सभी राज्यों को जीएसटी की दर निर्धारित करने और अतिरिक्त आयकर वसूलने की मिले स्वायत्तता

वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी लागू होने से पहले देश में अंतरराज्यीय व्यापार कठिन था।

Update: 2020-10-20 02:07 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी लागू होने से पहले देश में अंतरराज्यीय व्यापार कठिन था। हर राज्य द्वारा विभिन्न माल को अलग श्रेणियों में रखा जाता था और उन पर सेल्स टैक्स अलग-अलग दरों से वसूल किया जाता था। जैसे क्राफ्ट पेपर को एक राज्य र्पैंकग मैटीरियल में श्रेणीबद्ध करता था तो दूसरा राज्य कागज में। इस पर भी विवाद उठता था कि क्राफ्ट पेपर पर कितना सेल्स टैक्स वसूल किया जाए? राज्य की सीमा पर हर माल की जांच और टैक्स की वसूली होती थी। इस समस्या से निजात पाने के लिए सरकार ने संपूर्ण देश में जीएसटी व्यवस्था लागू की, जिसमें पूरे देश में माल को एक ही प्रकार से श्रेणीबद्ध किया गया। इसके साथ-साथ सरकार ने पूरे देश में एक ही दर से जीएसटी लागू किया, ताकि व्यापारियों को हिसाब-किताब में उलझना न पड़े। जैसे-मुंबई का उद्यमी अपने माल को दिल्ली भेजता है तो उसे गणित नहीं करना होगा कि दिल्ली में किस दर से टैक्स देना होगा? राज्यों को जीएसटी स्वीकार कराने के लिए केंद्र ने उन्हें आश्वासन दिया था कि जीएसटी में वसूली से उन्हें मिलने वाले राजस्व में जो कमी आएगी, वह पांच वर्ष तक उसकी क्षतिपूर्ति करेगा। तब माना गया था कि हर वर्ष 14 प्रतिशत की दर से जीएसटी की रकम बढ़ती जाएगी। दुर्भाग्यवश पिछले चार वर्षों से अपने देश की अर्थव्यवस्था मंद पड़ी हुई है। ऊपर से कोविड ने भारी चोट की।

राज्यों को क्षतिपूर्ति देने में केंद्र पर अधिक भार पड़ रहा

जीएसटी की वसूली में 14 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि तो दूर, वह कोविड संकट के पहले ही सपाट हो गई थी और कोविड के बाद उसमें और गिरावट आ रही है। इसलिए राज्यों को आश्वासन के अनुसार क्षतिपूर्ति देने में केंद्र पर अधिक भार पड़ रहा है। इस समय राज्यों को लगभग 2.35 लाख करोड़ रुपये की भारी रकम क्षतिर्पूित के रूप में मिलनी है, जो केंद्र नहीं दे पा रहा है। इसलिए केंद्र सरकार ने व्यवस्था बनाई है कि उसके द्वारा 1.1 लाख करोड़ रुपये की रकम उधार लेकर राज्यों को हस्तांतरित की जाएगी, ताकि राज्य अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा कर लें, लेकिन इस रकम पर ब्याज किसे देना पड़ेगा, इस पर चर्चा चल रही है।

राज्य जीएसटी की दरों को बढ़ा-घटा नहीं सकते

केंद्र को राज्यों की क्षतिपूर्ति इसलिए करनी पड़ रही है, क्योंकि राज्यों की जीएसटी दर को निर्धारित करने की स्वायत्तता समाप्त हो गई है। वे अपनी जरूरत के अनुसार दरों को बढ़ा-घटा नहीं सकते। पूर्व में हर राज्य को छूट थी कि अपनी जरूरतों और खपत की प्रकृति के अनुसार राज्य सेल्स टैक्स वसूल कर सकता था। जैसे हिमाचल प्रदेश में हीटर और तमिलनाडु में एयर कंडीशनर की खपत ज्यादा हो तो हिमाचल हीटर पर अधिक सेल्स टैक्स वसूल कर सकता था और तमिलनाडु एयर कंडीशनर पर, लेकिन वर्तमान जीएसटी व्यवस्था में राज्य इस प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते। राज्यों के सामने समस्या यह है कि यदि जीएसटी की वसूली पर्याप्त न हो तो उनके पास उस रकम को प्राप्त करने का कोई रास्ता ही नहीं रह जाता।

2021 में पांच साल पूरे होने के बाद राज्यों को केंद्र से जीएसटी की क्षतिपूर्ति मिलनी बंद हो जाएगी

