फिलीपींस को लेकर अमेरिका और चीन को संयम बरतना होगा

अमेरिका और चीन को संयम बरतना होगा

Update: 2021-11-24 15:01 GMT
ज्योतिर्मय रॉय.
आखिर दक्षिण चीन सागर को लेकर अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप के बताए रास्ते पर चलते हुए बाइडेन ने 'दक्षिण चीन सागर पर सबसे पहले सैन्य कार्रवाई' करने की नीति कायम रखी है. फिलीपींस संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे पुराने एशियाई भागीदारों में से एक है और रणनीतिक रूप से प्रमुख एक गैर-नाटो सहयोगी है. फिलीपींस और अमेरिका के बीच 1951 से एक आपसी रक्षा संधि (एमडीटी) है और इस संधि के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका और फिलीपींस पर किसी भी बाहरी हमले की स्थिति में एक दूसरे की सहायता के लिए प्रतिबद्ध है. दक्षिण चीन सागर को लेकर विश्व राजनीति का ध्रुवीकरण हो रहा है. इस क्षेत्र में अपने प्रभुत्व की चाह के कारण चीन फिलीपींस के साथ संघर्ष में उलझने की संभावना है. उस स्थिति में, फिलीपींस चाहेगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका उन्हें सहयोग करने के लिए आगे आए.
16 नवंबर को, चीनी तटरक्षक बल के तीन जहाजों ने विवादित दक्षिण चीन सागर में देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के भीतर फिलीपींस की दो आपूर्ति नौकाओं पर पानी के तोपों से हमला कर के रोक दिया गया. इन नौकाओं से फिलीपींस के स्प्रैटली द्वीप पर सेकंड थॉमस शोल नेवल बेस पर तैनात फिलीपीन मरीन गार्ड्स के लिए रसद आपूर्ति किया जा रहा था. फिलीपीन के अधिकारियों ने दावा किया है कि चीन द्वारा रोकी गई इन नागरिक नौकाओं को 'एमडीटी' समझौते की शर्तों के अधीन फिलीपीन नौसेना द्वारा पट्टे पर लिया गया है.
चीन पूरे दक्षिण सागर को अपना क्षेत्र बताता है
गौरतलब है कि, चीन पूरे दक्षिण सागर को अपना क्षेत्र बताता है. वियतनाम, मलयेशिया, ब्रुनेई, ताइवान, फिलीपीन आदि देशों के साथ चीन का विवाद चल रहा है. चीन इस क्षेत्र को कब्जे में ले चुका है और 7 शोल पर मिसाइलें तैनात किया हुआ है. इधर फिलीपीन का कहना है कि वैश्विक कानून के मुताबिक सेकंड थॉमस शोल उसके समुद्री आर्थिक क्षेत्र का हिस्सा है. रसद नौकाओं को रोकने के बाद, उसने चीन को चेतावनी दी कि 1952 के यूएस-फिलीपीन सैन्य समझौते के तहत, चीन को अपनी नागरिक नौकाओं पर हमले के परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी कहा है कि वह फिलीपींस के साथ 1952 की संधि का पालन करेगा. यदि चीन क्षेत्र में तनाव बढ़ाता है और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को खतरा पैदा करता है, तो उसे संधि के तहत कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
अमेरिकी विदेश विभाग ने चीन से कहा है कि वह भविष्य में इस तरह की हरकतों से दूर रहे. हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी तक फिलीपींस में सेना भेजने का वादा नहीं किया है. लेकिन मौजूदा हालात ने एक नई कूटनीतिक अनिश्चितता को जन्म दे दिया है. अमेरिकी विदेश विभाग ने अपने एक बयान में कहा कि "संयुक्त राज्य अमेरिका अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून का बचाव करने में अपने सहयोगी फिलीपींस के साथ खड़ा है." दक्षिण चीन सागर में फिलीपीन के स्वामित्व पर सशस्त्र हमले की स्थिति में संयुक्त राज्य अमेरिका फिलीपींस के साथ अपने संयुक्त रक्षा समझौते का पालन करेगा. फिलीपींस को लेकर अमेरिका और चीन को संयम बरतना होगा.
