Afghanistan Crisis: तालिबान पर क्या है अमेरिका का अगला प्लान
अमेरिका का अगला प्लान
अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी सैनिकों (American Force) की वापसी के बाद एक बड़ा सवाल उठ रहा है कि अब अमेरिका क्या करेगा. अफगानिस्तान में करारी हार के बाद अब अमेरिका दुनिया में अपनी साख बचाए रखने के लिए तालिबान से कैसे निपटेगा. अमेरिका अभी चरमपंथियों से निपटने के लिए सारे विकल्प खुले रखने का राग जोर-जोर से अलाप रहा है. लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या अमेरिका चरमपंथियों को बना सकता है निशाना? अमेरिकी प्रशासन अभी भी दावा कर रहा है कि अब भी वो अपने हितों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में हवाई हमले कर सकता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) के अमेरिका के लिए साल 2021 के ख़तरे साल 2001 के ख़तरों से अलग हैं. लेकिन बाइडेन ने साफ कह दिया है कि वो चरमपंथियों को किसी हाल में छोड़ने वाले नहीं हैं, चाहे वो छुपने की लाख कोशिश करें. अंतरराष्ट्रीय मामलों के कुछ जानकार भी अमेरिका के इस दावे से इत्तेफाक रखते हैं. उनके मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका भले ही वापसी कर चुका हो, लेकिन चरमपंथियों के ख़िलाफ़ अमेरिकी जंग ख़त्म नहीं हुई है. अमेरिका तालिबान (Talibaan) पर राजनयिक दबाव डालने के लिए पाकिस्तान, तुर्की और कुछ अरब देशों की भी मदद ले सकता है. अमेरिका फिलहाल काबुल से अपना राजनयिक दूतावास हटाकर दोहा ले गया है और यहीं से तालिबान से संबंधित राजनयिक मामलों का निपटारा करेगा.
अमेरिकी 200 नागरिकों को सुरक्षित निकालना बड़ी चुनौती
अमेरिका के लिए असली मुश्किल 200 अमेरिकी नागरिकों को वापस लाना है, जो अफ़ग़ानिस्तान में किसी वजह से छूट गए हैं. अमेरिका ने उनको छुड़ाने के लिए तालिबान से बातचीत कर ली है कि तालिबान उन्हें सुरक्षित निकालने में मदद करेगा. वैसे अमेरिका में बाइडेन सरकार की जोरदार खिंचाई हो रही है और कहा जा रहा है कि अमेरिकी ग्रीन कार्ड रखने वाले काफी लोगों के अलावा क़रीब 40 हज़ार अफ़ग़ान नागरिक हैं जो अफ़ग़ानिस्तान से निकाले जाने के इंतज़ार में हैं, क्योंकि अफ़ग़ान युद्ध के दौरान उन्होंने अमेरिकी फौज की मदद की थी.
लेकिन बाइडेन 90 फीसदी अमेरिकियों को निकालने का दावा कर रहे हैं और 1 लाख 30 हजार से अधिक नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए जिनमें अफगानी भी शामिल हैं उसके लिए अमेरिकी फौज और अन्य अधिकारियों की तारीफ कर रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अफ़ग़ानिस्तान से सेना निकालने के फ़ैसले का एक ओर अमेरिकी स्वागत भी कर रहे हैं, वहीं 60 फीसदी के आसपास अमेरिकी अफगानिस्तान में ताजा हालात और अमेरिका के छीछालेदर होने से बाइडेन प्रशासन से खासे नाराज हैं.
जो बाइडेन अपने फैसले को बताया सही
अमेरिका ने बीस साल पहले साल 2001 में अल-क़ायदा के चरमपंथी हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करके तालिबान सरकार को नेस्तनाबूद कर दिया था. लेकिन 30 अगस्त, 2021 के दिन अमेरिका ने आख़िरकार अफ़ग़ानिस्तान को बदहाली में छोड़ अपने सारे फौजी वहां से निकाल लिए. मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौज को वापस बुलाने के अपने फ़ैसले को सही ठहराया और कहा कि वह एक अंतहीन युद्ध में फौजियों को नहीं भेजना चाहते. राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान युद्ध ख़त्म हो गया.. मेरा फ़ैसला बिल्कुल सही है और अमेरिका के लिए यह बेहतरीन फ़ैसला है."
अमेरिका ने बीस सालों में हासिल क्या किया?
