आतंक के खिलाफ: वैश्विक मुहिम के लिये समर्थन जुटायें

अमेरिका ने भारत पर हुए आतंकी हमलों में वांछित पाकिस्तानी कट्टरपंथियों को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में डाला है।

Update: 2020-12-16 13:03 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है, जिसके लिये देश ने बड़ी कीमत चुकाई है। पिछले दशकों में संसद पर हमला, मुंबई पर सुनियोजित आतंकी घात, पठानकोट व उरी में विदेशी आतंकियों के कायराना हमले और देश को उद्वेलित करने वाले पुलवामा कांड को भुलाया नहीं जा सकता।  इन हमलों के तार जिस देश से जुड़े, उसके खिलाफ पक्के सबूतों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया। उल्लेखनीय है कि मंुबई में पाक प्रायोजित बम धमाकों की शृंखला ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, तब उसके तीन साल बाद 1996 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में व्यापक रूप से परिभाषित आतंकवाद पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते यानी सीसीआईटी पर एक मसौदा दस्तावेज प्रस्तुत किया था। लेिकन विडंबना कि भारत की आवाज को अनसुना किया गया और कुछ देशों की वजह से अभी तक इस प्रस्ताव पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा सकी। इसकी वजह यह भी रही कि सदस्य देश आतंकवाद की परिभाषा और स्वरूप को लेकर एकमत नहीं हो पाये।

संसद पर हुए हमले के शहीदों को पिछले दिनों श्रद्धांजलि देते हुए उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने एक बार  फिर इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र से पहल करने का आग्रह किया। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया के अधिकांश देश भारत के दृष्टिकोण से सहमत नजर आते हैं। वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो संकीर्ण भू-राजनीतिक समीकरणों के चलते भारत के प्रस्ताव की अनदेखी करते हैं। हालांकि वे खुद भी आतंक से किसी न किसी प्रकार जूझ रहे हैं। यद्यपि उपराष्ट्रपति ने किसी देश विशेष का अलग से उल्लेख नहीं किया। लेकिन जाहिरा तौर पर उनका इशारा चीन, पाकिस्तान तथा तुर्की की ओर था जो कि निहित स्वार्थों के चलते आतंकवाद का पोषण करने वाले देशों का बचाव कर रहे हैं। जिनकी हकीकत दुनिया के सामने लाना वक्त की जरूरत समझी जानी चाहिए।


दरअसल, आज विश्वव्यापी आतंकवाद की समस्या पर उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू का बयान विदेश मंत्री एस. जयशंकर की इस टिप्पणी के साथ आया है कि सीमा पार से राज्य पोषित आतंकवाद भारत के लिये बारहमासी समस्या है। भारत की भूमि पर बार-बार हुए आतंकी हमलों में पाकिस्तान की गहरी भूमिका गाहे-बगाहे उजागर हुई है। इस दिशा में विश्व जनमत को सचेत करने के प्रयासों में कुछ सफलता भी मिली है।
अमेरिका ने भारत पर हुए आतंकी हमलों में वांछित पाकिस्तानी कट्टरपंथियों को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में डाला है। उन पर बड़े इनाम भी घोषित किये हैं। भारत के प्रयासों का ही फल है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाक पर दबाव बनने लगा है। वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के लिये राज्यस्तरीय मदद पर नजर रखने वाले वित्तीय कार्रवाई कार्यबल यानी एफएटीएफ ने लंबे समय से पाकिस्तान को ग्रे सूची में डाला हुआ है, जिससे उसकी दागदार छवि दुनिया में उजागर हुई है।
यह तथ्य किसी से नहीं छिपा है कि चीन ने अपने संकीर्ण भू-राजनीतिक स्वार्थों के लिये न केवल पाकिस्तान का समर्थन किया बल्कि संयुक्त राष्ट्र में पाक पोषित आतंकियों का बचाव भी किया है। अब एफएटीएफ द्वारा काली सूची में डाले जाने की आशंका से डरे पाक ने कुछ आतंकी सरगनाओं के खिलाफ दिखावे की कार्रवाई भी की है। पाकिस्तान हाफिज सईद जैसे कुख्यात वैश्विक आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का ड्रामा कर रहा है, जिससे भारत संतुष्ट नजर नहीं आता। निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को पाक पर इतना दबाव बढ़ाना चाहिए कि पाक आतंकवादियों का सरकारी स्तर पर पोषण बंद करने को मजबूर हो जाये। निस्संदेह विश्व के लिये बड़ी चुनौती बन रहे आतंकवाद से निपटने के लिये ईमानदार प्रयासों की जरूरत है। ऐसे वक्त में जब भारत को सुरक्षा परिषद में आगामी दो वर्ष के लिये सदस्यता हासिल हुई है, देश को आतंकवाद के खिलाफ विस्तृत समझौते के लिये वैश्विक समर्थन जुटाना अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र को भी आतंकवाद पोषण करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।


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