भारत सरकार के निर्देश के बावजूद किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की मनमानी या बहानेबाजी चिंता और विचार की बात है। सरकार और ट्विटर के बीच फिर एक बार ठन गई है। 26 जनवरी को लाल किले और दिल्ली में हिंसा के खिलाफ कदम उठाते हुए भारत सरकार ने सैकड़ों ट्विटर हैंडल पर रोक लगाने का निर्देश दिया था, पर ट्विटर ने निर्देश की पूरी पालना से इनकार कर दिया है। ट्विटर के अनुसार, ये विवादित ट्विटर हैंडल भारत में नहीं, पर दुनिया के दूसरे देशों में यथावत देखे जाएंगे। सरकार चाहती थी कि जिन ट्विटर हैंडल का उपयोग हिंसा भड़काने के लिए किया गया है, उन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाए। ट्विटर ने भारत सरकार के कानून का ही हवाला देते हुए ऐसे प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया है। इतना ही नहीं, उसने अपने ब्लॉग पर भारत सरकार को अभिव्यक्ति की आजादी का पाठ भी पढ़ा दिया है। ट्विटर की यह मनमानी किसी अन्य ताकतवर देश में शायद ही संभव है। उसके अधिकारियों की सरकार से वार्ता होनी थी, पर उसके पहले ही अपने विचार पेश करके उसने आग में घी डालने का काम किया है।
भारत सरकार ने ट्विटर की सफाई या बहानेबाजी पर उचित ही नाराजगी का इजहार किया है। सवाल यह है कि ट्विटर ज्यादा सशक्त है या भारत सरकार? क्या ट्विटर सरकार के आदेश-निर्देश से ऊपर है? सरकार आने वाले दिनों में कदम उठा सकती है, जिससे ट्विटर की परेशानी बढे़गी। गौर करने की बात है कि भारत सरकार के मंत्री ने 'कू' नामक भारत निर्मित एप पर ट्विटर को शुरुआती जवाब दिया है। अनेक मंत्री और मंत्रालय भी कू के प्लेटफॉर्म पर जाने लगे हैं। मतलब साफ है, ट्विटर से भारत सरकार की निराशा का दौर आगे बढ़ चला है। यह किसी भी सोशल प्लेटफॉर्म की मनमानी रोकने का एक तरीका हो सकता है, पर ट्विटर की भारत में जो पहुंच है, उसे जल्दी सीमित करना आसान नहीं होगा। दूसरी ओर, ट्विटर को बेहतर जवाब के साथ अपना बचाव करना चाहिए। भारत एक बड़ा लोकतंत्र ही नहीं, बड़ा बाजार भी है। यहां सोशल प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियों को ज्यादा संवेदनशील रहने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि ये कंपनियां भारत सरकार के आदेशों को ही मानने से इनकार करने लगें। जो ट्विटर हैंडल दिल्ली में हिंसा भड़काने में लगे थे, उनके खिलाफ कुछ कार्रवाई की गई, पर कुछ घंटों के बाद कई हैंडल बहाल कर दिए गए। केंद्र सरकार ने ट्विटर से कार्रवाई करने को फिर कहा, बल्कि उसके खिलाफ दंडात्मक उपायों की चेतावनी भी दी। इसके बावजूद अगर ट्विटर के पास कोई ठोस तर्क है, तो उसे सरकार के साथ बैठकर विवाद को सुलझाना चाहिए। लेकिन अपना जवाब ब्लॉग के जरिए देकर ट्विटर ने विवाद को बढ़ा दिया है। सरकार को भी अपनी गरिमा का ध्यान रखना होगा। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कुछेक ट्वीट के आधार पर मीडिया संस्थानों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई को अंजाम दिया जाए। सोशल मीडिया पर हिंसा भड़काने की किसी भी साजिश को माकूल जवाब मिलना चाहिए, लेकिन प्रतिकूल या आलोचनात्मक टिप्पणियों को बाधित करना भी कतई ठीक नहीं है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोकतांत्रिक शालीनता और सहिष्णुता सुनिश्चित रहनी चाहिए।