चीन के प्रति विश्व समुदाय का मौन हैरान भी करता है और परेशान भी
महामारी के संदिग्ध अपराधी चीन के प्रति विश्व समुदाय का मौन हैरान भी करता है और परेशान भी। इससे भी चिंता की बात यह है कि चीन अपना आक्रामक रवैया छोड़ने को तैयार नहीं। वह हर उस देश को परेशान कर रहा है, जिसे वह अपने लिए चुनौती मान रहा है या फिर जो उसकी हां में हां नहीं मिला रहा है। पिछले कुछ दिनों में कई खबरें आई हैं, जिनके भारत की सुरक्षा के लिए दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। पहली यह है कि चीनी सेना भारतीय सेना के साथ ताजा दौर की बातचीत में पैंगोंग झील से इतर पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के अन्य इलाकों से पीछे हटने पर न-नुकुर कर रही है और भांति-भांति की शर्तें लगा रही है। इससे पहले दोनों देशों में पैंगोंग झील के इलाके में अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाने को लेकर सहमति बन गई थी। इसके तहत जहां चीन ने इस झील के उत्तरी तट पर फिंगर-चार से आठ तक का इलाका खाली कर दिया था, वहीं भारतीय सेना ने भी इस झील के दक्षिणी तट पर अगस्त 2020 में एक बड़े जवाबी ऑपरेशन के तहत कब्जे में ली गई सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कैलाश रेंज की कुछ चोटियों को खाली कर दिया था। तब कुछ लोगों की ओर से यह कहा गया था कि भारत ने सैन्य गतिरोध के दौरान हासिल की गईं इन चोटियों को पूर्वी लद्दाख में बने हुए सैन्य तनाव को समग्र रूप से सुलझाए बिना खाली कर दिया। आशंका यह थी कि आगे की बातचीत में चीन के लिए लचीला रवैया अपनाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। यह आशंका कुछ हद तक सही साबित होती दिख रही है। हालांकि यह भी मानकर चलना होगा कि भारत सरकार और सेना ने इस आशंका का ध्यान रखा होगा और चीन की साजिश को देपसांग जैसे इलाकों में मात देने के लिए कुछ कार्ड बचाकर रखे गए होंगे।
चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में सैनिक गतिरोध के चलते ट्रंप प्रशासन भारत के साथ खड़ा था
चीन के रवैये और उससे भविष्य में उत्पन्न हो सकने वाले खतरे को बदली हुई अमेरिकी नीति के परिप्रेक्ष्य में भी देखना जरूरी है। जब चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में भारत के साथ सैनिक गतिरोध शुरू किया गया, तब ट्रंप प्रशासन खुलकर भारत के साथ खड़ा था। कोरोना संकट शुरू होने के बाद से अमेरिका ने चीन के प्रति और अधिक कड़ा रुख अपना लिया था। शुरू में लगा था कि बाइडन भी चीन को लेकर ट्रंप की नीतियों को चालू रखेंगे, परंतु जल्द ही यह समझ आने लगा कि वह मात्र कुछ संतुलनकारी कदमों से अधिक कुछ नहीं करने वाले।
बाइडन प्रशासन चीन को खतरा न मानकर महज एक प्रतिस्पर्धी बता रहा
बाइडन प्रशासन अपनी ही खुफिया एजेंसियों के विश्लेषण से विरोधाभास रखते हुए चीन को खतरा न मानकर महज एक प्रतिस्पर्धी बता रहा है। यूक्रेन में रूस से बढ़ते सैन्य तनाव के बीच आशंका है कि अमेरिका चीन के प्रति और लचीला रुख अपना सकता है। दक्षिण चीन सागर जहां चीन ने कई जगह कृत्रिम द्वीप बना डाले हैं, वहां तो आज तक अमेरिका कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सका, परंतु बाइडन प्रशासन ने लक्षद्वीप में भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में अपने नौसैनिक गश्ती दल को भेजकर उकसाने वाली कार्रवाई कर दी। जाहिर है कि बाइडन प्रशासन में वामपंथी झुकाव वाले ऐसे तत्व हावी हैं, जो कम्युनिस्ट चीन के प्रति नरम रवैया रखते हैं। एक जमाने में ऑस्ट्रेलिया ने भी यही किया था, जिस पर आज वहां भारी पछतावा है। बाइडन प्रशासन के कुछ और फैसले भारत के लिए नई चुनौतियां पेश करने वाले हैं। इनमें एक है इसी सितंबर में अफगानिस्तान से अपनी सेना बुलाने का फैसला। अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद चीन चाहेगा कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान में मौजूद इस्लामिक कट्टरपंथियों का हमलावर रुख भारत की तरफ रहे, क्योंकि पहले ये गुट चीन के शिनजियांग प्रांत में सक्रिय कट्टरपंथी संगठनों को प्रश्रय दे चुके हैं। इस विषय में समय-समय पर चीनी खुफिया अधिकारी तालिबान से गुप्त वार्ताएं भी कर चुके हैं।
अगर चीन सीमांत क्षेत्र में अपनी हठधर्मी नहीं छोड़ता तो भारत को कहीं आगे जाना होगा
अगर चीन सीमांत क्षेत्र में अपनी हठधर्मी नहीं छोड़ता तो भारत को अमेरिका का मुंह ताकने के बजाय आर्थिक मोर्चे पर चीनी एप्स को प्रतिबंधित करने से कहीं आगे जाना होगा और साइबर युद्ध क्षेत्र में काबिलियत भी हासिल करनी होगी। अमेरिका से लेकर अफगानिस्तान तक तेजी से आ रहे बदलाव हमें अपने नीतिगत गुणा-भाग एक बार फिर से करने का संदेश दे रहे हैं। भारत को इस पर ध्यान देना होगा कि वह चीन से निपटने के लिए किसी एक सामरिक गठजोड़ या देश और खासकर अमेरिका पर निर्भर होकर निश्चिंत नहीं हो सकता।