उन खुलासों और खुफिया लीड्स के आधार पर भारत सरकार ने पाकिस्तान हुकूमत को डोजियर भी सौंपे, लेकिन पाकिस्तान का चरित्र ही आतंकवाद से बना है, लिहाजा वह लगातार डोजियर के आरोपों, खुलासों और सबूतों को खारिज करता रहा है। मुंबई के उस आतंकी हमले में आतंकियों ने शहर को करीब 60 घंटे तक बंधक बनाए रखा। छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन और ताज होटल के भीतर और बाहर गोलियां चलती रहीं, विस्फोट किए जाते रहे। नतीजतन 26 विदेशी भी हताहत हुए। आज यह आतंकी हमला एक बार फिर प्रासंगिक हो उठा है, क्योंकि उस पर नई किताब लिखी गई है। उस दौर में कांग्रेस के प्रवक्ता और सांसद तथा यूपीए सरकार में सूचना-प्रसारण मंत्री रहे मनीष तिवारी ने यह किताब लिखी है, जिसका विमोचन एक दिसंबर को होना है। आजकल कांग्रेसी फुरसत में हैं, लिहाजा किताबों के जरिए कई खुलासे कर रहे हैं। मनीष कांग्रेस के असंतुष्ट जी-23 समूह के सदस्य हैं, लेकिन उन्होंने अपनी ही सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर कोई भी प्रत्यक्ष या परोक्ष हमला नहीं है, लेकिन सवाल उन छिपी ताकतों को संबोधित हैं, जो सरकार चला रही थीं और प्रधानमंत्री कठपुतली भर थे। बहरहाल सवालों से तत्कालीन प्रधानमंत्री भी अछूते नहीं रह सकते, क्योंकि संवैधानिक दायित्व उन्हीं का था। किताब का सारांश यही लगता है कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता पर हमला किए जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की। शब्दों के बजाय सख्त कार्रवाई की ज़रूरत थी। हमला कराने वालेे देश पाकिस्तान को कोई पछतावा नहीं था। उसने निर्दोष और निरीह लोगों का कत्लेआम कराया और भारत सरकार संयम की बात करती रही। ऐसे दौर में संयम, धैर्य की बात करना कायरता है, कमज़ोरी थी। वह आपकी ताकत नहीं हो सकता। प्रसंगवश सवाल हैं कि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार भी केंद्र सरकार में मंत्री थे और कैबिनेट की सुरक्षा संबंधी समिति के सदस्य थे और मुंबई से उनका सीधा सरोकार था, लिहाजा उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आग्रह क्यों नहीं किया? क्या आतंकवाद के खिलाफ यूपीए सरकार समझौतापरस्त थी? यदि सेनाएं पलटवार को तैयार थीं, तो उनके हाथ किसने बांधे और सेनाओं को अनुमति क्यों नहीं दी गई? क्या सुरक्षा और संप्रभुता पर तत्कालीन सरकार की नीति ही यही थी? क्या किताब की टाइमिंग महत्त्वपूर्ण है और फरवरी में पंजाब में चुनाव होने हैं और मनीष तिवारी अपनी ही पार्टी की संभावनाओं को ध्वस्त करना चाहते हैं? सवाल यह है कि देश की सुरक्षा, एकता, अखंडता से इस तरह समझौता किया जा सकता है? कांग्रेस को जवाब देना होगा।