सब ठीक है का संदेश!

सम्पादकीय

Update: 2022-04-29 05:56 GMT
By NI Editorial
श्रम बाजार की बात होती है, तो उसमें ऐसे कार्यों का कोई महत्त्व नहीं होता, जिनसे लोगों को एक निश्चित आमदनी नहीं होती हो। ऐसे कितने लोग होंगे, जो स्वेच्छा से ऐसी स्वंयसेवा कर रहे होंगे? आठ साल पहले कामकाजी उम्र की महिलाओं का 21 फीसदी श्रम बाजार में था। अब ये संख्या 9 प्रतिशत रह गई है। 
गनीमत है कि रोजगार बाजार के बारे में ताजा आंकड़ों की सच्चाई को सरकार ने चुनौती नहीं दी है। लेकिन उसने उन आंकड़ों की अलग व्याख्या जरूर पेश कर दी है। आंकड़ें यह हैं कि भारत की कुल कामकाजी आबादी का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा श्रम से बाहर हो गया है। यानी ये वो लोग हैं, जो रोजगार नहीं ढूंढ रहे हैं। स्पष्टतः इनमें बहुत बड़ा हिस्सा उन लोगों का है, जिन्हें अपनी योग्यता या जरूरत के मुताबिक काम मिलने की उम्मीद नहीं रही। तो हताश होकर उन्होंने अपने को इस बाजार से बाहर कर लिया। जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तब कामकाजी आबादी (18 से 60 वर्ष) का 46 फीसदी हिस्सा श्रम बाजार में शामिल था। अब यह संख्या लगभग 39.5 प्रतिशत है। ये आंकड़े सेंटर फॉर मोनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी (सीएमआई) ने जारी किए हैँ। चूंकि सरकार ने सावधिक रोजगार-बेरोजगारी का सर्वे बंद कर रखा है, इसलिए इस बारे में जानने का एकमात्र स्रोत सीएमआईई के सर्वे रह गए हैँ।
इस संस्था के ताजा आंकड़ों पर चर्चा तेज हुई तो केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने उस पर अपना जवाब जारी किया। उसमें कहा गया- 'यह गौर करना महत्त्वपूर्ण है कि कामकाजी उम्र वाले सभी संभव है कि काम ना कर रहे हों या काम की तलाश में ना हों। लेकिन इन समूह का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा ग्रहण कर रहा है या हो सकता है कि वह ऐसा काम कर रहा हो, जिनमें वेतन का भुगतान नहीं होता। हो सकता है कि एक बड़ा हिस्सा घरेलू कामकाज में शामिल हो, जिसमें भी वेतन नहीं मिलता।' इनमें शिक्षा की बात तो ठीक है। लेकिन जब श्रम बाजार की बात होती है, तो उसमें ऐसे कार्यों का कोई महत्त्व नहीं होता, जिनसे लोगों को एक निश्चित आमदनी नहीं होती हो। आखिर ऐसे कितने लोग होंगे, जो स्वेच्छा से ऐसी स्वंयसेवा कर रहे होंगे? सीएमआईई ने बताया है कि आठ साल पहले कामकाजी उम्र की महिलाओं का 21 फीसदी श्रम बाजार में था। अब ये संख्या 9 प्रतिशत रह गई है। जाहिर है, इनमें से ज्यादातर महिलाएं घरेलू कार्यों में लगी होंगी। लेकिन क्या ये स्वस्थ स्थिति है और ऐसा उन्होंने स्वेच्छा से किया है? या ऐसा श्रम बाजार की स्थितियां बिगड़ने की वजह से हुआ है? कामकाजी आबादी के इतने बड़े हिस्से के उत्पादक काम ना करने से अर्थव्यवस्था को जो नुकसान होता है, क्या सरकार ने उसका आकलन किया है?
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