ट्रंप के दौर में बढ़े तनाव के बाद अब दोनों पक्ष आमने- सामने

अमेरिकी राज्य अलास्का के एंकरेज शहर में आज से अमेरिका और चीन के बीच दो दिन की वार्ता शुरू होगी।

Update: 2021-03-18 10:54 GMT

अमेरिकी राज्य अलास्का के एंकरेज शहर में आज से अमेरिका और चीन के बीच दो दिन की वार्ता शुरू होगी। लेकिन इससे ठीक पहले माहौल में उम्मीद से ज्यादा आशंकाएं हैं। फिलहाल इसी बात को सकारात्मक माना जा रहा हैकि पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के दौर में बढ़े तनाव के बाद अब दोनों पक्ष आमने- सामने बैठ कर बातचीत करने के लिए तैयार हुए हैं। लेकिन इससे ज्यादा कुछ हासिल होगा, इसकी संभावना नहीं है।

अस्पष्टता इतनी है कि बातचीत का खाका क्या होगा, यह भी तय नहीं हो सका है। अमेरिका ने चीन के इस बयान को भी ठुकरा दिया है कि अलास्का में दोनों देशों के बीच 'रणनीतिक वार्ता' होगी। इस संबंध में अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने साफ कहा है कि यह 'रणनीतिक वार्ता' नहीं है। उन्होंने कहा कि फिलहाल ऐसा कोई इरादा नहीं है कि इस वार्ता के बाद बातचीत की शृंखला शुरू हो जाएगी। आगे बातचीत का होना चीन के साथ चिंता के मुद्दों पर प्रगति पर निर्भर करता है।

अलास्का के शहर एंकरेज में ब्लिंकेन और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान की चीन की पोलित ब्यूरो के सदस्य यांग जिची और विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात होगी। संकेत हैं कि बातचीत के दौरान अमेरिका चीन की कथित 'जोर-जबरदस्ती, अनुचित आर्थिक व्यवहार, हांगकांग में कार्रवाई, शिनजियांग प्रांत में मानव अधिकारों के हनन और ताइवान सहित इस इलाके में लगातार बढ़ रहे चीन के अधिकार जताने वाले रुख' से संबंधित विवादों को उठाएगा। अलास्का बैठक से ठीक पहले अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने जापान की यात्रा की है।
टोक्यो में जापानी नेताओं से बातचीत के समय खास कर एशिया- प्रशांत क्षेत्र में 'चीन के जोर- जबरदस्ती और अस्थिरता पैदा करने वाले व्यवहार' की चर्चा हुई। जापान को इस रूप में अमेरिका ने जो महत्त्व दिया है, उसे इस बात का संकेत माना गया है कि बाइडेन प्रशासन अपनी चीन रणनीति में जापान की बड़ी भूमिका देखता है। जाहिर है, ये तमाम बातें चीन को नागवार गुजरी हैं। इसका संकेत चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की इस टिप्पणी से मिला कि ज्यादातर टकराव अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने पैदा किया है। इसलिए इस पर अमेरिका को ही विचार करना चाहिए कि इस क्षेत्र में बने नकारात्मक प्रभाव को कैसे कम किया जाए। फिर भी अलास्का बैठक पर दुनिया की नजर है तो इसलिए कि आज की दोनों महाशक्तियों के संबंधों का असर सारी दुनिया पर पड़ता है।
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