशिक्षित आतंकवादियों और भारतीय सेना की मुठभेड़ में, सेना के कम से कम 9 जवान, जिनमें दो जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) शामिल हैं ने जान गंवा दी. हाल के हफ्तों में 11 नागरिकों की हत्याएं हुई हैं, जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक प्रवासी हैं.
दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल (एसएटीपी) के अनुसार, जनवरी से अक्टूबर, 2021 तक जम्मू और कश्मीर में कुल 215 लोग मारे गए हैं. मारे गए लोगों में 149 सशस्त्र आतंकवादी, सरकारी बलों के 35 सदस्य और 33 नागरिक शामिल हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पूरे साल में 41 नागरिक मारे गए हैं.
इन हमलों का उद्देश्य है, अल्पसंख्यक समुदायों और गैर-स्थानीय प्रवासी कामगारों में आतंक फैलाना और उन्हें इस क्षेत्र से पलायन करने के लिए विवश करना. जम्मू-कश्मीर में अमनचैन और विकास कि गति को रोकने के लिये पाकिस्तान के इशारों पर पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा कश्मीर में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है.
पाकिस्तान ने अमेरिका को डबल क्रॉस किया
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सत्ता संभालने के बाद, सत्ता के दावेदारी को लेकर तालिबान के सहयोगी रहे विभिन्न आतंकवादी गुटों में चल रही आपसी लड़ाई के कारण अभी तक अफगानिस्तान में स्थिर सरकार बनना संभव नहीं हो पाया है. इन बड़े-बड़े गुटों की आपसी लड़ाई के कारण छोटे-छोटे आतंकवादी गुट पाकिस्तान की ओर कूच कर गए हैं, जिन्हें पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में भेज रहा है.
अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान ने अमेरिका को डबल क्रॉस किया है. अफगानिस्तान में अमेरिका की हार और तालिबान के सत्तासीन होने के पीछे पाकिस्तान की बड़ी भूमिका रही है. आतंकवाद को लेकर अमेरिका को भ्रम में रखने में पाकिस्तान सफल रहा. अफगानिस्तान के मामले पर विश्व में अमेरिका की जितनी जिल्लतें हुई हैं, उसका मूल कारण पाकिस्तान द्वारा अमेरिका के साथ की गई दोस्ती के नाम पर धोखाधड़ी ही है.
आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में सहयोग और आतंकवादियों की गुप्त खबर देने के लिए अमेरिका पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देता था. लेकिन अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पाकिस्तान के लिये अमेरिकी आर्थिक सहायता मिलना आसान नहीं रहा. अमेरिकी कांग्रेस ने पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. विश्व में पाकिस्तान अब आतंकवादियों के पनाहगार राष्ट्र के रूप में जाना जाता है.
भारत के साथ नियंत्रित युद्ध की तैयारी कर रहा है पाकिस्तान
आर्थिक तंगी और घरेलू राजनीति के कारण, पाकिस्तान सरकार अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए कश्मीर मुद्दे को फिर से उछालने का प्रयास कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि, चीन के सहयोग से तैयार किए गए रणनीति की अंतर्गत पाकिस्तान प्रथम चरण में आतंकवादियों के सहयोग से भारत के सैन्य ठिकानों और सामरिक शक्ति का जायजा लेने का प्रयास कर रहा है और द्वितीय चरण में, भारत के साथ एक नियंत्रित युद्ध की तैयारी कर रहा है.
ऐसी स्थिति में अमित शाह की यह यात्रा, भारत की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. इस यात्रा में अमित शाह विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों तथा खुफिया अधिकारियों के साथ मिलकर सुरक्षा से संबंधित सभी पहलुओं पर विचार विमर्श कर रहे हैं. अमित शाह की इस यात्रा ने जहां सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ाया है, वहीं अल्पसंख्यक समुदायों में आत्मविश्वास को भी बढ़ाया है. इस यात्रा के माध्यम से बॉर्डर पार आतंकवादी और उनके आकाओं के लिए एक कठोर संदेश भी गया है कि भारत ईंट का जबाव पत्थर से देने के लिए तैयार है. अमित शाह ने स्पष्ट कहा कि किसी को भी कश्मीर में शांति भंग करने की इजाजत नहीं दी जाएगी.
