समलैंगिक विवाह: दिल्ली HC में कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग को लेकर याचिका, केंद्र ने जताया विरोध
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केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों के तहत समान लिंग विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग करने की मांग वाली याचिका का विरोध किया है. अदालत में पेश किए गए अपने हलफमाने में केंद्र (Central Government) ने कहा कि देश की आबादी के एक बड़ा हिस्से पर वर्तमान मामले और उसकी कार्यवाही से प्रभाव नहीं पड़ता है. इस संबंध में दायर हलफनामे में कहा गया है कि आवेदक अदालत के सामने कार्यवाही को ड्रामाभरा बनाने की कोशिश करना चाहते हैं, क्योंकि उनका इरादा इसके जरिए सहानुभूति हासिल करना है.
हलफनामे में कहा गया कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की भारत के साथ तुलना करना गलत है. इसमें कहा गया, 'भारतीय अदालतें और न्याय प्रशासन किसी अन्य देश में प्रचलित व्यवस्था के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे हैं. आवेदक का एकमात्र उद्देश्य जनहित का भ्रम पैदा करना और मामले को सनसनीखेज बनाना है. इस कदम को अदालत द्वारा हतोत्साहित किया जाना चाहिए.' याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील ने हलफनामे पर सवाल उठाया और कहा कि 'सहानुभूति', 'भ्रम' आदि शब्दों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है. ये समान-लिंग वाले जोड़ों के अधिकारों को कमतर दिखा रहा है.
हाईकोर्ट ने हलफनामे पर जताई नाखुशी
वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार के हलफनामे को लेकर नाखुशी जताई क्योंकि इसमें कुछ आपत्तिजनक शब्द हैं. LGBTQ जोड़ियों ने विभिन्न कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई का सीधा प्रसारण करने का अनुरोध किया है. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि केंद्र सरकार ने हलफनामे में अत्यधिक आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणियां की हैं. इस पर, हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा हलफनामा मंत्रालय से नहीं आना चाहिए था और वकील को इसे पढ़े बगैर दाखिल नहीं करना चाहिए था. अदालत को यह सूचित किया गया कि हालांकि सरकार का हलफनामा दाखिल हो गया है, लेकिन यह रिकार्ड में नहीं है.
समलैंगिक जोड़ियों की याचिकाओं पर हो रही है सुनवाई
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से कहा, क्या आपने हलफनामा पढ़ा है? हम आपको इसे रिकार्ड में नहीं रखने और इस पर पुनर्विचार करने की सलाह देते हैं. इसे रिकार्ड में नहीं रखें. यह सही नहीं है. आपका हलफनामा मंत्रालय से नहीं आना चाहिए था और आपको इसे पढ़े बगैर दाखिल नहीं करना चाहिए था. ऐसा नहीं होना चाहिए था. पीठ ने कहा, वकील होने के नाते इसे पढ़ना आपकी जिम्मेदारी है और यदि कुछ आपत्तिजनक हो तो उसे बताएं. आपको उसके मुताबिक अपने मुवक्किल को सलाह देना चाहिए. इस पर बिना सोचे समझे कुछ ना करें.
अदालत कई समलैंगिक जोड़ियों की याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही है. उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाहों की मान्यता घोषित करने का अनुरोध किया है. इस मुद्दे पर कुल आठ याचिकाएं अदालत में दायर की गई हैं.