2008 में आई मंदी जैसे हालात, क्या इस बार भी बैंक ही बनेगा मंदी की वजह

Update: 2022-10-13 11:04 GMT

वर्ल्ड न्यूज़: क्या दुनिया एक बार फिर आर्थिक मंदी की चपेट में आने वाली है? यह एक ऐसा सवाल है, जिसकी आजकल खूब चर्चा हो रही है। पहले कोरोना, फिर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गई हैं। ऐसे स्विस बैंक क्रेडिट सुइस की खराब वित्तीय हालात ने मंदी की आशंकाओं को बल दे दिया है। आइए समझते हैं कि कैसे एक बैंक के दिवालिया होने पर दुनिया भर मंदी आ जाती है। इसके लिए हमें 2008 के दौर में जाना होगा। साल 2008 में क्या कुछ हुआ था वो जानने से पहले बिजनेस के शब्द 'क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप' को समझ लेते हैं, क्योंकि इसी एक शब्द के इर्द-गिर्द पूरी चर्चा घूमेगी।

क्या होता है क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप?

बैंक बॉन्ड के जरिए भी पैसा इकट्ठा करते हैं। कुछ ऐसा ही तरीका प्राइवेट कंपनियां भी अपनाती हैं। उदाहरण के तौर पर इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी है। अब इस कंपनी को 1 लाख रुपये की जरूरत है। कंपनी ने एक-एक हजार रुपये के 100 बॉन्ड जारी कर दिए। मान लीजिए अभिषेक नाम के व्यक्ति ने कंपनी का एक बॉन्ड 3 पर्सेंट के ब्याज पर 5 साल के लिए खरीद लिया। लेकिन दो साल बाद निवेशक अभिषेक को लगता है कि कंपनी पैसा लौटा नहीं पाएगी। इस स्थिति में अभिषेक एक थर्ड पार्टी इंश्योरेंस कंपनी (यह बैंक भी हो सकता है) के पास जाते हैं और वहां बॉन्ड का 1 प्रतिशत भुगतान करके अपने 100 डॉलर के अमाउंट को सुरक्षित कर लेते हैं। अभिषेक जैसे हजारों निवेशक इस थर्ड पार्टी इंश्योरेंस या कंपनी के पास बॉन्ड इंश्योर्ड करवाते हैं। लेकिन मंदी या विपरीत परिस्थितियों में यह इंश्योरेंस कंपनी भी लोगों के पैसे का भुगतान ना कर पाए और दिवालिया हो जाए। इसी परिस्थिति को 'क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप' कहते हैं। अब सोच रहे हैं होंगे कि इसका क्या कनेक्शन है 2008 की मंदी से और आज के दौर में क्रेडिट सुइस इससे कैसे लिंक करता है?

2008 में मंदी जो आई थी, उसकी बड़ी वजह लेहमन ब्रदर्स कंपनी थी। यह कंपनी लोगों के पैसे को सुरक्षा प्रदान करती थी। ठीक उसी तरह जैसे अभिषेक के पैसे को इंश्योरेंस कंपनी सुरक्षा दे रही थी। साल 2008 के पहले के कुछ सालों में अमेरिकी बैंक लोगों को लोन दे रहे थे। फिर अपना अमाउंट सुरक्षित करने के लिए लेहमन ब्रदर्स जैसी कंपनियों के पास मामूली ब्याज देकर सुरक्षा ले ले रहे थे। बैंक इंश्योरेंस जैसी कंपनियों के विश्वास पर लोगों को धड़ल्ले से लोन पर लोन देना जा रही रखा। 2008 के वक्त देखा गया कि लोगों के ऊपर लोन इतना अधिक हो गया कि वो उसे चुकाने में असमर्थ हो गए। जिसके बाद बैंक ने लेहमन ब्रदर्स जैसी कंपनियों से पैसा वापस लौटाने के लिए कहा, लेकिन लेहमैन ब्रदर्स पर बैंकों का क्रेडिट इतना अधिक था कि उनकी सारी संपत्ति बेचने के बाद भी बैंकों का पैसा पूरा नहीं हो रहा था। जिसके बाद लेहमैन ब्रदर्स को दिवालिया घोषित करना पड़ा। इस घटना ने अमेरिका के बाजार, बैंकिंग सिस्टम सबको हिला कर रख दिया। जिसके बाद देखते ही देखते दुनिया भर के बाजार धाराशायी हो गए। लेहमन ब्रदर्स जैसी परिस्थिति क्रेडिट सुइस के सामने भी उभर रही है। बता दें, 2008 में क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप स्प्रेड 2.5 प्रतिशत था। सरल शब्दों में कहा जाए अभिषेक को जितने प्रतिशत ब्याज पर कंपनी ने इंश्योरेंस दिया था। वही, क्रेडिट स्वैप स्प्रेड कहलाता है। यह जितना अधिक होगा रिस्क उतना अधिक रहेगा।

क्रेडिट सुइस बैंक ने क्या गलती की?

2008 के बाद बैंकिंग सिस्टम में बहुत बदलाव देखने को मिला है। लेकिन क्रेडिट सुइस ने अपने काम करने के तारीकों में बहुत संशोधन नहीं किया। बैंक रिस्क लेता रहा है। रिस्क लेने की इसी खासियत ने उसके सामने खतरा पैदा कर दिया है। GreenSill जैसी कंपनियों में किया गया अरबों को निवेश डूब गया है। वहीं, बीते दो साल के दौरान बैंक के मैनेजमेंट में काफी उथल-पुथल मची हुई थी। जिसकी वजह से संकट गहराता गया। पहले कोविड और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से परिस्थितियां नियंत्रण के बाहर चली गई। क्रेडिट सुइस बैंक का क्रेडिट स्वैप स्प्रेड 2.7 है। 2008 में लेहमैन ब्रदर्स का 2.5 क्रेडिट स्वैप स्प्रेड था। 2008 में इसके बाद ही लेहमैन ब्रदर्स के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली थी। और पूरी दुनिया मंदी के गिरफ्त में आ गई थी।

क्रेडिट सुइस की आर्थिक स्थिति कैसी है?

बीते 7 में से 5 तिमाही में कंपनी को नुकसान उठाना पड़ा है। साल 2022 में क्रेडिट सुइस के शेयर 60 प्रतिशत तक टूट गए है। BQ Prime के अनुसार कभी 1.1 ट्रिलियन का एसेट मैनेज करने वाली कंपनी का मार्केट कैप एचडीएफसी की तुलना में 10 गुना कम हो गया है। आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए 5000 लोगों को नौकरी से निकालना पड़ा। टॉप मैनेजमेंट में बदलाव करना पड़ा है।

क्या संभल जाएगी परिस्थिति?

रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस ने यूरोप की एनर्जी सप्लाई को काट दिया है। यह कटौती ऐसे समय में हुई है जब सर्दियों के सीजन में एनर्जी की खपत बढ़ जाती है। रूस की कटौती के बाद ऊर्जा की कीमतों में तेज इजाफा आएगा। डॉलर के मुकाबले पाउंड की कीमतों में 22 प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिली है। अमेरिका से भी निराश करने वाली खबर ही सामने आ रही है। इस साल पहली दो तिमाही के दौरान यूएस की जीडीपी के आंकड़ों ने निराश किया है। कुल मिला-जुलाकर संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। जानकारों की मानें तो अगर क्रेडिट सुइस दिवालिया हुआ तो 2008 से बड़ी मंदी देखने को मिल सकती है।

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