अमेरिका वाटर कैनन हमले को "फिलीपीन के स्वामित्व वाले जहाज पर सशस्त्र हमला" नहीं मानता
अमेरिकी विदेश विभाग के इस प्रकार के बयान दैनिक दिनचर्या बन गए हैं. बयान में "सशस्त्र हमलों", "राज्य के स्वामित्व वाले जहाजों" और "संयुक्त रक्षा प्रतिज्ञाओं" पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है. बयान से यह स्पष्ट है कि संयुक्त राज्य अमेरिका वाटर कैनन को आग्नेयास्त्र नहीं मानता है और चीनी तटरक्षक बल के वाटर कैनन हमले को "फिलीपीन के स्वामित्व वाले जहाज पर सशस्त्र हमला" के रूप में नहीं देखता है. चीनी वाटर कैनन हमले में कोई फिलिपिनो घायल नहीं हुआ है, केवल जहाज की आपूर्ति नष्ट हो गई है.
अमेरिका फिलीपींस के लिए चीन से संघर्ष करेगा?
विवादित दक्षिण चीन सागर में अत्यधिक आर्थिक गतिविधि और समुद्री संसाधनों का विशाल भंडार इस क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी महाशक्तियों को उकसा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि वियतनाम और अफगानिस्तान के अनुभव के बाद क्या अमेरिका फिलीपींस के लिए चीन के साथ संघर्ष करेगा? क्या अमेरिका की मौजूदा आर्थिक स्थिति इसकी इजाजत देगी?
सबसे अजीब बात यह है कि फिलीपींस में शीर्ष सैन्य नेतृत्व इस घटना पर चुप है. यह स्पष्ट है कि दूसरे थॉमस शोले में चीन का हालिया कदम, समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का उल्लंघन है. चीन को इस क्षेत्र में संप्रभुता का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है. कानूनी तौर पर, फिलीपींस दावेदार है.
अगले साल फिलीपींस में चुनाव है, जहां अमेरिकी समर्थक और चीनी विरोधी राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना है. फिलीपींस की चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा है. उधर ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन संघर्ष की स्थिति में है. चीनी हमले के डर से ताइवान ने अपनी सेना का प्रशिक्षण तेज कर दिया है.
दक्षिण सागर में प्रभाव जमाना चीन का मकसद नहीं : शी जिनपिंग
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि वह और उनका देश दक्षिण एशिया पर कोई प्रभाव नहीं डालना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि चीन दक्षिण चीन सागर को लेकर अपने छोटे से छोटे पड़ोसी देशों पर भी हावी नहीं होना चाहता. शी ने ये बातें आसियान देशों के 30वें वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के दौरान कही. शी ने कहा कि वह अपने सभी पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को लेकर आशान्वित हैं. चीन न तो किसी को दबाने को तैयार है और न ही वह इस क्षेत्र में नायक के रूप में सामने आना चाहता है.
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शी जिनपिंग का बयान महज एक राजनीतिक बयान है, क्योंकि इस बयान का चीन की आक्रामक 'विस्तार नीति' के तहत की जा रही गतिविधि से कोई मेल नहीं है. चीन पाकिस्तान से हाथ मिलाकर परोक्ष रूप से आतंकवाद की मदद कर रहा है. अफगानिस्तान पर चीन की नीति मानवता से ज्यादा व्यावसायिक है.
कोरोना महामारी से पीड़ित दुनिया को युद्ध नहीं शांति चाहिए
अमेरिका-चीन जैसे महाशक्तियों को बातचीत के जरिए समस्या का समाधान करना चाहिए. इसलिए भारत और जापान जैसे देशों को मध्यस्थता करनी चाहिए. युद्ध नहीं, विकास की राह में मानवता सबसे बड़ी पूंजी है. अमेरिका-चीन जैसी महाशक्तियों को बातचीत के जरिए समस्या का समाधान करना चाहिए. इसलिए भारत और जापान जैसे देशों को मध्यस्थता के लिये आगे आना चाहिए. चीन को ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि भारत एक शांतिप्रिय देश है. इतिहास शाक्षी है, भारत अपनी पड़ोसियों के प्रति कभी भी आक्रामक नहीं रहा. याद रखना चाहिए, युद्ध नहीं विकास कि राह में मानवता सबसे बड़ी पूंजी है.
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