पिछले 20 वर्षों में 2500 अमेरिकी फौजी अफगानिस्तान में मारे गए और हज़ारों ज़ख़्मी हुए. इतना ही नहीं 4000 अमेरिकी कांट्रैक्टर भी अफगानिस्तान में चले युद्ध में अपनी जान गंवा बैठे. लेकिन बाइडेन ये कहते हुए अपना फेस सेविंग कर रहे हैं कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान का युद्ध ख़त्म करने का जो वादा किया था उसको उन्होंने पूरा किया.
काबुल हवाई अड्डे पर अफरातफरी, चरमपंथी हमले और अमेरिका के जवाबी हमले से मची अफरातफरी पर अमेरिकी लोग बाइडेन सरकार के मैनेजमेंट से खासे नाराज हैं. उनके जेहन में एक ही सवाल है कि अमेरिकी सेना के पास दूसरे अमेरिकी और उनके सहयोगियों को सुरक्षित निकाले जाने के लिए कोई योजना पहले से तैयार नहीं की थी क्या?
क्या अफगानिस्तान से बाहर रह कर अमेरिका तालिबान से अपनी बात मनवा लेगा
अमेरिकी लोग अफगानिस्तान में फंसे दो सौ लोगों के अलावा अफगान युद्ध में साथ देने वाले लोगों को बचाने को लेकर आशंकित हैं. कई लोगों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद रहकर अमेरिका तालिबान पर ज़ोर डाल नहीं सका तो वहां से निकलने के बाद वो कैसे तालिबान से अपनी बात मनवाने और समझौते के तहत तय बातों को मनवाने के लिए तालिबान को बाध्य कर सकेगा. लेकिन अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि तालिबान द्वारा किए गए वादों पर अमल करवाने के लिए अमेरिका के पास कई विकल्प हैं.
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने इस बारे में बताया है कि तालिबान से बात मनवाने और उनपर दबाव डालने के लिए विश्व बाज़ार तक का इस्तेमाल सहित संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का प्रयोग भी किया जाएगा. इसके अलावा अमेरिका का दावा है कि तालिबान के साथ उसका संपर्क बना हुआ है. अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि तालिबान के आगे अफ़ग़ानिस्तान की सरकार और फौज इतनी जल्दी हार मान लेगी और मैदान छोड़कर भाग जाएगी उन्हें इसका अंदाज़ा नहीं था.
अमेरिका का दावा है कि तालिबान हुक़्मरानों के रवैये पर अमेरिका की पैनी नजर बनी रहेगी. आम लोगों के साथ तालिबान कैसा बर्ताव करता है साथ ही महिलाओं के प्रति व्यहवार, मानवाधिकारों के प्रति तालिबान के रवैये पर अमेरिका की नज़र रहेगी. मतलब साफ है कि अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार को फिलहाल मान्यता नहीं देगा.
बाइडेन फेस सेविंग के लिए गढ़ रहे हैं नए-नए तर्क
अमेरिका में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी को लोग बाइडेन की जमकर आलोचना ये कहते हुए कर रहे हैं कि बाइडेन सरकार ने अमेरिका की 20 वर्षों की मेहनत और अरबों डॉलर बर्बाद कर दिए और तालिबान के हाथों अफगानिस्तान को सौंप दिया. अमेरिकी लोगों को डर है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों का ख़तरा बढ़ेगा इसकी पूरी संभावना है.
रॉयटर्स द्वारा किए गए सर्वे में भी पता चलता है कि अफगानिस्तान को लेकर अमेरिकी सरकार के फैसले से 60 फीसदी जनता नाखुश है. ज़ाहिर है दुनियां में सबसे ताकतवर समझा जाने वाला अमेरिका तालिबान के सामने यूं हथियार डालकर उसके द्वारा रखे गए डेडलाइन से पहले देश छोड़कर भाग निकलेगा इसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी.
इसलिए अफगानिस्तान के केयरटेकर राष्ट्रपति अमरूल्लाह सालेह ने अपने शब्दों में साफ कह दिया कि अमेरिका सुपरपावर नहीं बल्कि माइनर पावर रह गया है. वहीं चरमपंथी तालिबान के हाथों खतरनाक हथियार थमा अमेरिका अपने फैसलों को सही साबित करने के लिए शब्दों की बाजीगरी में जुट गया है.