2021 में जीएसटी को लागू हुए पांच साल पूरे हो जाएंगे और इसके बाद राज्यों को केंद्र से जीएसटी की क्षतिपूर्ति मिलनी बंद हो जाएगी। तब कई राज्यों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। उनका अपना राजस्व सीमित रहेगा और केंद्र से क्षतिर्पूित रकम भी नहीं मिलेगी। राजस्व बढ़ाने के लिए उनके पास कोई अस्त्र नहीं बचेगा, जबकि खर्च समय के अनुसार बढ़ते जाएंगे।

राज्यों को जीएसटी की दरों में परिवर्तन करने का अधिकार मिलना चाहिए

इस परिस्थिति में राज्यों को जीएसटी की दरों में परिवर्तन करने का अधिकार देने पर विचार करना चाहिए। विश्व के कई देशों में इस प्रकार की सुविधा है। जैसे कनाडा में तीन प्रकार के सेल्स टैक्स वसूल किए जाते हैं-केंद्रीय, राज्य एवं संयुक्त। कनाडा के एल्बर्टा राज्य में केवल पांच प्रतिशत केंद्रीय जीएसटी लागू होता है। ब्रिटिश कोलंबिया में पांच प्रतिशत जीएसटी और सात प्रतिशत राज्य सेल्स टैक्स वसूल किया जाता है। ओंटारियो में इन दोनों को सम्मिलित कर 13 प्रतिशत संयुक्त सेल्स टैक्स वसूल किया जाता है, जिसमें पांच प्रतिशत हिस्सा केंद्र का होता है। टैक्स की दरों की इस भिन्नता के बावजूद एक राज्य से दूसरे राज्य में माल ले जाने में कोई कठिनाई नहीं होती। राज्यों की सीमा पर निरीक्षण नहीं होता। विक्रेता द्वारा क्रेता के राज्य में लागू टैक्स की दर के अनुसार टैक्स लगाकर बिक्री की जाती है। सभी प्रकार के टैक्स को केंद्र सरकार के खाते में जमा कराया जाता है और फिर केंद्र सरकार इसका वितरण राज्यों के बीच बिलों के अनुसार करती है।

अलग-अलग दर से जीएसटी लगाकर बिल बनाए जा सकते हैं

हम इसी प्रकार की व्यवस्था को अपने देश में लागू कर सकते हैं। मुंबई के उद्यमी द्वारा दिल्ली अथवा लखनऊ के व्यापारी को बेचे गए माल पर अलग-अलग दर से जीएसटी लगाकर बिल बनाए जा सकते हैं। सभी राज्यों को स्वायत्तता दी जा सकती है कि वे अपनी जरूरत के अनुसार माल पर जीएसटी लगाएं। ऐसा करने से भी एक बाजार बना रहेगा। सभी माल को एक श्रेणी में वर्तमान की तरह रखा जा सकता है। माल के आवागमन में व्यवधान नहीं आएगा, लेकिन राज्यों को स्वायत्तता मिल जाएगी कि वे अपनी जरूरत के अनुसार राजस्व एकत्रित कर सकें।

कनाडा ने इनकम टैक्स में भी राज्यों को स्वायत्तता दी

कनाडा ने तो एक कदम और आगे बढ़ाकर इनकम टैक्स में भी राज्यों को स्वायत्तता दी है। वहां केंद्र द्वारा 49 हजार कनेडियन डॉलर की करयोग्य आय पर 15 प्रतिशत आयकर लिया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्यों द्वारा आयकर लगाया जाता है। ओंटारियो में 45 हजार डॉलर तक की करयोग्य आय पर पांच प्रतिशत अतिरिक्त इनकम टैक्स, ब्रिटिश कोलंबिया में 42 हजार डॉलर तक की करयोग्य आय पर पांच प्रतिशत अतिरिक्त इनकम टैक्स वसूला जाता है।

कनाडा में हर राज्य को जीएसटी, आयकर में बदलावा करने की स्वायत्तता है

वास्तव में वहां हर राज्य को स्वायत्तता है कि वह केवल जीएसटी ही नहीं, बल्कि आयकर में भी अपनी जरूरत के अनुसार बदलावा कर सके। हमें शीघ्र ही राज्यों को जीएसटी की दर निर्धारित करने और अतिरिक्त कर वसूलने की स्वायत्तता देनी चाहिए। इससे केंद्र पर जीएसटी की क्षतिर्पूित का बोझ तत्काल कम होगा और 2021 के बाद राज्यों के सामने आने वाला संकट टल जाएगा। अपने राजस्व का हल वे स्वयं निकाल सकेंगे और देश के संघीय ढांचे पर भी खतरा नहीं आएगा।

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