फिर बेहाल
दिल्ली, गुड़गांव सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सोमवार को हुई बारिश ने लोगों को राहत तो दी, पर कहीं ज्यादा आफत भी खड़ी कर दी।
दिल्ली, गुड़गांव सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सोमवार को हुई बारिश ने लोगों को राहत तो दी, पर कहीं ज्यादा आफत भी खड़ी कर दी। ज्यादातर इलाकों में पानी भर गया। सड़कें टूट गर्इं। एक ही दिन की बारिश में नाले उफन पड़े। इन सबका असर यह हुआ कि जगह-जगह यातायात जाम हो गया। लोगों की सांसे फूलने लगीं। महानगर को नरक कर देने वाली घटनाओं ने सरकार और निगमों के दावों की पोल खोल कर रख दी। दिल्ली सरकार लगातार दावे करती आ रही है कि बारिश के हालात से निपटने के लिए उसने हर तरह से तैयारी कर ली है, नालों की साफ-सफाई हो चुकी है, पानी निकासी की व्यवस्था दुरुस्त है.. आदि आदि। पर देखने को कुछ और ही मिला। हालात बता रहे हैं कि अगर सरकार ने ये सब काम किए होते तो आज ये हाल नहीं होता। मानसून को दस्तक दिए अभी हफ्ता भर ही हुआ है। अगर पहली ही बारिश में यह हाल है तो अगले दो महीने की बारिश में क्या होगा?
सवाल बारिश का भी उतना नहीं है। बारिश तो होती ही रहेगी। होनी भी चाहिए। अगर मानसून में ही मूसलाधार पानी नहीं पड़ेगा तो कब पड़ेगा! यहां मसला बारिश की तैयारियों का है। यह हर साल का रोना है। पहले खूब लंबे-चौड़े दावे होते रहते हैं, लेकिन एक ही बारिश सारे दावों को धो डालती है। इसका मतलब तो यही है कि तैयारियां कागजों में होती हैं, जमीन पर नहीं। वरना कैसे ढाई सौ से ज्यादा इलाके एक ही दिन की बारिश में जलमग्न हो जाते? कैसे सड़कें टूटने लगीं? दिल्ली के द्वारका इलाके में एक चलती कार सड़क में ही समा गई। जाहिर है, सड़क नीचे से खोखली पड़ चुकी थी और कार का बोझ भी नहीं सह पाई। हालांकि कार सवार बच गया। पर ऐसा हादसा जान भी ले सकता था। सड़क टूटने के कारण हुए इस हादसे की जिम्मेदारी कौन लेगा? यह कह तो टाला नहीं जा सकता कि बारिश में ऐसे हादसे तो होते ही रहते हैं।
अगर पहली ही बारिश ने ऐसा झटका दिया है तो इसके लिए बारिश नहीं, सरकार और नगर निगम जिम्मेदार हैं। साफ-सफाई का काम नगर निगमों का है। दिल्ली सरकार का लोक निर्माण विभाग और बाढ़ नियंत्रण विभाग भी है। बरसाती नालों की सफाई से लेकर सड़कों के रखरखाव का काम इन्हीं विभागों के पास है। पर एक दिन की बारिश में उफने नाले और जगह-जगह पानी भर जाना बता रहा है कि किसी ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई। याद किया जाना चाहिए कि पिछले कुछ सालों में तो तमाम जगहों पर अंडरपास में पानी भरने से हादसे भी हुए हैं। लेकिन इनमें से पानी निकालने के लिए अब तक सरकार पर्याप्त पंपों का बंदोबस्त भी नहीं कर सकी। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने पानी निकासी के लिए विश्वस्तरीय प्रणाली तैयार करने का वादा किया है। पर सवाल है कि जो सरकार लंबे समय से सत्ता में है और हर साल बारिश में ऐसी समस्याओं का सामना करती आई है, वह अब तक ऐसे बंदोबस्त क्यों नहीं कर सकी? दिल्ली के साथ एक बड़ी मुश्किल यह भी है कि सरकार और नगर निगमों के बीच तालमेल का बेहद अभाव है। जिम्मेदारियों और कामकाज को लेकर दोनों में आए दिन टकराव चलता रहता है। ऐसे में दोनों अपनी नाकामियों का ठीकरा एक दूसरे के सर फोड़ते रहते हैं और नतीजे जनता भुगतती है।