राजनेताओं से मुलाकात नहीं
अमित शाह की यह यात्रा आंतरिक सुरक्षा की तैयारी तक ही सीमित रहा. इस यात्रा के दौरान अमित शाह ने विपक्षी दलों के किसी भी राजनेताओं से मुलाकात नहीं की. अल्पसंख्यकों में सुरक्षा तथा आत्मविश्वास की भावना को मजबूत करने के लिए इस यात्रा में अमित शाह ने अपने आप को विपक्षी दलों से दूर रखा. वह नहीं चाहते थे कि विपक्ष के नेताओं के साथ सौजन्य मुलाकात में अपना समय बर्बाद हो और मीडिया की सुर्खियां इन सौजन्य मुलाकातों तक ही सीमित रहें.
कश्मीर मुद्दे पर कश्मीरी महत्वपूर्ण हैं, पाकिस्तान नहीं
यात्रा के दौरान अमित शाह ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की बातचीत से इनकार किया. कश्मीर मुद्दे पर अमित शाह ने स्पष्ट कहा कि, "कश्मीर मुद्दे पर कश्मीरी महत्वपूर्ण हैं, पाकिस्तान नहीं."
कोई भी नकारात्मक विचार प्रगति के पथ पर बाधक होता है. जन्म से ही पाकिस्तान का भारत को लेकर एक नकारात्मक सोच रहा है. भारत के प्रति पाकिस्तान की यह नकारात्मक सोच और उसकी कारगुजारी, पाकिस्तान को विश्व की नजर में कभी ऊपर उठने नहीं देती. आज पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को चालू रखने के लिए उधार की जिंदगी जी रहा है और आतंकवाद का सहारा ले रहा है. यह पश्चिम देशों का ही षड्यंत्र है कि धर्म के नाम पर भारत का विभाजन किया, अन्यथा आज वृहद भारत अमेरिका, चीन और रूस से भी ज्यादा शक्तिशाली और समृद्धिशाली राष्ट्र होता.
आतंकवाद और प्रगति एक साथ नहीं चल सकता
अमित शाह ने कहा, "आतंकवाद और प्रगति एक साथ नहीं चल सकता." आतंकवाद का सीधा संबंध बेरोजगारी और अशिक्षा है. अशिक्षा और बेरोजगारी के चलते युवा वर्ग भ्रमित होकर आतंकवाद के पथ पर निकल पड़ते हैं. धर्म के नाम पर किए जा रहे 'इस्लामिक आतंकवाद' भी इससे अछूता नहीं है. यह सार्वभौमिक सत्य है और यह वैश्विक गुहार भी है.
केंद्रीय मंत्री द्वारा इस प्रकार की कश्मीर यात्रा निस्संदेह कश्मीरी अवाम में केंद्र के प्रति विश्वास का वातावरण बनाने में मददगार होगी. विशेषकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसे नेताओं की कश्मीर यात्रा.
जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार को अभी लंबी राह पार करनी है. केंद्रीय सरकार को नई केंद्रीय योजनाओं के शुभारम्भ समारोह का आयोजन जम्मू-कश्मीर में ही करनी चाहिए. इससे कश्मीरी युवाओं और स्थानीय लोगों में जहां रोज़गार का सृजन होगा. वहीं केंद्र के प्रति आस्था भी बढ़ेगी. समय बदल रहा है. जम्मू-कश्मीर में विकास दिखने लगा है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर कि सर्वांगीण विकास को लेकर भारत सरकार अब सचेत, गंभीर और प्रतिबद्ध है.